वो इलेक्शन में खड़ा होने लगा है
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 23, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
मेरे भीतर एक आकाश
कई सूर्य ,कई चन्द्र ,कई आकाशगंगाएं
तारों की झिलमिलाहट
उष्णता, शीतलता, धवलता, कलुषता भी
संवेग, आवेग, आवेश का फैलाव
तो
प्यार, प्रेम, सुख और
आनंद की लहर भी…
ContinueAdded by mohinichordia on December 22, 2011 at 2:00pm — 5 Comments
वो तो बड़ा अकेला था,
Added by Yogyata Mishra on December 22, 2011 at 12:45pm — 5 Comments
छन्न पकैया-छन्न पकैया,छन्न के ऊपर बिंदी
Added by योगराज प्रभाकर on December 21, 2011 at 7:03pm — 12 Comments
क्या समझू उसे
जो समझ न आता है
सिर्फ छाता चला जाता है...
दिन का जाना समझू
या दिन का आना
स्थिरता है या अस्थिरता
है एक अनसुलझी पहेली
जिसे कोई समझ न पाता है....
ये तो वो है जो
सिर्फ छाता चला जाता है..
कही तो लेकर आता है
खुशियों की सुबह
और गम का सन्नाटा
कही छा जाता…
Added by Yogyata Mishra on December 21, 2011 at 11:17am — 2 Comments
हाइकु मूलतः एक कविता है। और, कविता होने की पहली शर्त है- रचना की काव्यात्मकता, कथ्य की मौलिकता और अभिव्यक्ति की सहजता। लेकिन हिंदी में हाइकु को केवल छंद के रूप में लिया गया है। इसमें इन तीनों चीज़ों का अभाव है। हिंदी में जो हाइकु लिखे जा रहे हैं वे 17 अक्षरों की क्रीड़ा मात्र बनकर रह गए हैं।
हाइकु जापानी भाषा की 17 वर्णों वाली विश्व की सबसे छोटी छंदबद्ध कविता है, जो सीधे मर्म को छूती है। हृदय में उमड़े हुए भावों को 5-7-5 के बंद में बाँधकर हाइकु कह दिए…
Added by Dr. Umeshwar Shrivastava on December 20, 2011 at 10:00pm — 7 Comments
एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .
कितने ही अपमान के बिष घट पीना पड़ता है.
जीने की जब चाह नहीं तब जीना पड़ता है.
तिरस्कार का कितना ही विष हमने रोज़ पचाया.
एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .…
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 8:05pm — 1 Comment
देख लो मन में भरी उमंग.
देख लो जीने का भी ढंग.
की जैसे उड़ती हुई पतंग.
नस नस में उठती नयी तरंग.
फिर ही कहते हो हमे अपंग.
कभी देखा है ऐसा रंग.
कभी पाया है ऐसा संग.
कभी है मन में बजी मृदंग
कही क्या खा आए हो भंग.
कहो फिर कैसे कहा अपंग.
माना है हम शरीर से तंग.
मगर हैं दिल से बड़े दबंग.
भरा है मन में जोश उचांग
लो पहले खेल हमारे संग.
हार जाओ तो कहो तड़ंग.
जीत पाओ तो कहोअपंग.
भले ही घुमओ नंग धड़ंग.
मगर ना हमको कहो…
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 7:17pm — 1 Comment
ज़िन्दगी हमे मोहताज़ नहीं बनाती है,
वो तो बस आईना दिखाती है,
मोहताज़ तो इंसान होता है,
हम ज़िन्दगी का नाम लगा देते है......
वक़्त कुछ ना है,
बस हमारी आत्मा की कमजोरी है....
आत्मा कही कमज़ोर होती है,
हम कहते है वक़्त निकल गया...
ये सिर्फ कहना है हमारा,
ऐसी सोच पर तरस आता है....
हम हाथ पैर वाले होकर
ये स्वीकारते हैं कि,
एक बिना साँस वाला वक़्त
हमे मोहताज़ बनाता ह...
Added by Yogyata Mishra on December 20, 2011 at 1:02pm — 1 Comment
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on December 20, 2011 at 12:14pm — No Comments
बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।
वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।
फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।
उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।
कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।
अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।
फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।
Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments
वो पल सबसे अच्छे थे
जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।
खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ
उन सांसों की सरगम से
मन को भिगो लेती हूँ
वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है
उन स्मृतियों से आँखों को
नम…
ContinueAdded by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
जाने वो किस जनम का,भुगत रहा है पाप.
Added by AVINASH S BAGDE on December 16, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
आइन्सटाइन ने कहा था की तीसरे युद्ध का तो पता नहीं मगर चौथा पत्थरों से लड़ा जायेगा.लेकिन आजकल तीसरे युद्ध की सुगबुगाहट शुरू हो गई है.इस युद्ध में किसी अस्त्र शस्त्र की जरुरत नहीं और ना ही किसी परमाणु या ड्रोन की , ये तो चुपके चुपके लड़ा जा रहा है.
Added by AK Rajput on December 16, 2011 at 1:30pm — No Comments
तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलाने की ?
या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए ?
नही न ?
कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !
चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला…
ContinueAdded by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments
लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments
माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |
अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…
ContinueAdded by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
झील हर इक कतरे को झूठ बताएगी
मछली निज आँसू किसको दिखलाएगी
लब पर कुछ झूठी मुस्काने चिपकाकर
कब तक वो अपने दिल को बहलाएगी
उसकी किस्मत में जीवन भर रातें है
वो भी आखिर कितने ख्वाब सजाएगी
हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी
किस्मत हमको कभी नही मिलवाएगी
................................,... अरुन श्री !
Added by Arun Sri on December 14, 2011 at 11:30am — 4 Comments
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