For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी हाइकु: एक परिचय

  
हाइकु मूलतः एक कविता है। और, कविता होने की पहली शर्त है- रचना की काव्यात्मकता, कथ्य की मौलिकता और अभिव्यक्ति की सहजता। लेकिन हिंदी में हाइकु को केवल छंद के रूप में लिया गया है। इसमें इन तीनों चीज़ों का अभाव है। हिंदी में जो हाइकु लिखे जा रहे हैं वे 17 अक्षरों की क्रीड़ा मात्र बनकर रह गए हैं।   
हाइकु जापानी भाषा की 17 वर्णों वाली विश्व की सबसे छोटी छंदबद्ध कविता है, जो सीधे मर्म को छूती है। हृदय में उमड़े हुए भावों को 5-7-5 के बंद में बाँधकर हाइकु कह दिए जाते हैं। कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक कह पाना हाइकु की विशेषता है और इसी में इसकी सार्थकता है। जापान में स्कूल  के बच्चों को हाइकु कविता का अभ्यास कराया जाता है। वहाँ उनके लिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर हाइकु प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती है। इससे विद्यार्थी शब्द की शक्ति को पहचानकर उसकी पूरी सामथ्र्य के साथ स्वयं को अभिव्यक्त करना सीखता है।
वर्तमान में हाइकु कविता का एक अंतर्राष्ट्रिय स्वरूप उभर रहा है। कुछ अंतर्राष्ट्रिय संस्थाएँ इस दिशा में सक्रिय हैं। कुछ वर्ष पूर्व जापान के भात्सुयामा नगर में इंटरनेशनल हाइकु एसोसिएशन की स्थापना हुई है। यहाँ से नियमित त्रैमासिक पत्रिका ‘गिन्यू’ निकलती है। अंग्रेज़ी और जापानी के द्विभाषी संकलन भी निकल रहे हैं। आॅनलाइन पत्रिकाएँ विभिन्न भाषाओं में निकल रही हैं। हिंदी हाइकु को भी इस अंतर्राष्ट्रिय धारा से जुड़ना चाहिए। हाइकु कविता अपनाने के पीछे मेरा पश्चिम के प्रति मोह कतई नहीं है। थोड़े में अधिक कहने के लिए हमें पष्चिम की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है। प्राचीन काल से हमने गंभीर-से-गंभीर और गहन विषय को सूत्रों के रूप में रचा है। गणित, ज्योतिष, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों की रचना हमने सूत्रों मंे की है, जिसकी व्याख्या के लिए बाद में टीकाग्रंथ लिखे गए हैं। मेरा उद्देश्य मात्र हिंदी हाइकु को  हाइकु की अंतर्राष्ट्रिय धारा के साथ जोड़कर स्वीकार्यता प्राप्त करना है।
कुछ उदाहरण-
1 छिड़ा जो युद्ध  - 5 वर्ण
 रोएगी मानवता  - 7 वर्ण
 हँसेंगे गिद्ध        - 5 वर्ण   (डाॅ जगदीश व्योम)
2 लटक रहा       - 5 वर्ण
 आयु की खूँटी पर - 7 वर्ण
 साँस का कुर्ता      - 5 वर्ण   (सत्यानंद जावा  )
3 नादिरशाह          - 5 वर्ण
 सदा नहीं रहते      - 7 वर्ण
 वक्त गवाह           - 5 वर्ण   (डाॅ गोपालबाबू शर्मा)
4 समुद्र नहीं           - 5 वर्ण
 परछाई खुद की      - 7 वर्ण
 लाँघो तो जाने        - 5 वर्ण   (कमलेश भट्ट ‘कमल’)
5 कहो पहाड़             - 5 वर्ण
 तुम्हारी देह है या      - 7 वर्ण
 हाड़-ही-हाड़              - 5 वर्ण   (राम सुमेर )

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on December 23, 2011 at 9:02am

हाइकू पर उपयोगी जानकारी के लिए हार्दिक आभार और साधुवाद | ओ बी ओ पर इस प्रकार कि विधाओं पर विमर्श और इनमें रचनाएँ हिंदी साहित्य के अमूल्य धरोहर हैं | इससे निश्चित ही साहित्य समृद्ध  होगा |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2011 at 1:57am

उमेश्वरजी, हाइकू पर आपका आलेख समीचीन लगा. ओबीओ के मंच पर इस विधा में अच्छी रचनाएँ (हाइकू) आयी हैं. उनपर आपकी दृष्टि रचनाकारों की संतुष्टि का कारण होंगी. 

आदरणीय योगराजभाईसाहब की बातों से इत्तफ़ाक रखता हूँ.

 

Comment by Dr. Umeshwar Shrivastava on December 22, 2011 at 4:55pm

अरुण जी ! आप तो हाइकु लिखने में पारंगत हैं, टायपिंग की त्रुटियाँ अपनी जगह हैं। 17-17  वर्णों में आपने बड़ी सारगर्भित बात कह डाली। बधाई स्वीकार करें।

Comment by Dr. Umeshwar Shrivastava on December 22, 2011 at 4:50pm

आदरणीय भाई प्रभाकर जी ! मेरे आलेख पर एक दृष्टि डालकर आपने मुझे अनुग्रहीत कर दिया। और, हिंदी हाइकु को अंतर्राष्ट्रिय ख्याति दिलाने हेतु आपने जो सुझाव दिए हैं, वे शिरोधार्य हैं। मुझे तो अभी तक यही मालूम था कि हाइकु विश्व का सबसे छोटा छंद है, परंतु आपने जो ज्ञानवर्धन किया है, इसके लिए मैं आपका आभारी रहूँगा। पुनः सादर धन्यवाद !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 22, 2011 at 1:02pm

