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और बेहतर कलाम क्या करते

तेरे पहलू में शाम क्या करते
उम्र तेरी थी , नाम क्या करते

तेरी महफ़िल में हम जो आ जाते
लोग किस्से तमाम क्या करते

आसमां तेरा ये जमीं तेरी
हम जो करते मुकाम क्या करते

होश में आते हम भला क्यूँ कर
सारे खाली थे जाम , क्या करते

कशमकश आग की उसूलों से
मौम के इंतजाम क्या करते

सच के फिर साथ चल नहीं पाए
झूठ पे थे इनाम, क्या करते

कांच का था ये दिल जो टूटा है
इत्तला खासोआम क्या करते

जब से होने लगे खुदा बौने
कीये झुक झुक सलाम, क्या करते

सूलियां और दिवार तलवारें
गर न होतीं निजाम क्या करते

फिर लड़े खूब मंदिरोमस्जिद
क्या खुदा करते, राम क्या करते

नाम तेरा ही बस लिखा हमने
और बेहतर कलाम क्या करते

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Comment by आशीष यादव on October 7, 2010 at 11:33pm
Dil to chahta h dil-o-jaan luta de. Kya shandar ghazal likhi hai.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2010 at 8:38pm
कांच का था ये दिल जो टूटा है
इत्तला खासोआम क्या करते,

वाह वाह, बहुत ही अछि ग़ज़ल पढ़ी है विनीत भाई, मैं देर से इसे देख पाया, मुआफी चाहता हूँ , बधाई कुबूल करे |
Comment by Hilal Badayuni on October 5, 2010 at 11:03pm
waah waah achchi ghazaal kahi hai

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"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
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