आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
बीते कल का फ़साना
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 4, 2012 at 2:00pm — 10 Comments
क्या जलना नहीं आता..?
जो लिखना चाहता था
वो चाहकर लिख न पाया
जो लिखता रहता हूँ
वो दिल को कहाँ भाता
यह मेरी…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 4, 2012 at 12:38pm — 9 Comments
कभी-कभी मैं सोचता हूँ की
ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर
जैसे कोई रबड़ हैं
जो मिटा देती हैं
भूख को,
लेकिन असल समस्या
तो उस कलम की है
जो लिखती जा रही है,
भूख, भूख, भूख.....
मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है
कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |
करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया
कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है…
Added by AjAy Kumar Bohat on January 3, 2012 at 7:00pm — 10 Comments
सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से -
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,
छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||
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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरनें
तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के
उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है
तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के
भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
साथ मेरे हो तेरी कोमल फूल सी ऊर्जावान…
ContinueAdded by Arun Sri on January 3, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
नारा अन्ना टीम का , हो सख्त लोकपाल ।
ले आई कमजोर बिल , सरकार चले चाल ।।
Added by dilbag virk on January 2, 2012 at 9:59pm — 1 Comment
मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,
हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.
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यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,
परीशां हूँ मैं तनहा हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,
घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी…
ContinueAdded by इमरान खान on January 2, 2012 at 4:00pm — 10 Comments
काम काव्य -1
..
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आदम
ईव
या
मैं
तुम
जैसे
मेघ
धरा .
धरा प्यासी
व्याकुल बैचैन
मेघ लिये
बिना निंद्रा नैन
नारी सम तन
गुलाब सम कोमल
विचलित सा मन
देह जैसे अम्बु निर्मल
काया छरहरी
रंग मरमरी
रूप लावण्य बेमिसाल
मस्त हिरनी सी चाल
लघु जलद अंश
बन दस्त
हुए मदमस्त
चिपक गए देह से
आत्मिक नेह से
धरा पर .
दस्त चाल कपोलों…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 2, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,
दूसरी पतंग धराशायी
हो गई
दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी
फिर मांझा चढ़ाया
और दूसरे ही क्षण
उसकी शहजादी करने…
ContinueAdded by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments
सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं
पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं
स्कूल की खिडकियों पे लगाए कान सुनता है
अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं
जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है
लोग…
Added by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है
जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे
पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है
तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है
वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है
उसके तराजू में सब एकसा तुलता है
भेद करे तो करे कैसे वो
न तो उसको तन दीखता है
न धन दीखता है
उसके दर्पण में बस मन…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 1, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
दिल खोल गायें, तराना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
खुशियाँ ही खुशियाँ, दिवाली ही दिवाली हो.
हर दिन सुहाना हो, रात मतवाली हो.
शांति- सुकून हो, नज़राना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
प्यार बिना यारों, ये ज़िन्दगी बेकार है.
मिल्लत औ चाहत, अमन का आधार है.
सुख - समृद्धि हो, खज़ाना नये साल का.
सबको मुबारक हो, आना नये साल का.
मापतपुरी सबको हो,जलवा सिंगार का.
सबको सौगात मिले, उसके सच्चे प्यार का.
ऐसा हसीन हो,…
Added by satish mapatpuri on January 1, 2012 at 3:30am — 8 Comments
बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.
अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र.
तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.
देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.
अम्बरीष…
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments
बीत यह भी साल गया
जिंदगी की पुस्तक से पृष्ठ कुछ निकाल गया |
करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||
भूपेन्द्र हजारिका जगजीत हमे बहुत प्यारे थे |
देवानंद और शम्मी देश के दुलारे थे ||
उनको बड़ी क्रूरता से आज निगल काल गया |
करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||
भृष्टाचार ख़त्म हो यह मन में सव विचारे है |
एक अन्ना काफी था यह तो फिर हजारे है…
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 31, 2011 at 8:57pm — 9 Comments
(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments
नये है रंग
रुत है नयी तस्वीर बनाने की
नये साज़ नयी आवाज़ में
कुछ नयी धुन गुनगुनाने की
नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की
खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की
नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की
जो बीता उसे सम्मान से विदा करे
और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की
लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की
दिलो से दूरियाँ मिटाने की
बस यही गीत गुनगुनाने की
:शशिप्रकाश सैनी
Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments
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