पंख
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पंख
जो
समय की मार से
हो चुके थे
जीर्ण-शीर्ण
मैंने
खूब फैलाने का प्रयास किया,
ताकि
विश्राम कर सकें
इनकी छत्रछाया में
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी।
मगर
जब वो जीर्णावस्था से
उबरे
जब पूर्ण छाया
देने ही वाले थे
चढ़ गए
मेरे
सुन्दर पंखों पर
काटने के लिए
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी।
बहुत दर्द
बहुत पीड़ा
सहने की कोशिश
बहुत…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 23, 2016 at 12:48pm —
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छब्बीस जनवरी
दो हजार एक
भारत का
बावनवां गणतंत्र दिवस
खुशियां थी अपार
सारी खुशियाँ
एक झटके से
बह गई ।
दिन चढ़ते ही
शुरू हुआ
विनाश का तांडव
अटारियाँ सारी
एक झटके से ढह गई ।
लील गया
हजारों जिंदगियां
लाखों घर
हुए नेस्तनाबूत।
गुजरात प्रांत
इक्कीस जिले
जलजले से
सारे हिले।
लाखों लोग
बेघर हो गए।
गांव के गांव
शहर के शहर
मिट्टी में मिल गए
जमींदोज हो…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 17, 2016 at 7:46pm —
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हम भारत के शूरवीर
जाने न देंगे कश्मीर
यह सिर का ताज हमारा है
हमें प्राणों से भी प्यारा है।
ठण्डी-ठण्डी इसकी हवाएँ
झर-झर बहते इसके झरने
हृदय सी गहरी वादियां इसकी
बड़े सुन्दर हैं इसके दर्रे
अखण्ड यह भारत सारा है
यह सिर का ताज हमारा है
हमें प्राणों से भी प्यारा है।
हम हिन्दू सिक्ख या मुसलमान हैं
हम सबका वतन हिन्दुस्तान है
हिन्दू मुस्लिम का ये किस्सा
नहीं हमारी संस्कृति का हिस्सा
ऊँच-नीच और जाति-पाति
फूटी आँख हमें न…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 12, 2016 at 7:42pm —
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धन दौलत के फेर में, फैल रहा अन्धेर।
गुरु मारग पै चालिये, ना भटकेगा फेर।1।
दया धर्म अरु ज्ञान बिन, मिथ्या है अभिमान।
गुरु बिन तीनों ना मिलैं,सम हैं गुरु भगवान ।2।
दया धर्म सब व्यर्थ हैं, व्यर्थ पड़ा सब ज्ञान।
शीश झुके गुरु चरण में, मिले सन्त सुजान।3।
गुरु की राह न त्यागिये, यही गुणों की खान।
गुरु को छाड़ैं ना मिलै, कहीं प्रेम आराम।4।
गुरु बिन गति हो ज्ञान की, जैसे धनु बिन बाण।
सच्चे गुरु की ओट में, पूरे हों…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 4:00pm —
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अपनी मिट्टी से पैदा हुई
कपास की बाती
अपनी मिट्टी
अपने खेतों की
सरसों का तेल
अपने घर में
बिलोया गया
शुद्ध देशी घी
अपने कुम्हार के चाक पर
बना अपनी मिट्टी का
दीपक
जलना चाहिए
अपनी मिट्टी पर
अपने मान पर
अपनी मर्यादा पर
अपने शिखर पर
खासकर
अपने मन पर।
कह दो पडोसियों से
वापस ले जाएं
अपनी चमचमाती चीजें
चिरागों के मौसम में
चमकेंगे हमारे चिराग ही हमेशा
शहीदों की चिताओं पर
आँखें…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 7, 2016 at 10:56am —
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मरीज के
मर्ज का इल्जाम
मरीज पर आ रहा है
आश्चर्य नहीं
इस दौर में
मरीज को
मरीज
खींचे जा रहा है ।
क्या
किसी की
नजर में
बीमार
बीमार है?
मगर
स्वस्थ दिखने वाले
कितने
लाचार हैं ।
जन-जन
कण-कण
समस्त पर्यावरण
कौन
किसको
दवा दे?
