करके याद हमें अब दिल जलाते हैं वो,
बेवफाई का मातम अब मनाते हैं वो।
हमारे बीते हुए लम्हों को याद कर,
अब अपना पल पल बिताते हैं वो।
जाहिर हो जाता है उनके चेहरे पे गम,
खुशी के लम्हे भी गम में बिताते हैं वो।
खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,
दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।
हमें तरस आता है उनकी हालत पर,
पर हमारे सामने आने से कतराते हैं वो।
रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए,
फिर भी हमारी यादों में खो जाते…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 1:26pm —
12 Comments
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
अंधेरा देख तू खिन्न मत हो,
उजाला देख तू प्रसन्न मत हो,
न जाने फूल सी ये जिन्दगी
कब मुरझा जाए,इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
इन्सान से तू द्वेष न कर,
सच कहता हूँ भगवान से डर,
तुझे इसका फल तो पाना होगा,
'हम हैं राही प्यार के'इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 10:06am —
2 Comments
कंटीली राहों से
सीखा है जीना मैंने,
रात की गहराईयों से
सीखा है पीना मैंने।
बात करता हूं मैं
गुजरे वक्त की,
पत्थरों के पथ पर
पाया है नगीना मैंने।
पत्थरों से टकराकर
पत्थरों पे सिर झुकाया है मैंने।
अपनी विनम्रता की आंच से
पत्थरों को पिघलाया है मैंने।
वो हीरे मिले हों
या वो लोहा था,
सागर की लहरों के बीच
मोतियों को पाया है मैंने।
मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:56am —
6 Comments
मित्रों-सहयोगियो, तुम
रूको तो सही,
भागते हो किधर? कुछ
सुनो तो सही।
आसमां के तारों को,
तुम देखो तो सही।
चांद नजर आएगा,
तुम पहचानो तो सही।
चांद ही मेरी मंजिल है,
कदम बढाओ तो सही।
मंजिल मिल जाएगी हमें,
हिम्मत जुटाओ तो सही।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 19, 2016 at 5:12pm —
14 Comments
तपिश को कौन समझेगा
जलते शहर की
कुर्सी से जो मतलब ठहरा
विरोध प्रदर्शन धरने हडताल
दिहाडी को निगल गए
नहीं थमेंगे
गरीब को रोटी नहीं मिलेगी।
पहरेदार
सब कठपुतलियां हैं
सफेदपोशों की।
मजबूर
घोडे को लगाम जो लगी है
गरीब ने कहा
चलो गरीबों चलो कंगालो
मरने वालों को लाखों मिलते हैं
मरने चलें
दो-चार दिन का सूतक सही
दिहाडी-रोटी नहीं तो लाखों सही
पीछे वालों की जिंदगी
आराम से गुजरेगी।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 3, 2016 at 5:16pm —
41 Comments
जेठ तपता आषाढ तपता,
सावन भी तपता जा रहा,
जेठ की लू सावन में चलें,
समय बदलता जा रहा।
सावन में जब वर्षा होती,
कोयल कू-कू गाती थी,
मेंढक टर्र-टर्र करते थे,
बहारें राग सुनाती थी।
शीतल फुहारें झर-झर कर,
माथे से टकराती थी,
नई स्फूर्ति तन-मन में,
एकाएक भर जाती थी।
इंद्रधनुष के सात रंग,
जब याद मुझे वो आते हैं,
तीजों के त्योहार को
ताजा तभी कर जाते हैं।
इस सावन को नजर लग गई,
सावन तपता जा…
Continue
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 4:30pm —
6 Comments
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
सूर्योदय से पहले
पक्षी चहचहा रहे होंगे
छोड कर निज नीड
नई तमन्नाओं के साथ
