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ग़ज़ल

बातइतनी समझ में आई है |
झूठ ही आजकल सच्चाई है ||


सब में जलवा-नुमाँ, खुदा खुद है |
दहर है, ये जगह खुदाई है ||


हया,वफ़ा हैं किताबों में, इसलिए हर सू |
बे-हयाई है, बे-वफाई है ||


दावा बेकार है, किसी शेय पर |
सोच तक तो, यहाँ पराई है ||


जाँचना मत जहां में रिश्ते |
जिसने जांचे हैं, चोट खाई है ||


खेल ज़ारी है, जिंदगानी का |
जीत हारी है,मात पाई है ||

Added by Shashi Mehra on July 10, 2011 at 11:30am — No Comments

क्यों नहीं किसानों की चिंता ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है और अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को ही मानी जाती है। बावजूद, अन्नदाताओं की चिंता कहीं नजर नहीं आती। देश में भूमिपुत्रों की माली हालत बद्तर से बद्तर होती जा रही है और सरकार द्वारा महज नीतियां बनाने की बात की जाती है और जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं, वैसे ही किसानों से जुड़े मुद्दे भी रद्दी की टोकरी में डाल दिए जाते हैं। सरकार की ओर से कृषि बजट को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के बारे में जैसा प्रयास होना चाहिए, वैसा अब तक नहीं हो सका है। यही कारण है कि देश के…

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Added by rajkumar sahu on July 10, 2011 at 1:44am — No Comments

वलवले

किये अपने पे, पछताता बहुत है |
तड़पता है, जो तड़पाता बहुत है ||
वो महफ़िल में, भी समझे, खुद को तंहा |
हो तन्हाई तो, घबराता बहुत है ||
कहे न, हाल के बारे में, कुछ भी |
सिर्फ माझी को, दोहराता बहत है ||
दिखावे के लिए है, मुस्कराता |
वो दिल ही दिल में, गम खाता बहुत है ||
किनारा कर लिया अपनों से उसने |
उसे खुद पर, तरस आता बहुत है ||
वो अब गैरों में अपने ढूंढ़ता है |
'शशि' के पास वो आता बहुत है ||

Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 12:16pm — No Comments

शोर-ए-दिल

यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |

चला रहता है, यह थमता नहीं है ||



बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |

जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||



मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |

अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||



बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |

दुआओं में असर, लगता नहीं है ||



वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |

डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||



हमें लगता था, कि वह हस रहा है |

अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है…

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Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 10:30am — 1 Comment

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - एक-एक कर मंत्रियों पर गाज गिर रही है।

पहारू - हां, अब उनके भाग्य में जेल की रोटी लिखी है।





2. समारू - सुप्रीम कोर्ट के सख्त फैसलों से सरकारों की नींदे उड़ गई हैं।

पहारू - अब सरकारें कहां रह गई हैं, वो तो कठपुतली बनकर रह गई है।





3. समारू - राहुल बाबा, किसानों के दर्द को समझने निकले हैं।

पहारू - मगर यूपीए-2 के दर्द का मर्ज भी तो ढूंढना चाहिए।





4. समारू - सरकार, माओवादियों से वार्ता की तैयारी कर रही है।

पहारू - वार्ता के… Continue

Added by rajkumar sahu on July 9, 2011 at 2:04am — No Comments

अपनी लिखी पुस्तक शोर-ऐ-दिल से

अब मेरी आँख मैं, आँसू नहीं आने वाले |

लाख जी भर के, सता लें ये ज़माने वाले ||

अब तो शायद ही, किसी बात पे रोना आये |

हादसे इतने हुए, मुझको रुलाने वाले ||

जानता हूँ की नहीं लौट के, फिर आयेंगे |

जितने लम्हे थे, मेरे दिल को, लुभाने वाले ||

राह तकता हूँ, खुली आँख से सोते-सोते |

लौट जाएँ न कहीं, लौट के आने वाले ||

गैर होते तो, ज़माने से, गिला भी करते |

मेरे अपने हैं, मेरा चैन , चुराने वाले ||

कट तो जायेगी 'शशि', उम्र ये जैसे-तैसे |

हम भी रूठों… Continue

Added by Shashi Mehra on July 8, 2011 at 6:34pm — No Comments

सरस्वती वंदना

 

शुभ्र वस्त्र शांत रूप, नैनन में ज्ञानदृष्टि,

देवी हंसवाहिनी को हाथ जोड़ ध्याइये.…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 7, 2011 at 2:00am — 8 Comments

‘बाप भए चयनकर्ता तो जुगाड़ काहे न होए’

