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बता प्यार पाने किधर जाएं

डूबे हैं जो इश्क-ए-वतन में
बता प्यार पाने किधर जाएं।

भरा है अपने नैनों में पानी
बता दीदार पाने किधर जाएं।

जो तलवार न कर पाए जंगे इश्क में
इक नजर का नजारा उसको कर जाए।


माटी की महक के दीवाने जो हैं
बता तुझे छोडकर किधर जाएं।

इक दफा गुलाबों सा मुस्कुरा देना
तमन्ना है कि जिन्दगी संवर जाए।

मेहरबान रहना हमपे ए इश्के वतन
हौले-हौले शायद ये जिंदगी गुजर जाए।

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 10:34pm

आदरणीय सुरेश जी, मंच पर आपका स्वागत है. यहाँ उपलब्ध जानकारियों और आलेखों का लाभ लीजिये. इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:54pm

आदरणीय सुरेश भाई , अगर आपने गज़ल कही है तो अभी आपकी रचना गज़ल से बहुत दूर है । मंच मे उपलब्ध पाठ - गज़ल की बातें  का अध्ययन ज़रूर कीजियेगा । प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:45pm

आदरणीय सुरेश कुमार कल्‍याण जी अगर हम ये टिप्‍पणी दे कि गजल से पहले उसकी बह्र लिखना मंच का अनुशासन है जिसका पालन सब करते हैै तो आपको उसका पालन करने के लिये बह्र की जानकारी के लिये मंच पर उपलब्‍ध गजल की कक्षा और गजल की बातों का गहन अध्‍ययन करना होगा फिर निश्चित रूप से आप गजलों के साथ मंच पर अपनी उपस्‍ि‍थति दर्ज करांऐगे । आदरणीय समर साहब भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे है । सादर 

Comment by Samar kabeer on April 24, 2016 at 2:22pm
जनाब सुरेश कुमार कल्याण जी आदाब,ग़ज़ल में अभी बहुत प्रयास और अभ्यास की ज़रूरत है,ओबीओ पर ग़ज़ल की कक्षा का लाभ उठायें ।

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