Added by Lata R.Ojha on January 20, 2011 at 3:30pm — 8 Comments
Added by shikha kaushik on January 19, 2011 at 10:00pm — 6 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 19, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on January 19, 2011 at 6:37pm — No Comments
Added by R N Tiwari on January 19, 2011 at 4:30pm — 2 Comments
Added by Veerendra Jain on January 19, 2011 at 12:29pm — 8 Comments
प्यार में तुम.. Copyright ©
2011Photography by :- Jogendra Singh
प्यार में तुम जीते रहो ,
प्यार में तुम मरते रहो ,
प्यार में धोखा देते रहो ,
प्यार में धोखा खाते रहो ,
प्यार कहाती इबादत है ,
हाँ इस इबादत पर तुम ,
किसी की बली लेते रहो ,
प्यार पर बली…
ContinueAdded by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 19, 2011 at 12:03am — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 18, 2011 at 11:50am — No Comments
कुछ 'ऐसी' ज़िद है...
ऐसा 'फ़ितूर' है...
नहीं तलाशनी पड़ती...
कोई 'वजह'...
हंसने-रोने को...
नाराज हूँ 'खुद' से...
या 'किस' से... "क्यों"...
नहीं जानती...
जानना 'भी' नहीं चाहती...
चल रही जिन 'राहों' में...
जाते 'किस' मंजिल...
नहीं 'पहचानती'...
क्यों नहीं आता कोई मोड़ 'नया'...
जहाँ "थम" जाऊं...
ना 'थकती' चल-चल…
Added by Julie on January 18, 2011 at 12:00am — No Comments
Added by satish mapatpuri on January 17, 2011 at 3:30pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 17, 2011 at 11:58am — No Comments
यौवन आते ही उन्मुक्त हो उठे
उन्माद में भयमुक्त हो उठे
जमीं से कहा उगे थे जो
आसमा से उँचे हो उठे
पहली आजादी के अहसास से
खुलेपन की सास से
चलना कहा सिखा था
गिर पड़े उड़ने के कयास से
हवाओं से बाते करते थे
रफ़्तारो से मुलाकातें करते थे
कब मौत ने जिंदगी को पछाड़ दिया
हम तो आपसी हौड़ लगाया करते थे
फ़िक्र को धुआ करने मे
सूखे कंठ में मिठास भरने मे
कश लगाया पहली बार
हर…
ContinueAdded by Mayank Sharma on January 16, 2011 at 2:19pm — No Comments
उस दिव्य ज्योति की अंश मात्र..
हूँ उस असीम की कृपापात्र..
इस रंगमंच पे जीना है..
कुछ वर्ष-माह मुझे मेरा पात्र..
कुछ ज्ञान कहीं जो सुप्त सा है..
उसको जड़ता से…
Added by Lata R.Ojha on January 16, 2011 at 4:30am — 2 Comments
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on January 15, 2011 at 9:00pm — 1 Comment
Added by Bhasker Agrawal on January 15, 2011 at 2:00pm — 2 Comments
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on January 15, 2011 at 12:58pm — 4 Comments
रोज़ नहीं हम जैसा सोचें ॥
नींद उड़ा दे जो रातों की ।
सपना कोई ऐसा सोचें
बनती बात बिगड़…
ContinueAdded by Pradeep Singh Chauhan on January 15, 2011 at 12:36pm — 2 Comments
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on January 15, 2011 at 12:30pm — 4 Comments
Added by Raju on January 14, 2011 at 11:17pm — 4 Comments
Added by satish mapatpuri on January 14, 2011 at 3:30pm — No Comments
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