यह तो सभी जानते हैं कि आज क्रिकेट, भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक ग्लैमरस खेल है और खेलप्रेमियों में इस खेल का जुनून सिर चढ़कर बोलता है। देश-दुनिया में ऐसे भी खेल प्रेमी मिलते हैं, जिनके लिए क्रिकेट ही सब कुछ है तथा उनके पसंदीदा क्रिकेटर भगवान होते हैं। क्रिकेट के प्रति खेलप्रेमियों में दीवानगी इस कदर देखी जाती है कि वे अपना खाना-पीना को भी दरकिनार कर देते हैं। विश्वकप समेत अन्य कई टूर्नामेंट में एक-एक बॉल पर उनकी नजरें टिकी रहती हैं और यही क्रिकेट का रोमांच उन्हें बांधे भी रखता है। एक-एक बॉल…

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Added by rajkumar sahu on July 6, 2011 at 3:13am — No Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - भारतीय क्रिकेट टीम में श्रीकांत ने अपने बेटे का चयन किया है।

पहारू - बाप भए चयनकर्ता तो जुगाड़ कैसे न जमे।

 

2. समारू - मध्यप्रदेश में चिटफंड कंपनियों पर गाज गिरी।

पहारू - छग में भी ऐसा हो, तब तो।



3. समारू - केरल के मंदिर में एक लाख करोड़ का खजाना मिला है।

पहारू - यहां तो चवन्नी भी नसीब नहीं है।



4. समारू - छग में पीएमटी की परीक्षा तीसरी बार होने वाली है।

पहारू - देखना होगा, इस बार पेपर लीक कहां से होता है ?



5. समारू -…

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Added by rajkumar sahu on July 6, 2011 at 12:31am — No Comments

ठीक है क्या ?

चाँद से पुछो बेबसी चीज है क्या

रात भर यूँ जागना ठीक है क्या

 

उन लम्हो को सम्भाल कर रक्खा है

अश्क जो बहे आँखो से मीत है क्या

 

जाने वालो ने कभी मुडके ना देखा

दिलमे है आग जलता दीप है क्या

 

दर्दो जहाँ मे कदम बढा के चले

हार का हो यकिन तो जीत है क्या

Added by kalpana on July 5, 2011 at 8:00pm — No Comments

कविता

कविता एक सुन्दर माध्यम अभिव्यक्ति का,
कविता एक कल्पना स्वरचित!
कविता एक मधुर लय ताल शब्दों का,
कविता एक यथार्थ शब्दरचित !
कविता एक संगम भावनाओ का,
कविता एक संसार हस्तरचित!
कविता एक प्रेरणा मनुष्य की,
कविता एक शब्द रचना ओज-संचित!
कविता एक मंथन व्यथित हृदय का,
कविता एक पुकार हृदय प्रेरित!!

Added by Vasudha Nigam on July 5, 2011 at 1:00pm — 1 Comment

मेरी भावनाएं ...

एक दिन ,

भावनाओ  की  पोटली  बांध 

निकल  पड़ी  घर  से ,

सोचा,

समुद्र  की  गहराईयों  में  दफ़न  कर  दूंगी  इन्हें ..

कमबख्तों  की  वजह  से  ..

हमेशा  कमजोर  पड़  जाती हूँ  ..

फेक  भी  आई  उन्हें ..

दूर  , बहुत  दूर

पर  ये  लहरें  भी  'न' .--

कहाँ  मेरा  कहा मानती  हैं ..

हर  लहर ....

उसे  उठा  कर  किनारे  पर  पटक  जाती , 

और  वो  दुष्ट  पोटली ..

दौड़ती  भागती  मेरे  ही …

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Added by Anita Maurya on July 4, 2011 at 3:46pm — 15 Comments

हरे भरे हैं खेत सुहाने ,

हरे भरे हैं खेत सुहाने ,

देख के मचले ये दिवाने ,
जैसे होती सुबह की बेला ,
चिडियों का कोलाहल सुन के ,
उठ के प्रथम बैलो को ,
लगते हैं ये तो खिलने ,
हरे भरे हैं खेत सुहाने ,
देख के मचले ये दीवाने  ,
सुबह सुबह ले बैलो को ,
कंधे पे ये हल संभाले ,
दिन भर मेहनत करने वाले ,
शाम को लौटे थके हरे ,
सकून देती हरियाली ने…
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Added by Rash Bihari Ravi on July 4, 2011 at 12:00pm — 12 Comments

