रोज़ नहीं हम जैसा सोचें ॥
नींद उड़ा दे जो रातों की ।
सपना कोई ऐसा सोचें
बनती बात बिगड़ ही जाए ।
एक बहाना ऐसा सोचें ॥
खाली हाथ चला जाए वो।
नज़राना ही कुछ ऐसा सोचे।।
ना हो पाये मुकम्मल सौदा।
बयाना ही कुछ ऐसा सोचें॥
दूर रहे वो सदा सर्वदा ।
हमजोली कोई ऐसा सोचें ॥
प्यास मिटा ना सके किसी की।
अमृत कोई ऐसा सोचें॥
क्यों नाहक हम ‘हक़’ की सोचें।
सोचें तो “बेहक़” की सोचें॥
हमे पूजता रहे “प्रदीप” हमेशा ।
शागिर्द ही कोई ऐसा सोचें ॥
प्रदीप चौहान
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