क्योंकि
चिकित्सक और दवाखाना
दोनों
बीमार हैं।
सुरेश कुमार ' कल्याण '
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 6, 2016 at 9:45am —
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कब तक सहन करूँ माथे पर, जुल्म सितम गद्दारों के।
भारत माता पूछ रही है, प्रश्न ओहदेदारों से।
लाँघी सीमा मानवता की, फिर से आग लगाई है ।
सोते वीरों पर जो गोली, तुमने आज चलाई है ।
फिर से मस्तक लाल हुआ है, कायर भीर प्रहारों से।
भारत माता पूछ----------।
हमला हुआ था संसद पर, मेरी आत्मा रोई थी ।
पठानकोट याद है सबको, कितनी जानें खोई थी।
कब तक रक्त बहेगा यूंही, राजनीतिक इशारों से।
भारत माता पूछ--------------।
उसके दिल पे क्या बीती है,…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 21, 2016 at 11:30am —
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हम हिन्दू हैं सिक्ख हैं या हैं मुसलमान,
लेकिन हिंदी से बना है हिन्दुस्तान।
हिंदी है एक ऐसी भाषा
जो जगाती प्यार की आशा
हिमाचल जम्मू हरियाणा
पंजाब यू पी हो या बिहार
चाहे कोई भी हो प्रान्त पर
हिंदी है हमारी शान
लेकिन हिंदी से बना है हिन्दुस्तान।
विश्व में है ये बोली जाती
कहीं पारया कहीं नैताली
फिजी में बोलते हैं फिजीबात
सरनाम में कहें सरनामी
फिजी मारिशस ट्रिनिडाड
गुयाना हो या सूरीनाम
लेकिन हिंदी से बना है…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 5:23pm —
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मेरी बेटी अब तुम जागो
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मेरी बेटी अब तुम जागो, पढ़ लिख कुछ बन दिखलाओ।
नहीं पैर की जूती औरत, दुनिया को ये बतलाओ ।
वक्त पुराना बीत चुका तू, घर की शोभा होती थी ।
झाड़ू पोंछा मार पिटाई, सिर पे बोझा ढोती थी ।
पढ़ना लिखना नहीं भाग में, अनपढ़ता में रोती थी ।
ज्ञान पुष्प बरसाकर सुन्दर, बगिया को तुम महकाओ।
मेरी बेटी अब तुम---------।
लीपा पोती चुल्हा चौका, सबको लगते हैं प्यारे।
औरत ने सदियों से बेटी, फूल खिलाए हैं…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 29, 2016 at 11:30am —
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गुस्से को शांति में बदलने
में वक्त लगता है......
अंधेरों से उजाले चमकने
में वक्त लगता है......
सब्र कर, कोशिशें अपनी
जारी रख
जंग लगे ताले को खुलने
में वक्त लगता है. ....
जब थक जाए तो रूक,
सोच, हिम्मत बुलन्द कर,
हर हार के बाद जीतने
में, वक्त लगता है. .....
फिर से महकेंगे तेरे
घर-आंगन,टूटे सपनों को जोड़,
बोल उठेगी तेरी आत्मा, टूटे को संभलने
में वक्त लगता है. ....
क्या सोच रहा भविष्य बारे,
भरोसा रख,
घटा जब…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 1, 2016 at 2:00pm —
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तमाशबीन नयनों को झुका रहने दो,
इन फड़कते लबों को भी कुछ कहने दो।
अगर हमसे खता कुछ हो गई,
खुद को तो तुम बेखता रहने दो।
इतने अधीर क्यों हो मिलने की खातिर,
हमें भी कुछ गम-ए-जुदाई सहने दो।
जल बिन मीन सा तड़प रहा मन,
बहती बयार को यार यूँ ही बहने दो।
चाँदनी भी है मौसम भी खुशगवार है,
मगर मन उदास है इसे उदास ही रहने दो।
जग हँस रहा है मेरी इन तन्हाइयों पर,
वहम करते हैं लोग इन्हें वहमी ही रहने दो।
मेरे खाक…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 4, 2016 at 10:21am —
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मेरी मौत पर आंसू न बहाना तुम,
मैं शहीद हूँगा इस देश की खातिर,
मेरी मौत पर एक जश्न मनाना तुम।
जिस मिट्टी में जन्म लिया,
इसकी रेत में खेलकर बड़े हुए,
पैरों से रौंदा जिसको मैंने,
अन्न खाया है जिस मिट्टी का,
मर जाऊं गर इस मिट्टी की खातिर,
मेरी मौत पर एक जश्न मनाना तुम ।
गर गिरें तुम्हारी आंखों से आंसू उस घड़ी,
मेरी तमन्ना है वो खुशी के आंसू हों,
इस पवित्र मिट्टी में समाते हुए,
मेरा कफन हरी वर्दी या तिरंगे का हो,
प्राण जाएं…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 28, 2016 at 6:41pm —
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एक पथिक से मैंने पूछा
किस बला का नाम कविता।
खुद इतराकर बोली कविता
सबके मन में बसी कविता।
जो तेरे अन्दर बोल रही
कोमलता का नाम कविता।
तेरे मुखमंडल पर छाई
