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यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||


बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||


मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||


बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||


वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||


हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है ||


हुआ करती थी इक, बस्ती यहाँ पर |
कोई जिसका निशाँ, मिलता नहीं है ||

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 9, 2011 at 11:23am

वाह वाह मेहरा साहिब एक एक शे'र आपने बहुत ही जोरदार तरीके से कहा है, ख्यालात की दृष्टि से देखे तो जबरदस्त है , अच्छी ग़ज़ल है, हालाकि मतला विहीन होने से थोडा सौंदर्य फीका हो गया है, मीटर पर कसने से और भी आनंद आएगा |

 

एक शे'र जिसका तारीफ़ अलग से करना चाहूँगा ......

 

वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||

 

दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |

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