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मंजिलें अपनी-अपनी

रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी

अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी

वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर

ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको

बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर

मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !



तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी

तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?

पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों  पर

शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !



मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला

वक्त को…

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Added by Arun Sri on February 16, 2012 at 12:05pm — 2 Comments

चले गये

बहुत सताया हमको अब वो दिन अंधियारे चले गये,

हमको गाली देने वाले गाली खाकर चले गये।

 

बहुत मचाई गुंडागर्दी तुमने शहरों-गावों में,

बहुत चुभाए कांटे तुमने धूप से जलते पांवों में,

आंधी जब हम लेकर आए तिनके जैसे चले गये।

 

जाने कितनों को रौंदा-कुचला था अपने पैरों में,

कितनों की इज्जत लूटी थी सामने अपने-गैरों में,

जब हमने हुंकार भरी तो पूंछ दबाकर चले गये।

 

बहुत विनतियां कीं थीं हमने लाख दुहाई दी तुमको,

रो रो कर…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 15, 2012 at 7:55pm — 1 Comment

आंखें

इन आंखों की गहराई में,

डूबा दिल दीवाना है.

मस्ती को छलकाती आंखें,

मय से भरा पैमाना हैं.



ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,

ये तो मन का दर्पण हैं .

दिल में उमड़ी भावनाओं का,

करती हर पल वर्णन हैं.



ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,

जीवन में ज्योति भरती हैं.

भटके मन को राह दिखाती,

पथ आलोकित करती हैं.



इन आंखों में डूब के प्यारे,

कौन भला निकलना चाहे.

ये आंखे तो वो आंखे हैं ,

जिनमें हर कोई बसना चाहे.

.…

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Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments

मन

पता नहीं क्यों मेरा मन॥ फ़िदा हुआ है आप पे॥

कर सिंगार मै कड़ी सामने॥ आप क्यों नहीं ताकते॥

देखो कलियाँ खिल रही है॥ ताक रही है आप को॥

बातो को कैसे सुन रही है॥ समझ रही है बात को॥

अब तुम भी तो समझ गए हो॥ क्यों नहीं फिर भापते॥

आँखों में अब तुम बसे हो॥ तुम ही मेरी जुबान हो॥

तुम तमन्ना हो मेरी॥ तुम ही मेरी शान हो॥

पा के मौसम की आहट॥ दिल को नहीं रोकते॥

Added by shambhu nath on February 15, 2012 at 12:30pm — No Comments

चमत्कार बेच के...

राह में खड़े हो यूँ घर-बार बेच के,

अपना बसा-बसाया ये संसार बेच के.
किसने तुम्हे सताया के करते हो ख़ुदकुशी,
लड़  रहे हो म्यान से,  तलवार बेच के!
बख्शेंगी तुम्हे क्यों ये समंदर की मछलियाँ!
खे   रहे  हो   नाव  यूँ  पतवार   बेच   के.
कैसी रवायतें   हैं ये  कैसा   समाज है?
दुल्हन खड़ी है हाट  में सिंगार बेच के!!
आवाज़ तेरी गूँज के रह जाएगी यहाँ,
तू फिरेगा यूँ तेरे अधिकार बेच…
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Added by AVINASH S BAGDE on February 15, 2012 at 11:00am — 4 Comments

एक लड़की ( हास्य)

 
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हंसती है.
प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती है .
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हंसती है.
रहती है मेरे पड़ोस में वो, कुछ चंचल - कुछ शोख है वो.
ना गोरी - ना काली है,…
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Added by satish mapatpuri on February 15, 2012 at 1:08am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रेम दिवस

प्रेम दिवस 

ख़त्म हो दिलो की कड़वाहट 
हर शख्स के चेहरे पे…
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Added by rajesh kumari on February 14, 2012 at 10:00am — 3 Comments

चले गये

आये थे हमसे लड़ने को पर शरमा कर चले गये,

जरा हाथ ही पकड़ा और वो हाथ छुड़ा कर चले गये।

 

छिप-छिप कर चिलमन से तुमने बहुत इशारे किये प्रिये,

ज़ख्म दिये हर बार जो तुमने सहा किये और सिया किये,

कस कर जरा कलाई थामी दैया कह कर चले गये।

 

बहुत किया बदनाम ’सरन’ को, सबसे मेरी बातें कीं,

एक एक का हाल बताया हमने जो मुलाकातें कीं,

हमने जब कुछ कहना चाहा, हया दिखा कर चले गये।

 

खूब पिटाया तुमने हमको यारों-रिश्तेदारों से,

खूब…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 14, 2012 at 5:57am — No Comments

लघु कथा माँ

माँ

    आज फिर घर पर बहुत झगड़ा हुआ। “अब मैं घर वापिस नहीं आउंगा, नदी में डूब कर मर जाउंगा।” गुस्से से अपनी माँ को बोलकर वो घर से निकल पड़ा।
    “माँ, मुझे माफ कर दे, उठ माँ! आंखे खोल। तू आंखे क्यों नहीं खोलती” दोपहर को जब वो गुस्सा शांत होने के बाद घर वापिस आया तो आंगन में पड़ी अपनी माँ से लिपट कर जोर जोर से बोल रहा था।

Added by Ravi Prabhakar on February 13, 2012 at 6:32pm — 2 Comments

वैलेंटाईन दिवस पर कुछ दोहे......

प्रेम तो है परमात्मा, पावन अमर विचार.
इसको तुम समझो नहीं , महज देह व्यापार.

प्रेम गली कंटक भरी, रखो संभलकर पांव.
जीवन भर भरते नहीं, मिलते ऐसे घाव.

'दर्पण' हमसे लीजिए, बड़े काम की सीख.
दे दो, पर मांगो नहीं, कभी प्यार की भीख.