ममतामयी माँ



माँ
शब्दों में न बांधी 
जा सकने वाली परिभाषा,
कोटिश: दुखों में छिपी 
सुखों की एक अभिलाषा....
तुम्हारा आँचल 
अनंत गगन को भी, 
छोटा कर देता
तुम्हारा प्यार 
समुद्र से विशाल दुखों 
को भी कम कर देता....
कहा से समाया है ,
तुममे इतना…
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Added by Yogyata Mishra on July 4, 2011 at 11:14am — 2 Comments

श्रेय लेने का शुरूर

अक्सर देखा जाता है कि जब कोई उल्लेखनीय कार्य होता है तो उसका श्रेय लेने की होड़ मच जाती है और स्थिति मारामारी की बन जाती है। श्रेयमिजाजी लोग खास मिसाल पेश कर लेते हैं, तब वह इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने भी उतारू हो जाता है। भले ही वह किसी भी रूप में हों ? आज जहां देखें वहां, केवल श्रेय लेने की होड़ दिखती है। ऐसा लगता है, जैसे गली-गली में ‘श्रेय की दुकान’ खुल गई है और वहां से जो जब चाहे, तब ‘श्रेय’ खरीदकर ले लाए। जैसे, बाजार से हम सेब खरीद कर ले आते हैं। फिर अपना एकाधिकार जमाने में उसे कहां देर… Continue

Added by rajkumar sahu on July 4, 2011 at 12:28am — No Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

समारू - चवन्नी का अस्तित्व खत्म हो गया है।

पहारू - मगर, चवन्नी छाप लोगों की संख्या तो बढ़ रही है।





2. समारू - ऐश्वर्या राय की जल्द ही मां बनने की खबर है।

पहारू - लगता है, ‘मीडिया’ को ‘ऐश्वर्या’ से अधिक जल्दी है।





3. समारू - छग के पीएमटी परीक्षा फर्जीवाड़े में ओहदेदारों की संलिप्तता की चर्चा है।

पहारू - बड़े लोग हैं, बड़े कारनामे करने में कैसे गुरेज करेंगे।





4. समारू - छग में डीएड का पेपर लीक हो गया।

पहारू - यहां की परीक्षा… Continue

Added by rajkumar sahu on July 3, 2011 at 11:14pm — 1 Comment

narmadashtak : aadi shankaracharya - sanjiv 'salil'



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Added by sanjiv verma 'salil' on July 3, 2011 at 8:30pm — No Comments

क्या तुम आज स्कूल आओगे?

अब ये नही होगा.......... कल मुझसे मेरे छोटे भाई ने कहा की दीदी अब तुझसे ये कोई नही कभी कहेगा की आज स्कूल क्यो नही आई या क्या तुम आज स्कूल आओगी? बात बिल्कुल साधारण सी थी पर मे सारा दिन सोचती रही की ये बात कितनी सच हे . बचपन के साथ साथ ये सारे पल भी तो बीत गये जब सारी सहेलिया साथ स्कूल जाती और हर दिन एक दूसरे से पूछती थी की क्या कल स्कूल आओगी?

 

हमारी वो दुनिया ही…

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Added by monika on July 3, 2011 at 2:39am — 2 Comments

पीछे देखोगे साथ में भीड़ जुट जाएगी.

है अगर चाहत तुम्हारी सेवा परोपकार की,

तो जिंदगी समझो तुम्हारी पुरसुकूं पायेगी.

दुनिया में किसी को मिले न मिले

दुनिआवी झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी.



हैं फंसे आकर अनेकों इस नरक के जाल में,

मुक्ति चाह जब उनकी आत्मा तरपाएगी .

तब उन्हें देख तुमको हँसते मुस्कुराते हुए

जिंदगी जीने की नयी राह एक मिल जाएगी.



मोह अज्ञानवश फिर रहे भटक रहे,

मौत के आगोश में गर जिंदगी जाएगी.

अंत समय ज्ञान पाने की ललक को देखना

इच्छा अधूरी है ये मन में दबी रह… Continue

Added by shalini kaushik on July 2, 2011 at 12:43am — 2 Comments

कलम तलवार नहीं है

हर जगह आग है, शोला है, कही प्यार नहीं है

सकून दे सके आपको,ऐसी कोई वयार नहीं है //



कितना संभल कर चलेंगे आप,अब गुल में

हर पेड़ अब खार है,कोई कचनार नहीं है //





हंसी मिलती है,अब सिर्फ तिजारत की बातों में

रिश्तों का महल बनाने, अब कोई तैयार नहीं है //



अश्क पोछना होगा अब आपको,अपने ही रुमाल से

पोछ दे आपका अश्क,अब ऐसा कोई फनकार नहीं है //



माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम

शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //



जी भर लूटो ,खाओ , इस… Continue

Added by baban pandey on July 1, 2011 at 11:59am — No Comments

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