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क्या जलना नहीं आता..?

क्या जलना नहीं आता..?



जो लिखना चाहता था

वो चाहकर लिख न पाया

जो लिखता रहता हूँ

वो दिल को कहाँ भाता

यह मेरी…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 4, 2012 at 12:38pm — 9 Comments

चार रचनायें.....

  • (१) भूख

कभी-कभी मैं सोचता हूँ की

ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर

जैसे कोई रबड़ हैं

जो मिटा देती हैं

भूख को,

लेकिन असल समस्या

तो उस कलम की है

जो लिखती जा रही है,

भूख, भूख, भूख.....

  • (२) मेरा नाम

मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है

कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |

करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया

कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है…

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Added by AjAy Kumar Bohat on January 3, 2012 at 7:00pm — 10 Comments

छन्न पकैया

सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से  -

.

छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,

छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||

.…

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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments

नए वर्ष का नूतन गीत

टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत

आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत

 

नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरनें

तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के

उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है 

तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के 

 

भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत

आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत

 

 

साथ मेरे हो तेरी कोमल फूल सी ऊर्जावान…

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Added by Arun Sri on January 3, 2012 at 12:30pm — 5 Comments

कुंडलिया

नारा अन्ना टीम का , हो सख्त लोकपाल ।

ले आई कमजोर बिल , सरकार चले चाल ।।

सरकार चले चाल , करे है लीपा पोती ।
चलती थी ये चाल , जिन दिनों जनता सोती ।।
जाग उठा है देश , नहीं …
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Added by dilbag virk on January 2, 2012 at 9:59pm — 1 Comment

कहाँ जाऊं ......कहाँ जाऊं.....????

मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,

हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

.

यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,

परीशां हूँ मैं तनहा हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,

घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,

तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी…

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Added by इमरान खान on January 2, 2012 at 4:00pm — 10 Comments

काम काव्य -1

काम काव्य -1

..

.

आदम

ईव

या

मैं

तुम

जैसे

मेघ

धरा .

धरा प्यासी

व्याकुल बैचैन

मेघ लिये

बिना निंद्रा नैन

नारी सम तन

गुलाब सम कोमल

विचलित सा मन

देह जैसे अम्बु निर्मल

काया छरहरी

रंग मरमरी

रूप लावण्य बेमिसाल

मस्त हिरनी सी चाल

लघु जलद अंश

बन दस्त

हुए मदमस्त

चिपक गए देह से

आत्मिक नेह से

धरा पर .

दस्त चाल कपोलों…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 2, 2012 at 1:00pm — 2 Comments

चेहरा

 
आता है नजर 

वक़्त की…
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Added by AK Rajput on January 2, 2012 at 11:00am — 4 Comments

पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

का आभास हुआ

जब कुछ बच्चों को

घर की मुंडेर

पर चढ़कर

पतंग उड़ाते देखा

अलग अलग रंगों की

छटा बिखेरती,

ऊँची और ऊँची

चढ़ रही थी

आसमान में

परिंदे उड़ते हैं जैसे ।

 

मेरी पतंग ही रानी है

शायद यही सोचकर

लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,

दूसरी पतंग धराशायी

हो गई

दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी

फिर मांझा चढ़ाया

और दूसरे ही क्षण

उसकी शहजादी करने…

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Added by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments

सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं



सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं 

पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं



स्कूल की खिडकियों पे लगाए  कान सुनता है 

अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं 



जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है 

लोग…

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Added by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे

पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

 

वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है

उसके तराजू में सब एकसा तुलता है

भेद करे तो करे कैसे वो

न तो उसको तन दीखता है

न धन दीखता है

उसके दर्पण में बस मन…

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Added by shashiprakash saini on January 1, 2012 at 1:00pm — 2 Comments

सबको मुबारक हो, आना नये साल का.

दिल खोल गायें, तराना नये साल का.

सबको मुबारक हो, आना नये साल का.

खुशियाँ ही खुशियाँ, दिवाली ही दिवाली हो.

हर दिन सुहाना हो, रात मतवाली हो.

शांति- सुकून हो, नज़राना नये साल का.

सबको मुबारक हो, आना नये साल का.

प्यार बिना यारों, ये ज़िन्दगी बेकार है.

मिल्लत औ चाहत, अमन का आधार है.

सुख - समृद्धि हो, खज़ाना नये साल का.

सबको मुबारक हो, आना नये साल का.

मापतपुरी सबको हो,जलवा सिंगार का.

सबको सौगात मिले, उसके सच्चे प्यार का.

ऐसा हसीन हो,…

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Added by satish mapatpuri on January 1, 2012 at 3:30am — 8 Comments

तुम्हें बधाई मित्र.

बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.

अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र. 

तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.

देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.

अम्बरीष…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments

बीत यह भी साल गया

बीत यह  भी साल गया 





जिंदगी की पुस्तक से पृष्ठ कुछ निकाल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भूपेन्द्र हजारिका जगजीत हमे बहुत प्यारे थे |

देवानंद और शम्मी देश के दुलारे थे ||

उनको बड़ी क्रूरता से आज निगल काल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भृष्टाचार ख़त्म हो यह मन में सव विचारे है |

एक अन्ना काफी था यह तो फिर हजारे है…

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Added by Mukesh Kumar Saxena on December 31, 2011 at 8:57pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
फुलकी

(छंद - दुर्मिल सवैया)

जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी

कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी

तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…

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Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments

नया साल

शुभकामनाएं लिए

आ गया

नया साल

क्या हुआ है

हसरतों का हाल

कुछ शिकवे हैं

तुमको हमसे

हमको तुमसे

कुछ सतह…
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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments

नये है रंग

नये है रंग

रुत है नयी तस्वीर बनाने की

नये साज़ नयी आवाज़ में

कुछ नयी धुन गुनगुनाने की

नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की

खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की

नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की

जो बीता उसे सम्मान से विदा करे

और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की

लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की

दिलो से दूरियाँ  मिटाने की

बस यही गीत गुनगुनाने की

:शशिप्रकाश सैनी

Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments

अपनी गलतियों का बोझ आप ही ढोता हूँ

अपनी गलतियों का भोझ आप ही  ढोता हूँ

गंगा खुद मैली है मै वहा पाप नही धोता हूँ


पाप धोने के लिए बहुत है  आंख के  आसू
रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता…
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Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 3:00am — No Comments

अंधेरा है कितना

रातो के हो गए है पुजारी

कि दिन की खबर नहीं है

पैसे की है ये दुनिया

मेरा ये शहर नहीं है

दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना

ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना

आदमी अपने साये पे भी शक करता है

हाथ हाथ मिलाने से डरता है



पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ

की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ

नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी

बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी

हसी बेचीं है…

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Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

दुत्कार

एक रोटी का छोटा टुकड़ा जब दिल चाहा  तब डाल दिया . 
इस पर भी मैंने  खुश होकर वोह जब आया सत्कार किया .
मैं फिर भी नहीं समझ पाया की उसने क्यों दुत्कार दिया . 
उसके बच्चे मुझको प्यारे वे मोती हैं मैं धागा  हूँ .
मैं उनकी गेंद उठाने को दूर दूर तक भागा हूँ. 
वे मेरे संग दिन भर खेले मैंने भी उनको प्यार दिया .
मैं अब तक नहीं समझ  पाया कि  उसने क्यों दुत्कार दिया.
घर में मेरी कोई जगह नहीं इससे है मुझे इंकार…
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Added by Mukesh Kumar Saxena on December 30, 2011 at 5:33pm — No Comments

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