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ओ बी ओ का नव रूप ..

कितने वक़्त के बाद आई यहाँ ..

जैसे…
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Added by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 2:30am — 11 Comments

गुफ़्तगू पत्रिका का आनलाईन विमोचन व मुशायरा धूमधाम से सम्पन्न

इलाहाबाद। एक पुलिसकर्मी हमेशा डंडा ही नहीं चलाता बल्कि कलम उठाकर अपनी अभिव्यक्ति भी खूबसूरती से व्यक्त कर सकता है। इश्क सुल्तानपुरी ने इस को बेहतरीन ढंग से करके दिखाया है। इन्होंने अपनी काव्य सृजन की क्षमता से लोगों को अवगत करा दिया है। यह बात डीआईजी कार्मिक श्री लाल जी शुक्ल ने ‘गुफ्तगू’ के इश्क सुल्तानपुरी अंक के विमोचन के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि इश्क साहब की शायरी को लोगों तक लाने में गुफ्तगू पत्रिका ने महत्वपूर्ण भूमिका…

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Added by वीनस केसरी on March 3, 2012 at 9:30pm — 7 Comments

जुदाई (गजल)

अपनों से जुदा अपने,होते हैं कहां प्रियवर।

अनमोल रतन धन,खोते हैं कहां प्रियवर॥



नजरों से दूरी तो,दूरी ही नहीं होती।

दिल से अलग अपने,होते हैं कहां प्रियवर॥



आंखों में आंसू हैं,अपनों के लिए ही हैं।

गैरों के लिए हम,रोते हैं कहां प्रियवर॥…



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Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 3, 2012 at 9:30pm — 15 Comments

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||

जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||

थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,

घूमे  ख़्यालों में  मंज़र अपने  गाँव का ||

आँखे हुई नम , देखकर  पानी  बरसात  का ,

जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||

जब…

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Added by Nazeel on March 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments

प्रथम पुष्प

प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,

आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,



चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं

उजड़ चुके है जिनके घर,…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

अपवाद मेरे जीवन के

विकल्पों की इस दुनियां में

बेरस से इस जहां में

तुम्ही कहो क्यों ढूँढूँ विकल्प तुम्हारा

तुम ही तो वो लम्हा हो

जिसे जीया है मैने

तुम्हारी ही सॉसों के बिगङते तरन्नुम को

तो गीतों में पिरोया है मैंने

तुम्ही पर छोङ रखी है हर ख्वाहिश

 एक ही तो है सपना,जिसे तुम्हारी ही

आंखों से देख रखा है मैने

तुम्हारे ही हर लफ्ज को कैद रखा है दिल में,

जिसे तुम्हारा ही आशियां बनाया है मैने

तुमसे ही तो खुशियों-गमों का रिश्ता…

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Added by minu jha on March 3, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा

शेख बच निकला

तू था मुहरा

 

ढूंढ़ बकरा

शनैः रेत लो गला

दे चारा हरा

 

बेजुबाँ खरा

हक माँगने लगा

तो दोष भरा

 

अना दोहरी

नश्तर सी चुभन

दगा अखरी!

 

यहाँ खतरा

ईश्वर हुआ अंधा

इन्सां बहरा

 

यार बिसरा

अब यहाँ क्या धरा

चलो जियरा

 

छटा कुहरा

छद्म बंधन मुक्त

पिया मदिरा

 

समा ठहरा

इंद्रधनुषी दुनिया

नशा…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 10:30am — 17 Comments

-:प्रेम के कुछ मुक्तक:-

"कम से कम दो कदम प्रेम पथ पर चलें"…




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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 1:30am — 13 Comments

हाइकु गीत



 खुद बेवफा

 दूसरों से चाहते

 करें वो वफा |…

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Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments

वक़्त का वज़ूद

वक़्त का वज़ूद

वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद

दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में

या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में

स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद

है अब भी मेरे होने की महक

सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।

चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे

उन काँपती बेजान हाथों की नरमी

और छुपी उनमे उनके नेह की गरम

उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।

चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से

जीवन को गुज़रता देखा सामने से

अतीत के गर्त में…

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Added by kavita vikas on March 2, 2012 at 7:34pm — 6 Comments

अंतस का कोना...

बतकही कितनी भी
कर लूँ
रहता है खाली खाली
अंतस का कोना
ढोल बजा लूँ कितनी भी
रहता है सुना सुना
अंतस का कोना
शब्दों का मायाजाल है
जिंदगी का ख्याल है
कोशिश कितनी भी कर लूँ
रहता उदास है
अंतस का कोना
इश्वर के दरबार में
सब के लिए अरदास है
चलो अक दीप जला लूँ
जुगनुओ को दोस्त बना लूँ
अपनेपन के शोर से
गुंजित कर लूँ
अंतस का कोना.....

Added by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 5:52pm — 9 Comments

मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments

"तेरे मेरे बीच हैं"

यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,

जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;


तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले

कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे


तेरे मेरे बीच…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 2:00pm — 21 Comments

रिक्त

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे



बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 

फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 



युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 

लग रहा फिर भी…

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Added by Anand Vats on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

जबान पर मसाला

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,

अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.



पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,

जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments

इंतज़ार बस इंतज़ार.............

है प्रियवर,  तुम  कब  आओगे  भेजो  तुम  सन्देश 

थक  गई  मोरी  अँखियाँ अब  तो  भेजो  तुम  सन्देश 

भेजो  तुम  सन्देश  प्रिये  तो झपकूँ अपने  नैन 

राह  तकूँ मै हर  आहट पे  देखूँ  द्वारे …

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Added by Monika Jain on March 1, 2012 at 11:30pm — 7 Comments

ज़िंदगी क्या है..



मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,

तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..



ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,

ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,

तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..



किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,

सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,

तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..



किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,

किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके…

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Added by Aditya Singh on March 1, 2012 at 5:54pm — 8 Comments

कन्या भ्रूण हत्या ..हाइकू ( ५-७-५ )

शोख सी परी .

ज्यों बनी, खून सनी.

कोख में मरी.

 

( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus ) 

 

 रचयिता  : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments

सीलन...

हर सुंदर

प्रभात वेला में

प्रतिदिन

मैं पाता हूँ

स्वयं को

सीलन भरी लकड़ी सा

जो चाहती है

सुलगना

और...

सुलगना भी

इस तरह की

उसमें होम हो जाए

सीलन .

सीलन अहम् की

बहुत सारे 

भ्रम की

मेरी हमसफ़र !

आओ ...

पवित्र अग्नि में

प्यार की .

भस्म कर दें

सीलन

हृदयों के

संसार की .

.

.

करोगी स्वीकार ?

मेरा निमंत्रण !!

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

सकून

सच्चाई को खोजने चला था,

झूठ ही झूट मिले,

मोहब्बत खोजने चला,

तो बेवफाई मिली,

जब खोजना छोड़ दिया,

तो तन्हाई मिली,

अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,

जो चाहा था बेवजह था

जो मिला है बेइंतहा है

यूही भटक रहा था

अब सकून ही सकून है |

Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

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