For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,999)

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

तूफान है बज़ीद के डुबोना ज़रूर है


जो मैरे साथ साथ है साए की शक्ल मैं

महसूस हो रहा है वही मुझ से दूर है


मोजों का यह सुकूत न टूटे तो बात हो

दरया मैं डूबने का किसी को शऊर है


देखा है जब से तुमको निगाहों मैं बस गये

हद्दे निगाह सिर्फ़ तुम्हारा ज़हूर है


दामन मैं सिर्फ़ धूप के दरया समाए हैं

सहरा को इस वजूद पे फिर भी गुरूर है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 17, 2010 at 7:00pm — No Comments

सच की जीत मनाएँ हम

सच की जीत मनाएँ हम



टूटे दिलों को एक मनाएँ हम



आज के दिन को एकता के रूप मैं मनाएँ हम



हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई एक होजाएँ हम



जीत हुई सच्चाई की



और रावण हार गया



छोड़ कर जीवन परलोक सिधार गया



सच्चाई के रखवालों ने



नेकी के करने वालों ने



एक एसा सबक़ सीखा दिया उसको



हमेशा के लिए मिटादिया उसको



सारे नेकी के करने वालों ने



उस को याद करेगें शेतानो मैं



राम का नाम रहेगा हर… Continue

Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30pm — 1 Comment

केशव माधव हरी हरी बोल ;



धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल

विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;



जन सेवा का लिया व्रत और स्वयमसेवक जो कहलाये

सघन पेड़ बरगद का जैसे ,फैलता फैलते ही जाएँ

श्रम साधित वन्दना हमारी मानवहित करते जाएं

बन कर भारती पूत अमोल केशव माधव हरी हरी बोल ;



धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल

विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;



डगर कठिन ये सफर कठिन हो हम को निज मंजिल… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 17, 2010 at 8:00am — 1 Comment

सच्चे मोती की हे तलब मुझ को

सच्चे मोती की हे तलब मुझ को
कितने दरया खंगालता हूँ मैं

ठोकरे एक सबक़ सिखाती हैं
खुद को गिर कर संभालता हूँ मैं

फिर भी तारों को छू नही पाता
लाख खुद को उछालता हूँ मैं

एक तबस्सुम सजा के होटो पर
दर्द को अपने पालता हूँ मैं

आओ दरयाओं पानी लेजाओ
अपने आँसू निकालता हूँ मैं

Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30am — 1 Comment

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना
तुम दर्द अगर हो तो फिर मुझ मैं बिखर जाना

रस्ता ना बताए गा मंज़िल के इलाक़े को
तुम खूब समझते हो तुमको है किधर जाना

वो आग उठा लाया सूरज के इलाक़े से
मैने था कभी जिस को साए का शजर जाना

रुकती हैं कहाँ जाकर यह इल्म नहीं कोई
हमने तो हवाओं को मसरूफ़े सफ़र जाना

ए शाम के शहज़ादो क्यूँ जश.न मैं डूबे हो
क्या तुमने अंधेरों को सामने सहर जाना

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 16, 2010 at 10:30pm — 1 Comment

माँ मुझे अपना आसरा दे दे

माँ को क़ुदरत सलाम करती हॅ

माँ को फ़ितरत सलाम करती हॅ



प्यार के सब बने पुजारी हैं

आस्था के बने भिखारी हैं



जब दिया मैं जलता हूँ

देख कर तुझ को मुस्कुराता हूँ



अपने सीने से तू लगा मुझ को

और स्नेह से तू सजा मुझ को



अपनी ममता का आसरा दे दे

अपने चरणो मैं तू जगह दे दे



फूल बनकर महकता जाऊँ मैं

और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं



मेरी माता महान है कितनी

यह हक़ीक़त जवान है कितनी



दरदे दिल की मेरे दवा… Continue

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 7:30pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
वो भारत (लघुकथा)

आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:

"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"

उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:20pm — 18 Comments


प्रधान संपादक
बेग़ैरत (लघुकथा)

महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:

"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"

"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !

