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January 2015 Blog Posts (202)

सच! विगत वर्ष की तरह.. (अतुकांत)

वर्ष फिर बीत गया

यूँ दे गया, अनुभव

जीने के

लड़ने के,  अंधेरों से

रौशनी के लिए

सत्य से सत्य को

छीन लिया

असत्य से असत्य

 

छोड़े भी और मांग भी लिए

अधिकारों को

थोड़ी सी घुटन में

राहों में चलते रहे

अपनों के साथ

अपनों के ही लिए

 

जान लिया, पहचाना भी

समझ भी तो गये

अँधेरा और दुःख

दोनो ही तो, चाहिए

रौशनी और सुख के साथ-साथ

बड़ा अच्छा लगता है

इनके बीच…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on January 1, 2015 at 7:28am — 10 Comments

हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !……..

हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !

तो मुझे बनना भी चाहिए उस पुरुष की तरह

जो बेरोजगारी की भेंट चढ़कर, अपने फर्ज़ निभाता रहे,

सुबह से शाम तक रोजी रोटी की जुगाड़ में

जैसे हो कोई जादूगर, जिसके हांथों में हो गरीबी का हुनर

टूटी चप्पलें और घिसते पेंट की मोहरी से, झलके उसकी गरीबी

और ये नाक वाले नेता, छीन सके हम गरीबों के मुंह का निवाला

और कह सकें “तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे नौकरी दूंगा”

जैसे हम गरीब हों बिना पेट के पुतले, पेट हो जैसे मेरा एक…

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Added by sunita dohare on January 1, 2015 at 1:00am — 9 Comments

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