सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक-4
-------------- गतांक से आगे -------------------------
प्रो. सिन्हा के फ़ोन उठाते ही उधर से आवाज़ आई थी --- "मैं आपको एक बहुत बूरी खबर दे रहा हूँ प्रो.साहेब,जिस प्लेन
से सोनाली सरकार आ रही थीं--------------- वह क्रैश कर गया ----------- सी इज नो मोर -----------" टेलीफोन का बेजान
चोंगा उनके हाथों में झूल कर रह गया.बगल में बैठ कर होमवर्क कर रहे अपने आठ वर्षीय पुत्र पर एक नज़र डालते हुए
वह बाथरूम में जा घुसे थे. परिवार वालों ने उन पर दूसरी शादी के लिए काफी जोर डाला, यहाँ तक कि उनके बाल -
सखा एवं सहकर्मी,हिंदी के प्रोफ़ेसर वेणुगोपाल त्रिपाठी से भी उन पर दबाव डलवाया पर प्रो.सिन्हा टस से मस नहीं
हुए.प्रो.सिन्हा ने यह कहकर प्रो.त्रिपाठी का मुँह बंद कर दिया था कि मैं तो अपने बेटे का मुँह देखकर ज़िंदा हूँअन्यथा
सोनाली के बिना जीने की कल्पना भी नहीं करता.प्रो.त्रिपाठी सिन्हा और सोनाली के प्रेम- प्रसंग के राजदार थे और
सिन्हा साहेब की मन:स्थिति को भली भांति समझते थे,लिहाजा वे चुप्पी साध लिए.
प्रो.सिन्हा जब भी तनाव में होते तो प्रो.त्रिपाठी के पास चले जाते. त्रिपाठी जी ही एकमात्र व्यक्ति थे जिनसे
सिन्हा साहेब अपने दिल की बात खोलकर कह सकते थे.वह प्रो.त्रिपाठी के यहाँ जाने के लिए घर से निकलने ही
वाले थे कि किसी ने कालवेल बजाया.दरवाजा खोलते ही प्रो.सिन्हा चौंक पड़े---------------- सोनाली एक अधेड़ आदमी
के साथ दरवाजे पर खड़ी थी. -------- " मैं डॉक्टर देवव्रत घोष हूँ."---------- साथ आये सज्जन ने नमस्कार करते हुए
अपना परिचय दिया. डॉक्टर घोष एक जाने-माने सर्जन थे,लिहाजा सिन्हा साहेब को उनका नाम मालूम था.
शिष्टाचारवश ने उन्होंने डॉक्टर घोष का आवभगत किया. बातचीत में डॉक्टर ने बताया कि सोनाली उनकी भांजी है.
हम मंदिर से लौट रहे थे. इसकी ईच्छा हुई कि आपको प्रसाद देते हुए चलें.सोनाली अपने पापा से बहुत प्यार करती थी.
आज उनकी पुण्यतिथि है. सोनाली अपनी माँ के साथ कलकत्ता में रहती थी.पिछले साल माँ का भी निधन हो गया तो मेरे पास यहाँ चली आई.सोनाली अनाथ है यह जानकर प्रो.सिन्हा के मन में पहली बार उसके लिए सहानभूति पैदा हुई और फिर सोनाली उनके यहाँ एक घंटा के लिए शाम को पढ़ने आने लगी.
प्रो.सिन्हा बड़े लग्न से सोनाली को साइक्लोजी पढ़ाने लगे.धीरे-धीरे उन्होंने महसूस किया कि सोनाली के
व्यवहार में एक बदलाव सा आता जा रहा है.वह अब पढ़ने में कम और उनके करीब आने और उन्हें स्पर्श करने
में ज्यादा रूचि लेने लगी है.वह किसी न किसी बहाने प्रो.सिन्हा के बिल्कुल करीब आकर सट जाती थी.एक बार
पेन्सिल छिलते वक्त ब्लेड से प्रो.सिन्हा कि अंगुली कट गयी तो सोनाली झट से उनकी अंगुली अपने मुँह में
लेकर चूसने लगी.अपनी दिवंगत पत्नी की हमशक्ल एवं हमनाम नवयुवती के सामीप्य का असर धीरे -धीरे प्रो.सिन्हा पर होने लगा.यौवन का धरातल फिसलन भरा होता ही है. धीरे - धीरे प्रो.सिन्हा के मन में सोनाली के
लिए अनुराग पैदा होने लगा.सोनाली घोष की सूरत में अब अक्सर प्रो.सिन्हा को सोनाली सरकार की सूरत नज़र
आने लगी.धर्म-अधर्म,सही-गलत,पाप-पुण्य दरअसल हमारी सोच एवं नज़र में होता है.जिस चीज को जिस सोच एवं नज़र से देखते हैं,हमें वह चीज वैसी ही दिखने लगती है.इंसान जो करता है उसे सही और उचित सिद्ध करने
के लिए हजार तर्क और उदाहरण खोज लेता है.प्रो.सिन्हा ने भी यह तर्क देकर कि ईश्वर ने उनकी सोनाली को
सोनाली घोष के रूप में लौटा दिया है.सोनाली घोष सोनाली सरकार कि स्मृति को सजीव रखने का सबसे अच्छा
माध्यम हो सकती है.सोनाली घोष का उनके जीवन में आना एक कुदरती संयोग है, सोनाली से प्यार करने को उचित माँ लिया.(क्रमश:)
---------------------- शेष अगले अंक में ---------------------------------------
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