भाई अरुण श्रीवास्तव जी, आपके सभी हाइकु कथ्य और शिल्प की दृष्टि से निर्दोष हैं. इन्हें ओबीओ पर अपने ब्लॉग में स्वतंत्र रूप में पोस्ट बना कर डाल दें.  (छठे हाइकु में "आकास" को "आकाश" कर लें.) 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 22, 2011 at 1:00pm
भाई उमेश्वर श्रीवास्तव जी

जापानी त्रिपदी हाइकु के बारे में आपका यह विचारोत्तेजक आलेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. इस विधा के बारे में आपने जो जानकारी साझा की है उसके लिए आपको ह्रदय से साधुवाद देता हूँ.

आपने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया है कि ५-७-५ की बंदिश वाली इस काव्य-विधा के साथ हमारे यहाँ अक्सर खिलवाड़ ही किया जाता है, अगर संजीदगी से इस पर काम किया जाए तो इस त्रिपदी के तीनो चरणों में तीन अलग अलग स्वतंत्र विचार अभिव्यक्त करने का स्कोप है. मैं आपकी बात से पूरी तरह इत्तेफाक भी करता हूँ कि हिंदी हाइकु को इतना सक्षम बनाया जाना चाहिए कि वह भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सके.

उस दिशा में पहला कदम ये होगा कि इस विधा के "टार्गेट औडिएंस" का निर्धारण. यदि हमारा "टार्गेट औडिएंस" केवल बुद्धिजीवी तबका है, तब तो इसका वर्तमान स्वरूप बिल्कुल सही है. लेकिन अगर इसका दायरा बढ़ाना है तो इसके कंटेंट्स और बनावट पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत पड़ेगी. उदहारण के तौर पर एक सामान्य पाठक की दृष्टि में यह विधा कोई कविता न होकर मात्र "बात" हो कर रह जाती है, वह इसमें कविता को देख ही नहीं पाता. अत: मेरा निजी मत है कि  अगर इस प्राय: नीरस और रसहीन समझे जाने वाली विधा को इस तरह कहा जाए कि इसमें गेयता और लयात्मकता का समावेश हो सके तो इसकी पहुँच यकीनन सामान्य पाठक तक हो जाएगी.

यदि आप ओबीओ पर पूर्व में संपन्न आयोजनों ("चित्र से काव्य तक" तथा "ओबीओ लाइव महाउत्सव") पर नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे की इस विधा में लय और गेयता लाने के लिए बहुत संजीदा प्रयास किए गए हैं और हाइकु को तुकांत में लिखे का प्रयास हुआ है. हमारे सम्माननीय साथियों आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, भाई अम्बरीष श्रीवास्तव जी, भाई गणेश बागी जी, भाई संजय मिश्र हबीब और इस खाकसार सहित बहुत लोगों ने हाइकु को तुकांत में कहने का प्रयत्न किया है. तुकांत में आ जाने के बाद न केवल इनका असर बढ़ा बल्कि पाठकों ने उन्हें दिल खोल कर सराहा भी है. अत:मेरा मानना है कि तुकांत में हाइकु लिखने की तरफ रुझान बढ़ना चाहिए. 

तुकांत में लिखने के अतिरिक्त यदि इनका विषय भी अपनी ज़मीन और मिट्टी से जुड़ा हुआ हो तो इस में चार चाँद लग जायंगे. अपनी विरासत, रस्म-ओ-रिवाज़, तथा इतिहास-मिथिहास को अगर हाइकु का विषय बनाया जाए तो इस विदेशी काव्य-विधा से भी अपनी मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुश्बू आने लगेगी.           .

पत्र-पत्रिकायों, ई-पत्रिकायों, साहित्य सभायों पर यदि कोई विषय/शब्द विशेष देकर रचनाकर्मियों को उस पर हाइकु  लिखने को कहा जाए तो इसका दायरा और विशाल होगा तथा इस विधा में बेहतर कहने वालों की निशानदेही भी संभव हो जाएगी.

आपने आगे फ़रमाया कि हाइकु दुनिया की सब से छोटी कविता है, मगर यह सही नहीं है. वास्तव में दुनिया की सब से छोटी कविता/छंद "एकाक्षरी" है जो १-१-१-१ की बंदिश से लिखी जाती है. यही नहीं अब हाइकु दुनिया की सब से छोटी त्रिपदी भी नहीं रही, आपको यह जान कर सुखद आश्चर्य होगा कि अब ओबीओ संस्थापक श्री गणेश बागी जी द्वारा अन्वेषित ३-५-३ की बंदिश वाली काव्य विधा "एकादशी" दुनिया की सब से छोटी त्रिपदी हो गई है. सादर.    

Comment by Arun Sri on December 21, 2011 at 1:36pm

सर , मैंने भी कुछ हिंदी हाइकू लिखा था ! मार्गदर्शन चाहूँगा !

१.
मैं न बरसा
बरसो बीत गए
झील प्यासी है

२.
तुम कहाँ ह़ो
दिल उदास सा है
पास आ जाओ

३.
हँसते होंठ
सुबह मैंने देखा
नयन रीते

४.
भ्रम मन का
डूबते का सहारा
एक तिनका

५.
ले शस्त्र टूटे
युद्ध को आया पुनः
मै पराजित

६.
घायल पंछी
नापता आकास है
देख साहस


...................अरुन श्री !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service