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पंख /सुरेश कुमार ' कल्याण '

पंख
---

पंख
जो
समय की मार से
हो चुके थे
जीर्ण-शीर्ण
मैंने
खूब फैलाने का प्रयास किया,
ताकि
विश्राम कर सकें
इनकी छत्रछाया में
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी।

मगर
जब वो जीर्णावस्था से
उबरे
जब पूर्ण छाया
देने ही वाले थे
चढ़ गए
मेरे
सुन्दर पंखों पर
काटने के लिए
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी।

बहुत दर्द
बहुत पीड़ा
सहने की कोशिश
बहुत की
मगर
असहनीय पीड़ा
कब तक
आखिर
कब तक
उफ न करता
मगर
नहीं समझे
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी ।

सहने की भी कोई
सीमा होती है
आखिर
अन्त में
अब कोशिश कर रहा हूं
अपने
फैले हुए पंखों को
समेटने की
कि कहीं
कटे हुए इन्हीं
पंखों के नीचे
दबने से
चोटिल न हों
मेरे अपने
मेरे अजीज
मेरे संबंधी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 27, 2016 at 9:36am
आदरणीय सतविंदर भाई जी सादर आभार ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 27, 2016 at 9:13am
आदरणीय सुरेश भाई जी बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हुई हाउ,ममानवीय स्वभाव की विसंगति का सुन्दर चित्रण।हार्दिक बधाई
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 26, 2016 at 6:23pm
श्रद्धेय श्री गिरि राज भंडारी जी रचना को सम्मान देने के लिए हार्दिक आभार । सादर ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:40am

आदरनीय सुरेश भाई , रिश्तों की हक़ीकत बताती भाव पूर्ण कविता के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 25, 2016 at 8:35am
आदरणीय श्री रामबली गुप्ता जी ये सब तो आप जैसे मित्रों का स्नेह है । रचना अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार । सादर ।
Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 1:09am
वाह वाह क्या अतुकांत है। बिम्ब विधान ने तो दिल छू लिया। बहुत खूब बधाई लीजिये इस बेहतरीन सृजन के लिए आद0 भाई सुरेश कल्याण जी।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 24, 2016 at 1:59pm
आदरणीय श्री ब्रजेश कुमार जी सादर आभार ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2016 at 7:33pm
बहुत ही सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 23, 2016 at 3:16pm
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब । यही सच्चाई है कि जिस वृक्ष की छाया में विश्राम करते हैं उसी पर कुल्हाडी चलाते हैं। रचना को समय व सम्मान देने के लिए हार्दिक आभार । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 23, 2016 at 2:56pm
जनाब सुरेश कुमार'कल्याण'जी आदाब,हमेशा से यही होता रहा है,अपने ही सगे संबन्धी ऐसा व्यवहार करते हैं कि मन तडप उठता है,बहुत ही भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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