हंसी खुशी का नाम कविता।
झील कविता पहाड़ कविता
शेरों की चिंघाड़ कविता।
कांटे कविता फूल कविता
पवन कविता धूल कविता।
सृष्टि की जड़ मूल कविता
जीवन के उसूल कविता।
छांव कविता धूप कविता
ज्ञान अज्ञान का सूप कविता।
स्नेह कविता अभिमान कविता
प्यार का है नाम…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 21, 2016 at 5:05pm —
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करके याद हमें अब दिल जलाते हैं वो,
बेवफाई का मातम अब मनाते हैं वो।
हमारे बीते हुए लम्हों को याद कर,
अब अपना पल पल बिताते हैं वो।
जाहिर हो जाता है उनके चेहरे पे गम,
खुशी के लम्हे भी गम में बिताते हैं वो।
खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,
दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।
हमें तरस आता है उनकी हालत पर,
पर हमारे सामने आने से कतराते हैं वो।
रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए,
फिर भी हमारी यादों में खो जाते…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 1:26pm —
12 Comments
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
अंधेरा देख तू खिन्न मत हो,
उजाला देख तू प्रसन्न मत हो,
न जाने फूल सी ये जिन्दगी
कब मुरझा जाए,इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
इन्सान से तू द्वेष न कर,
सच कहता हूँ भगवान से डर,
तुझे इसका फल तो पाना होगा,
'हम हैं राही प्यार के'इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।
मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 10:06am —
2 Comments
कंटीली राहों से
सीखा है जीना मैंने,
रात की गहराईयों से
सीखा है पीना मैंने।
बात करता हूं मैं
गुजरे वक्त की,
पत्थरों के पथ पर
पाया है नगीना मैंने।
पत्थरों से टकराकर
पत्थरों पे सिर झुकाया है मैंने।
अपनी विनम्रता की आंच से
पत्थरों को पिघलाया है मैंने।
वो हीरे मिले हों
या वो लोहा था,
सागर की लहरों के बीच
मोतियों को पाया है मैंने।
मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:56am —
6 Comments
मित्रों-सहयोगियो, तुम
रूको तो सही,
भागते हो किधर? कुछ
सुनो तो सही।
आसमां के तारों को,
तुम देखो तो सही।
चांद नजर आएगा,
तुम पहचानो तो सही।
चांद ही मेरी मंजिल है,
कदम बढाओ तो सही।
मंजिल मिल जाएगी हमें,
हिम्मत जुटाओ तो सही।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 19, 2016 at 5:12pm —
14 Comments
तपिश को कौन समझेगा
जलते शहर की
कुर्सी से जो मतलब ठहरा
विरोध प्रदर्शन धरने हडताल
दिहाडी को निगल गए
नहीं थमेंगे
गरीब को रोटी नहीं मिलेगी।
पहरेदार
सब कठपुतलियां हैं
सफेदपोशों की।
मजबूर
घोडे को लगाम जो लगी है
गरीब ने कहा
चलो गरीबों चलो कंगालो
मरने वालों को लाखों मिलते हैं
मरने चलें
दो-चार दिन का सूतक सही
दिहाडी-रोटी नहीं तो लाखों सही
पीछे वालों की जिंदगी
आराम से गुजरेगी।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 3, 2016 at 5:16pm —
41 Comments
जेठ तपता आषाढ तपता,
सावन भी तपता जा रहा,
जेठ की लू सावन में चलें,
समय बदलता जा रहा।
सावन में जब वर्षा होती,
कोयल कू-कू गाती थी,
मेंढक टर्र-टर्र करते थे,
बहारें राग सुनाती थी।
शीतल फुहारें झर-झर कर,
माथे से टकराती थी,
नई स्फूर्ति तन-मन में,
एकाएक भर जाती थी।
इंद्रधनुष के सात रंग,
जब याद मुझे वो आते हैं,
तीजों के त्योहार को
ताजा तभी कर जाते हैं।
इस सावन को नजर लग गई,
सावन तपता जा…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 4:30pm —
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नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
सूर्योदय से पहले
पक्षी चहचहा रहे होंगे
छोड कर निज नीड
नई तमन्नाओं के साथ
विचरण कर रहे होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
हम जहाँ भी जाएंगे
तमन्नाओं की राहों पर
कुछ हमसे खुश
कुछ हमसे खफा होंगे
नई तमन्नाओं के साथ
नए इरादे भी बुलन्द होंगे।
नई-नई राहें होंगी
नए-नए सहारे होंगे।
पहाड़ों में-वादियों में
मैदानों में-घाटियों में
कल्याण का ही सहारा होगा
दिलों…
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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 1, 2016 at 9:02am —
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