मन से मन का हो मिलन, तो ही सच्चा प्यार.
मन के बिना जो तन मिले, बड़ा अधम व्यवहार . ... दर्पण

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 13, 2012 at 5:08pm — 8 Comments

चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है......

ज़ाहिर है पाक साफ़ तख़य्युल ख़राब है,

चेहरा तो चाँद सा है मगर दिल ख़राब है।

कहते हैं मुझसे चीख़ के रंजो मलाले दिल,

राहें तेरी हसीन थी मन्ज़िल ख़राब है।

अपनी अना के ख़ोल में जो खुद छुपा रहा,

उसने भी अलम दे दिया महफिल खराब है।

करते हैं शेख़ जी भी यहाँ ऐबदारियाँ,

इस दौर में तन्हाँ नहीं बातिल ख़राब है।

इक राह आख़िरी थी बची वो भी खो गई,

लगता है ये नसीब मुकम्मिल ख़राब है।

इक दौर में बुलन्दी मेरी…

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Added by इमरान खान on February 12, 2012 at 1:10pm — 7 Comments

दशहरा

दशहरा मनाते हर साल हम, 

पुतला जलाते सदियों बीतीं

 कहाँ मरा है रावण अब भी ?

कहा है सुरक्षित अब भी सीता ?.

.

 रंग गुलाल उड़ते थे कभी

आती थी जब जब भी होली

भर रहा है बच्चा वच्चा

बम बारूद से अपनी झोली 

.

खुशियों के दीप जलते थे

जगमग करती थी दिवाली

लपटें उठती हैं शोलों से

बस्ती जलती है अब खली

.

एकता का पाठ भूले हम

भूल गए मानवता के नारे

काम, क्रोध, लोभ की आग में

सुख शांति सब जल…

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Added by praveen singh "sagar" on February 12, 2012 at 10:00am — 1 Comment

पाँच हाइकू

 दिल लगाया.

वादे बहुत किये.

मोल चुकाया! 

*

बाज,बाज है.

गिद्ध, ' दृष्टि' रखता.

चालबाज है.

*

अजगर भी.

बैठ-बैठ के खाते.

अफसर भी! 

*

रंग-बिरंगी.

गलियाँ जीवन की.

बड़ी बेढंगी!

*

खून खौलता.

मुट्ठियाँ भींच जाती.

मुख बोलता.

*

अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on February 11, 2012 at 10:30am — 8 Comments

फिर क्यों ?

तुम .

मेरी चेतना के पंख

रूह के मंदिर में 

बजता भोर का शंख

मन की उड़ान 

देह की जान

बनती बिखरती कहानी

निर्मल निर्झर का

बहता हुआ सा पानी

फूलों की खुशबू

या वो पवन

जो लाती है वो जादू

जो बना देता है

मतवाला अक्सर .

तुम ही तो हो

ये सब .

फिर क्यों

कभी कभी

मैं हो जाता हूँ

तन्हा.

बताओ तो जरा…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on February 9, 2012 at 9:28pm — 1 Comment

मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको.....

हमनशीं राह पे बस और ना छल दो मुझको,
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।

मसनुई प्यार से अच्छा है के नफरत ही करो,
शर्त बस ये है के नफरत भी असल दो मुझको।

दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताजो महल दो मुझको।

मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।

डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।

Added by इमरान खान on February 8, 2012 at 2:46pm — 10 Comments

पुरुष और प्रकृति

जब उठाया घूंघट तुमने,

दिखाया मुखड़ा अपना

चाँद भी भरमाया

जब बिखरी तुम्हारे रूप की छटा

चाँदनी भी शरमायी

तुम्हारी चितवन पर

आवारा बादल ने सीटी बजाई ।

तुमने ली अगंड़ाई, अम्बर की बन आई

तुमसे मिलन की चाह में फैला दी बाहें,

क्षितिज तक उसने

भर लिया अंक में तुम्हें, प्रकृति, उसने

तुम्हारे…

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Added by mohinichordia on February 7, 2012 at 6:30am — 10 Comments

पत्नियाँ

डूबती इक नाव होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में मुस्कुराती पत्नियाँ।

 

बेसुरा संगीत होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में गुनगुनाती पत्नियाँ।

 

गूंजता अट्टहास होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में  खिलखिलाती पत्नियाँ।

 

मौन सा आकाश होती आदमी की जिंदगी,…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 7, 2012 at 4:42am — 11 Comments

दो जन्म

( दो जन्म )

हाँ , आज  हुआ है मेरा 

जन्म , 
एक शानदार हस्पताल में ....
कमरे में टीवी है ...
बाथरूम है ...फ़ोन है ....
तीन वक्त का खाना 
आता है .....
जब मेरा जन्म हुआ 
तो मेरे पास ...
डाक्टरों और नर्सों 
का झुरमट ....
मेरी माँ मुझे देखकर 
अपनी पीड़ा को 
कम करने की कोशिश 
कर रही है .....
हर तरफ ख़ुशी…
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Added by राज लाली बटाला on February 6, 2012 at 10:30pm — 21 Comments

मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,

मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,

-----------------------------

उछलॊ मत यार ज़रा,हालात तॊ समझॊ ॥

मैं कह रहा हूं कि, मॆरी बात तॊ समझॊ ॥१॥…



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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 6, 2012 at 10:00pm — 3 Comments

मासूम इश्क

देखें हैं हमने नज़ारे कई , शरारे कही  तो बहारें कई ,

लिखी-पढ़ी  है खूबसूरती की कई परिभाषाएं 

कही-सुनी है इबादत ए हुस्न की कई कवितायेँ …
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Added by Rohit Dubey "योद्धा " on February 6, 2012 at 9:00pm — 2 Comments

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