हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !
तो मुझे बनना भी चाहिए उस पुरुष की तरह
जो बेरोजगारी की भेंट चढ़कर, अपने फर्ज़ निभाता रहे,
सुबह से शाम तक रोजी रोटी की जुगाड़ में
जैसे हो कोई जादूगर, जिसके हांथों में हो गरीबी का हुनर
टूटी चप्पलें और घिसते पेंट की मोहरी से, झलके उसकी गरीबी
और ये नाक वाले नेता, छीन सके हम गरीबों के मुंह का निवाला
और कह सकें “तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे नौकरी दूंगा”
जैसे हम गरीब हों बिना पेट के पुतले, पेट हो जैसे मेरा एक खुबसूरत डस्टबिन,
जिसमें ये दंभी नाक वाले दबंग नेता डाल सकें, घटिया राशन और घटिया चीनी
और मैं मुस्करा कर कहूँगा ................“प्लीज़ यूज़ मी”.............
हां मैं एक गरीब हूँ ! और अगर मैं एक गरीब पुरुष हूँ !
तो मुझे देखना होगा भ्रष्ट नेताओं का छल कपट
सहना होगा गरीबी नामक दर्द का दंश, वो भी इसलिए
क्योंकि भुखमरी गरीबों की बपौती है जिन्होंने देखी नहीं थाली में रोटी है
मेरी तरह एक गरीब माँ असहाय है और बेबस है
भूख से तडपते बच्चे को देखकर, उसकी आँखों में आसूं हैं
ठंडी चूल्हे की आग हैं, खौलती आंतें हैं, सूखी छाती, शून्य को तकती आँखें हैं
खाली पतीली में खडकते चम्मच की असहनीय आवाज़ उसे सहनी है
मैंने रोज यहाँ से गुजरते हुए, बच्चे को भूख से तडपते हुए देखा है
और मैं मुस्कराकर कहूँगा.......……..मुझमें सहने की छमता है ….....
हां मैं एक गरीब हूँ और अगर मैं एक गरीब पुरुष हूँ
तो मुझे उन् सारी परम्पराओं, नियमों, कायदों का अंधानुकरण करना ही है
जिन्हें बनाया गया है सिर्फ हमारे लिए कोई भी सवाल उठाए बिना
अगर कोई सवाल करूँगा, तो पेट की आग में दफ़न मासूमों का स्वप्न होगा
सरकार के विरुध कुछ ना कहना है बस सफ़र करते हुए गरीबी से लड़ना है
इसलिए मुझे चुप रहना है क्योंकि सुदामा की गरीबी मिटाने को श्री कृष्णा थे
अब इस कलयुग में न तो कोई श्री कृष्णा है ना ही कोई राजा हरिश्चन्द्र
हर बार सब गणतंत्र दिवस मनाएंगे, स्वतन्त्रता दिवस भी मनाएंगे
और मैं मुस्कराकर कहूँगा...........मैं भारत देश का निवासी हूँ......
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुनीता दोहरे ....
Comment
वैचारिक रचना के लिए बधाई आदरणीया. कविता का स्वर सहज है लेकिन उसका प्रभाव तीखा है. यह इस कविता की विशेषता है.. .
हार्दिक शुभकामनाएँ..
भाई सोमेशजी ने सही विन्दु उठाये हैं. उनके सुझाव सटीक हैं.
somesh kumar जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! त्रुटियों हेतु छमाँ करें ! सादर प्रणाम !!"
Hari Prakash Dubey जी, आपको भी मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ! बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर प्रणाम !!"
मिथिलेश वामनकर जी , बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर प्रणाम !!"
नव वर्ष की बधाई ,मंच पर आपकी पहली रचना से गुजर रहा हूँ |बेशक रचना बहुत अधिक भावुकता से लबरेज़ है और एक इन्सान की ,गरीब की ,विवशता की और इंगित करती है , कुछ टाइपिंग त्रुटी भी है ,जैसे ड़-ड ,विरुद्ध -विरुध ,पैन्ट -पेंट ,कृपया प्रभावी रचना में इनका ध्यान रखें ,
“तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे नौकरी दूंगा” ....इस रचना पर हार्दिक बधाई एवम् नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !आदरणीया सुनीता दोहरे जी !
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर जी , सबसे पहले तो आपको मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर प्रणाम !!"
मेरी तरह एक गरीब माँ असहाय है और बेबस है
भूख से तडपते बच्चे को देखकर, उसकी आँखों में आसूं हैं
ठंडी चूल्हे की आग हैं, खौलती आंतें हैं, सूखी छाती, शून्य को तकती आँखें हैं
खाली पतीली में खडकते चम्मच की असहनीय आवाज़ उसे सहनी है
मैंने रोज यहाँ से गुजरते हुए, बच्चे को भूख से तडपते हुए देखा है-------सुमधुर भाव् i अच्छी रचना i
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