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October 2010 Blog Posts (168)

याद उस ग़रीब को भी कर लीजै

याद उस गरीब को भी ....
याद उस गरीब को भी कर लीजै
अदना सा था वो गोद में भर लीजै.
इरादा फौलादी था उसका, दोस्तों
नाम आज तो उसका भी ले लीजै.
पैंसठ में जो मार दी जुनूनी को, उसे
आज तक नहीं भूला, याद कर लीजै.
जय जवान-जय किसान का नारा दिया
जगाया भारत को उसे याद कर लीजै.
रहबर ही दुश्मनों से साज था, 'चेतन'
शास्त्री जी की आज तो खबर ले लीजै

Added by chetan prakash on October 2, 2010 at 7:30pm — 6 Comments

और बेहतर कलाम क्या करते

तेरे पहलू में शाम क्या करते

उम्र तेरी थी , नाम क्या करते



तेरी महफ़िल में हम जो आ जाते

लोग किस्से तमाम क्या करते



आसमां तेरा ये जमीं तेरी

हम जो करते मुकाम क्या करते



होश में आते हम भला क्यूँ कर

सारे खाली थे जाम , क्या करते



कशमकश आग की उसूलों से

मौम के इंतजाम क्या करते



सच के फिर साथ चल नहीं पाए

झूठ पे थे इनाम, क्या करते



कांच का था ये दिल जो टूटा है

इत्तला खासोआम क्या करते



जब से होने लगे… Continue

Added by vineet agarwal on October 2, 2010 at 2:11am — 3 Comments

"तमन्नायें..."



ज़िन्दगी... ... ...

देती रही तमन्नायें...

उन्हें सहेजती रही मैं...

खुद में... ... ...

इस उम्मीद से...

कि कभी... किसी रोज़...

कहीं ना कहीं...

इन्हें भी दूँगी पूर्णता...

और करूँगी...

खुद को भी पूर्ण...

जिऊँगी तृप्त हो...

इस दुनिया से...

बेखबर... ... ...



पर... ... ...

नहीं जानती थी मैं...

कि तमन्नायें होतीं हैं...

सिर्फ सहेजने के लिये...

इन समंदर…
Continue

Added by Julie on October 1, 2010 at 10:05pm — 5 Comments

..... कर दिया कमाल

वाह जनाब वाह, आप लोगों ने कर दिया कमाल ,

खुश हो गया हिंद, राम लला का मिल गया माल ,

तीन भाग में बट गया मिटीं सब मुश्किलात ,

कितना अच्छा था ये मौका दिखे सब एक साथ ,

अब गुजारिश मेरी सब से यही चाहे हिंदुस्तान ,

राम लला का मंदिर बने जो हैं देव तुल्य समान ,

गरिमा बढ़ जाएगी सब की देखेगा सारा जहान ,

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई साथ रहेंगे सिख ईसाई ,

चारो की ताकत से ही हिंद में नई जान हैं आई ,

कौन कहता हैं हम लड़ते पूरे विश्व से हैं सवाल ,

वाह जनाब वाह आप लोग कर… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 1, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

क्या लेना

क्या लेना





मुझे मंदिर से क्या लेना

मुझे मस्जिद से क्या लेना

मैं दिल से इबादत करता हूँ

मुझे राम, रहीम संग रहना

मैं गीता पढ़ सकता हूँ

गुरु ग्रन्थ साहिब रट सकता हूँ

कुरान और बाइवल मेरे दिल में बसे

मुझे इन सब के संग रहना

मुझे सियासत नहीं आती

बिलकुल भी नहीं भाती

इक सीधा सदा हूँ इन्सान

मुझे इन्सान बनके ही रहना

में 'दीपक कुल्लुवी' हूँ

मुझे है प्यार दुनिया से

मुझे सबसे मुहब्बत है

मुझे और नहीं कुछ… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 1, 2010 at 9:47am — 3 Comments

प्रिय ! मेरी बात सुनो

आप प्रकृति की अनुपम रचना है

मगर ...

कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन

बनावटीपन जैसा लगता है ॥

मैं आपको रंगना चाहता हूँ

प्रकृति के रंगों से ॥



मैं आपको देना चाहता हूँ

टेसू के फूलों की लालिमा

कपोलों पर लगाने के लिए ॥

मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी

देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥

फूलों के रंग -बिरंगे परागकण

माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥

और तो और

थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने

आपके लिए

लाजवंती के पौधों से ॥



इसके… Continue

Added by baban pandey on October 1, 2010 at 9:10am — 3 Comments

माही बह रही थी

माही नदी के पानी पर ढाक के पेड़ों की सुनहरी काली छाया , चांदी का वरक लपेटे बहता प्रवाह और किनारे की बजरी पर उगी नरम घास अनारो के कबीलाई मन के संस्कार बन चुके थे. उसका बचपन यहीं रेत में लोट-लोटकर उजला हुआ था. घंटों नदी के पानी में पैर डालकर बैठी रहती.छोटे-छोटे हाथ अंजुरी में पानी समेटते और हवा में कुछ बूंदें यूँ ही उछल जातीं. अनारो उन्हें लपकने की कोशिश करती और जब एक-आध बूंद उसके श्याम मुख पर गिरती तो खनखनाकर ऐसे हंसती कि सारा वातावरण उसकी हंसी से… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on October 1, 2010 at 7:30am — 6 Comments

सामयिक कविता: फेर समय का........ संजीव 'सलिल'

सामयिक कविता:



फेर समय का........



संजीव 'सलिल'

*

फेर समय का ईश्वर को भी बना गया- देखो फरियादी.

फेर समय का मनुज कर रहा निज घर की खुद ही बर्बादी..

फेर समय का आशंका, भय, डर सारे भारत पर हावी.

फेर समय का चैन मिला जब सुना फैसला, हुई मुनादी..



फेर समय का कोई न जीता और न हारा कोई यहाँ पर.

फेर समय का वहीं रहेंगे राम, रहे हैं अभी जहाँ पर..

फेर समय का ढाँचा टूटा, अब न दुबारा बन पायेगा.

फेर समय का न्यायालय से खुश न कोई भी रह… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 1, 2010 at 12:43am — 2 Comments

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