विचरण कर रहे होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
हम जहाँ भी जाएंगे
तमन्नाओं की राहों पर
कुछ हमसे खुश
कुछ हमसे खफा होंगे
नई तमन्नाओं के साथ
नए इरादे भी बुलन्द होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
पहाड़ों में-वादियों में
मैदानों में-घाटियों में
कल्याण का ही सहारा होगा
दिलों…
Continue
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 1, 2016 at 9:02am —
4 Comments
जिन्दगी के सफर पर
बढते रहो, मगर
किसी की राह मत देखो।
अपने कदमों के निशां
छोडते चलो।
उन्हीं कदमचिन्हों पर
बन जाएगा कारवां
एक दिन।
गमों की परवाह
मत करो, मगर
अधिक खुशियों से
तुम जरूर डरना।
खुशियों के साथ
गम
याद करते चलो।
अपने कदमों के निशां
छोडते चलो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 26, 2016 at 8:29pm —
4 Comments
डूबे हैं जो इश्क-ए-वतन में
बता प्यार पाने किधर जाएं।
भरा है अपने नैनों में पानी
बता दीदार पाने किधर जाएं।
जो तलवार न कर पाए जंगे इश्क में
इक नजर का नजारा उसको कर जाए।
माटी की महक के दीवाने जो हैं
बता तुझे छोडकर किधर जाएं।
इक दफा गुलाबों सा मुस्कुरा देना
तमन्ना है कि जिन्दगी संवर जाए।
मेहरबान रहना हमपे ए इश्के वतन
हौले-हौले शायद ये जिंदगी गुजर जाए।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 23, 2016 at 11:08am —
4 Comments
दोपहर का समय था।सूर्य की प्रचंड किरणें आग के गोले बरसा रही थी।रश्मि अभी-अभी काॅलेज से आई थी, जबकि रूपेश अपने आॅफिस से पहले ही आ चुका था।
परंतु आते ही आज फिर वही बात हो गई जो प्रायः इस समय घटित होती थी।प्रतिदिन लडाई जूते-चप्पलों को सही जगह पर रखने को लेकर होती थी।ज्योंही रश्मि ने रूपेश के जूतों को बैडरूम में देखा तो वह भडक उठी।
"अपने आप को एक मैनेजिंग डायरेक्टर कहते हुए शर्म नहीं आती, न जाने अपने जूतों को भी सही जगह पर मैनेज करना सिखोगे_ _ _ _।"
"तुम किसलिए हो? इतना भी…
Continue
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 14, 2016 at 9:30am —
10 Comments
ए हसीन लम्हे
जरा आहिस्ता गुजर,
बहुत बरस बिताए हैं
तेरा इंतजार करते-करते।
बहुत तडपे हैं
बहुत रोए हैं
आंसू भी खूब बहाए हैं
हमने आहें भरते-भरते।
बहुत बरस_ _ _ _।
हठ किया है हमने
बादलों से निकलते
चांद की तरह
यहां तक पहुंचे हैं हम
जमाने की नजरों से
डरते- डरते।
बहुत बरस_ _ _ _।
जाने क्या तडप थी
जाने क्या एहसास था
जिंदगी जी आज तक
हमने यूंही मरते-मरते।
बहुत बरस_ _ _ _।
मौलिक…
Continue
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 12, 2016 at 9:27am —
2 Comments
उनकी क्या बात करूँ,
मैं अपनी ही सुनाता हूँ।
भाव-भंगिमा थी क्या उनकी,
मैं अपनी पर इतराता हूँ।
पसीना आए या खून बहे,
पर उनका क्या जाता है?
लूट लिया उन्होंने मुझको,
मुझे लुटना भी भाता है।
मीठी-मीठी वाणी से,
लूट हाड-मांस का सार लिया।
अपने पराये हो गए,
बिगाड सारा परिवार दिया।
धन-दौलत की क्या बात करूँ,
वो तो उनके पास रही।
क्या लेना मुझको था उससे,
वो गले में पडके खाक रही।
है अच्छाई और बुराई क्या,
मैं समझ नहीं पाता…
Continue
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 11, 2016 at 5:06pm —
2 Comments