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September 2014 Blog Posts (150)

हिन्‍दी दिवस पखवाड़े पर एक नवगीत

जन निनाद से ही

मंजिल तय हो

निश्चय ही। 

विश्‍वभाषाओं संग हो

हिंदी निश्‍चय ही। 

 

हिन्‍दी विश्‍वपटल पर चर्चित

पर्व मनायें 

अब समवेत स्‍वरों में

गौरवगाथा…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 8:41am — 6 Comments

ग़ज़ल -

रदीफ़- रही

काफ़िया -चलती , ढलती

अर्कान -२१२२,२१२२,२१२२,२१२

दायरों में ही सिमट कर जिंदगी ढलती रही

तुम फलक थे मैं जमीं औ कश्मकश चलती रही।

मायने थे रौशनी के रात भर उनके लिये

लौ दिये की थरथराती ताक में जलती रही।

दे रहा दाता मुझे खुशियाँ हमेशा बेशुमार

फिर कमी किस बात की जाने हमें खलती रही।

ज़िद ज़माने को दिखाने की रही थी बेवजह

जानि - पहिचानी मुसीबत कोख में पलती रही।

हौसला रखकर फ़तह का जंग हम…

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Added by dr lalit mohan pant on September 3, 2014 at 1:30am — 9 Comments

हिन्दी गीत

आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..

मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....

जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,

इसलिये हिन्दी को करें धारण

विश्व को आओ सच बतायें हम..

मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....

सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में

एक इतिहास जिसकी गाथा में 

अपनी गाथायें मत भुलायें हम...

आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....

संस्कृत रक्त में समायी है

देव भाषा वही बनायी है

अपने सम्मान को बढायें हम..

आओ हिन्दी पढें…

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Added by सूबे सिंह सुजान on September 2, 2014 at 11:00pm — 12 Comments

चुनरी निचोड़ रही थी।

बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी।

कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी।

चालक- परिचालक दोनों में

बस के चारों ही कोनों में

मची हुई होड़ा-होड़ी थी

सब्र सभी ने छोड़ी थी

इंद्रजाल का पाश पड़ा था

या फिर कोई नशा चढ़ा था

जिसने एक झलक भी पा ली

रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था

कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली।

जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली।

हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। …

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Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 2, 2014 at 10:00pm — 2 Comments

एक ग़ज़ल..भारती की शान हिंदी (हिंदी दिवस पखवाड़े पर)

हैं अनेकों धर्म भाषा, ...एक हिंदुस्तान है l

मातृभाषा हिन्द की, हिंदी हमारी जान है ll

--

देश की संस्कृति रिवाजों पर हमें भी गर्व हो l

भारती की शान हिंदी, . विश्व में पहचान है ll

--

नृत्य शंभू ने किया, डमरू बजा, ॐ नाद का l

देववाणी के सृजन से ..विश्व का कल्यान है ll

--

पाणिनी ने दी व्यवस्था व्याकरण की विश्व को l

हम सनातन छंद रचते ...गीत लय मय गान है ll

--

सूर तुलसी जायसी, ......भूषण कवि केशव हुए l

चंद मीरा पन्त दिनकर, काव्य मय…

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Added by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 4:00pm — 12 Comments

हिंदी दिवस पखवाड़े पर एक नवगीत

संस्कृत बृज अवधी

से सुवासित,

मैं हिंदी हूँ हिन्द

की शान।

बीते सात दशक

आजादी,

अब तक क्यों ना

मिली पहचान।



दुनियाँ के सारे

देशों में,

मातृभाषा का प्रथम

स्थान।

उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी

सबको,

आत्मसात कर दिया

है मान।

हिंदी दिवस मनाता

अब भी,

मेरा लाडला हिन्दुस्तान

बीते सात दशक......



मैं हूँ स्वामिनी अपने

घर की,

भाषा पराई करती

राज।

लज्जा आती मुझे

बोलकर,

इंगलिश…

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Added by seemahari sharma on September 2, 2014 at 3:30pm — 11 Comments

अमृता प्रीतम जी ... दर्द की दर्द से पहचान (विजय निकोर)

अमृता प्रीतम जी ... दर्द की दर्द से पहचान

स्मृतियों की धूल का बढ़ता बवन्डर ... पर उस बवन्डर में कुछ भी वीरान नहीं। कण-कण परस्पर जुड़ा-जुड़ा, कण-कण पहचाना-सा। प्रत्येक स्मृति से जुड़ी सुखद अनुभूति, बीते पलों को जीवित रखती उनको बहुत पास ले आती है, अमृता जी को बहुत पास ले आती है...कि जैसे बीते पल बारिश की बूंदों में घुले, भीगी ठँडी हवा में तैरते, लौट आते हैं, आँखों को नम कर जाते हैं...

आज ३१ अगस्त ... मेरी परम प्रिय अमृता जी का पुण्य जन्म-दिवस ... वह…

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Added by vijay nikore on September 1, 2014 at 5:00pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रिश्तों का अंतिम संस्कार ( एक अतुकांत चिंतन ) गिरिराज भंडारी

अच्छा ही करते हैं

कितना भी अपना हो

खून का हो या अपनाया हो प्यार से

मर जाने पर जला देते हैं

मुर्दा शरीर

न जलाएं तो सड़ने का डर बना रहता है

फिर इन्फेक्शन , बीमारी का भय

ज़िंदा लोगों के लिए खतरा ही तो है , किसी का मुर्दा शरीर

 

और फिर भूलने में भी सहायता मिलती है

कब तक याद करें

कब तक रोयें

जीतों को तो जीना ही है

अच्छा ही करते हैं जला के

 

कुछ रिश्ते भी तो मुर्दा हो जाते हैं / सकते…

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Added by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:30pm — 20 Comments

जनता जागरूक नहीं

विक्रमादित्‍य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्‍यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्‍हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।

विक्रमादित्‍य ने हुँकार भरी।

वेताल बोला- ‘देश भ्रष्‍टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्‍टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्‍यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्‍त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 1, 2014 at 3:00pm — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
हिन्दी भाषा पखवारे पर (नवगीत) // --सौरभ

अस्मिता इस देश की हिन्दी हुई

किन्तु कैसे हो सकी

यह जान लो !!

कब कहाँ किसने कहा सम्मान में..

प्रेरणा लो,

उक्तियों की तान लो !



कंठ सक्षम था

सदा व्यवहार में…

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Added by Saurabh Pandey on September 1, 2014 at 5:30am — 39 Comments

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