तो उधर से एक और आवाज़ आई:

"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"

द्रौपदी ने शर्म से… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 23 Comments


प्रधान संपादक
मुलजिम (लघुकथा)

मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:

"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"

दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,

"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"

"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा

"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 7 Comments

बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है

बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है
हक़ीक़तों मैं जनाज़ा दिखाई देता है

चमक रहा था जो आकाश पर बना सूरज
ज़मीं पे आन के बोना दिखाई देता है

किसी चिता की यह जल कर बढ़ाएगा शोभा
वो एक दरखत जो सूखा दिखाई देता है

हमारी धरती पे नफ़रत के बीज बो के कोई
हवा के दोश पे उड़ता दिखाई देता है

हुआ ना आज भी सेराब बद दुआ लेकर
वतन से दूर जो भागा दिखाई देता है

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 6:30pm — 2 Comments

मिनौती





(हर नारी मिनौती है .. यहाँ दृश्य अरुणाचल का है , इसलिए बांस, धान , सूरज , सीतापुष्प , पहाड़ के बिम्ब भी उसी प्रदेश के हैं. बरई, न्यिओगा वहाँ के लोक जीवन से जुड़े गीत हैं - जैसे हम बन्ना- बन्नी , आला , बिरहा से जुड़े हैं ... इस संगीत को बांसों से जोड़ा है .. जैसे बांस के खोखल से निसृत होकर ये मिनौती की आत्मा में पैठ गए हैं ... नारी के मन और आत्म को समझाते हुए पुरुष से अंतिम प्रश्न पर कविता समाप्त होती है ...)

मेरे बांस



पहचानते… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on October 16, 2010 at 5:00pm — 6 Comments

यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी

यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी
मेरी आँखो के करे आके नज़ारे वो भी

सिर्फ़ बाक़ी हे तेरी याद का हल्का सा दिया
यादे माज़ी के छुपे सारे सितारे वो भी

खुदगर्ज़ जेहन से मिट जाए अना की तस्वीर
अपनी पोशाक रयाकार उतारे वो भी

चाँदनी रात हे खूशबू की महक हे हर सू
आके दरया पे ज़रा ज़ुल्फ संवारे वो भी

जो बहुत दूर है. नज़रों से तखय्युल के परे
फलसफा कहता हे रोशन हैं सितारे वो भी

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

गज़ल - आंधियां चल दीं

आंधियां चल दीं आज़मानें सौ ,

गढ़ लिए हमने आशियानें सौ.



जिनकी हस्ती नहीं बसाने की ,

वो चले बस्तियां ढहानें सौ.



पुलिस के वास्ते बस एक थाना ,

माफिया के यहाँ ठिकानें सौ.



जीते जी तो हुआ न कोई एक,

अब मरा है चले नहानें सौ.



सफेदी ज़ुल्फ़ की यूँ ही तो नहीं ,

एक दिल यहाँ फसानें सौ.



लाख हैं बालियाँ चिडियाँ दस बीस,

खेत में बन गयीं मचानें सौ.



कटी उस ओर है खुशियों की पतंग,

लूटने चल दिए दीवानें… Continue

Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 4:03pm — 5 Comments

दोहे:-तंगी नट भैरव हुई

तंगी नट भैरव हुई और भूख मदमाद ,

महंगाई के कंठ से फूटे अभिनव राग.



हांथी की चिंघाड से दहके सब आधार,

साइकिल पंचर हो गयी और कमल बेकार.



महंगाई बढती गयी नहीं बड़ी तनख्वाह,

अभिनव इस सरकार को बहुत लगेगी आह.



योजना के संदूक पर बैठे सौ सौ नाग,

भूखा पेट गरीब का कैसे गाये फाग.



राजनीति के खेल में कैसी शह और मात,

संसद में सुबह हुई हवालात में रात.



स्वयं मलाई खा रहे हमें सिखाते योग,

सन्यासी के भेस में कैसे कैसे लोग.

(बाबा… Continue

Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 3:30pm — 1 Comment

हाय रे, भैंस की पूंछ..........

