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दोहे:-तंगी नट भैरव हुई

तंगी नट भैरव हुई और भूख मदमाद ,
महंगाई के कंठ से फूटे अभिनव राग.

हांथी की चिंघाड से दहके सब आधार,
साइकिल पंचर हो गयी और कमल बेकार.

महंगाई बढती गयी नहीं बड़ी तनख्वाह,
अभिनव इस सरकार को बहुत लगेगी आह.

योजना के संदूक पर बैठे सौ सौ नाग,
भूखा पेट गरीब का कैसे गाये फाग.

राजनीति के खेल में कैसी शह और मात,
संसद में सुबह हुई हवालात में रात.

स्वयं मलाई खा रहे हमें सिखाते योग,
सन्यासी के भेस में कैसे कैसे लोग.
(बाबा रामदेव जी के सन्दर्भ में नहीं)

टाटा ने टाटा किया बिड़ला ने व्यापार ,
लोकतंत्र इस देश में हो गया बे-घर-बार.

बेटा है स्टेट्स में और बहू ब्रिटेन,
बाबा आजी गांव में लिए हाथ लालटेन.

बरमूडा की दौड में धोती को नहीं ठांव,
शहर तो आगे बढ़ गए पीछे रह गए गांव.

होली के हुडदंग में गया पड़ोसन घर,
बाबा के परसाद से निकले उसके पर.

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 4:45pm
अरुण भाई आप के सभी दोहें एक से बढ़कर एक है , खास कर के ...............
राजनीति के खेल में कैसी शह और मात,
संसद में सुबह हुई हवालात में रात.
सियासत का सच

स्वयं मलाई खा रहे हमें सिखाते योग,
सन्यासी के भेष में कैसे कैसे लोग.
ढोंगी बाबाओं का मायाजाल

बेटा है स्टेट्स में और बहू ब्रिटेन,
बाबा आजी गांव में लिए हाथ लालटेन.
एक हकीक़त

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