For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर-यादों को हम याद आएं हैं,

मात्रिक बहर 
२२/२२/२२/२२/
.
अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर,
जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.
.
ग़ैरों से इतना न खुला कर,
दिल नौचेंगे ...मौका पा कर. 
.
नया तज़्रबा है हर धोका,  
जश्न मनाओ बोतल ला कर.
.
तुम समझे लोबान जला है,
मैं रक्साँ था ज़ख्म जला कर.
.
मैंने ख़ुद को तर्क किया है,
तेरी मर्ज़ी हाँ कर...ना कर.
.
शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर.
.
यादों को हम याद आएं हैं,
लौट आयी हैं वापस, जा कर.   
.
घुटते-घुटते मर जायेगा,
अश्क अपनी आँखों से रिहा कर. 
.
जन्नत वन्नत खेल तमाशे,
देख चुका!! अल्लाह भला कर!!
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 23, 2016 at 9:38pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 3:51pm

आदरणीय नीलेश जी

शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर. ..

अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर, 
जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.
.
ग़ैरों से इतना न खुला कर,
दिल नौचेंगे ...मौका पा कर......पूरी ग़ज़ल ही जानदार है पर ये शेर मुझे बेहद पसंद आये इसलिए उद्धृत कर रहा हूँ ..मेरी हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 9:20pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी ...
नया तज़रबा है हर धोका में हर  धोका एक नया अनुभव है ..ऐसा मंतव्य है ..हर धोका खा कर अनुभव मिलता है इसलिए जश्न मनाने की बात है ..आप के सुझाए ...धोखा है , हर नया तज़्रबा बेचारा हर नया तज़रबा ही धोका हो रहा है ....
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 9:17pm

शुक्रिआ आ. राजेश दीदी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 9:17pm

शुक्रिया आ. कल्याण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 9:17pm

शु. आ वर्मा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2016 at 5:44pm

आदरणीय नीलेश भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर बढ़िया हुये हैं , दिल से बधाइयाँ आपको ।

नया तज़्रबा है हर धोका,    इस मिसरे को ऐसा कहें तो बात और खुल कर आयेगी ऐसा मुझे लगता है --

धोखा है , हर नया तज़्रबा  -- सोच लीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2016 at 4:38pm

शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर.
.
यादों को हम याद आएं हैं,
लौट आयी हैं वापस, जा कर.   
. वाह वाह हर शेर शानदार 

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० नीलेश भैया दिल से दाद लीजिये 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 21, 2016 at 4:17pm
अति उत्तम रचना बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2016 at 10:58am
बहुत सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
Thursday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service