फिल्मकार भी कभी-कभी नहीं, अधिकतर अपनी फिल्मों के जरिए परिवार में परेशानियां ही पैदा कर देते हैं। बाॅबी देओल ने बरसात में नीला चष्मा पहना तो मेरा सुपुत्र ;फिलहाल सुपुत्र ही कहना पड़ेगाद्ध जिद पर अड़ गया कि उसे भी नीला चष्मा पहनना है, टीवी सीरियल पर कोमलिका नाम के कैरेक्टर को देखकर अर्धांगिनी ने चढ़ाई कर दी कि उसे भी कोमलिका जैसे गहने, सौंदर्य प्रसाधन चाहिए। इन सब परेशानियों से तो जैसे तैसे निपट लिया, पर सबसे बड़ी परेशानी पैदा की भैंस की पूंछ ने, अरे भई, मैं शाहरूख खान अभिनीत चक दे इंडिया की बात कर… Continue

Added by ratan jaiswani on October 16, 2010 at 11:30am — 2 Comments

थरथराते दोहे....

कोहरे से और बर्फ से, मिला हवा ने हाथ!

अबकी जाड़े में दिया, फिर सूरज को मात !! १



काँप रहा है भीति से, लोक तंत्र का बाघ!

संबंधों में शीत है, और फिजां में आग !!२



रिश्ते नातों में लगा, शीतलता का दाग !

काँप रही है देखिये, कैसे थर-थर आग !!३



फिर पतझड़ की याद में, वृक्ष हो गए म्लान!

छेड़ रहे हैं रात भर, दर्द भरी एक तान !!४



धूप भली लगती कहाँ, याद आ रही रात !

ऊष्ण वस्त्र तो हैं नहीं होना है हिमपात !!५



पहरा देती है हवा,…

Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 15, 2010 at 11:00pm — 4 Comments

"मैं और मेरा रावण"



इक अट्टहास... गूंजा...

पल को चौंक... देखा चारो ओर...

पसरा था सन्नाटा... ... ...

वहम समझ, बंद की फिर आँखें...

मगर फिर हुई पहले से भयानक, और ज्यादा रौद्र गूँज...

उठ बैठ... तलाशा हर कोना डर से भरी आँखों ने...

सिवाए मेरे और सन्नाटे के, ना था किसी का वजूद मगर...

तभी सन्नाटे को चीरती इक आवाज नें छेड़ा मेरा नाम...

कौन... ... ...???

बदहवास-सी... इक दबी चीख निकली मेरी भी...

तभी देखा... अपना साया... जुदा हो… Continue

Added by Julie on October 15, 2010 at 10:30pm — 17 Comments

अभी तो शहर मैं हंगामा बहुत है

अभी तो शहर मैं हंगामा बहुत है
फिर इस के बाद इक सन्नाटा बहुत है

हवाओं इक ज़रा झोंका इसे भी
चीरगे राह इतराता बहुत है

भला सूरज से कैसे लड़ सके गा
जो चिंगारी से घबराता बहुत है

हुआ क्या है मेरे चेहरे को आख़िर
उदासी को यह छलकाता बहुत है

मुझे महलों की ज़ीनत मत दिखाओ
मुझे मिट्टी का काशाना बहुत है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 15, 2010 at 8:30pm — 3 Comments

चंद अश'आर: तितलियाँ --- संजीव 'सलिल'

तितलियाँ



तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.

हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..

*

तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.

फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..

*

तितलियों को देख भँवरे ने कहा.

भटकतीं दर-दर, न क्यों एक घर रहीं?



कहा तितली ने मिले सब दिल जले.

कौन है ऐसा जिसे पा दिल खिले?.

*

पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.

गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..

*

बागवां के गले लगकर तितलियाँ.

बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया....

यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II



ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,

जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II



तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,

पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II



ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,

कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II



चला गया जो तू जल्दी जल्द उठने की ख्वाहिश मे,

तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो… Continue

Added by Veerendra Jain on October 14, 2010 at 11:43pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service