For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,987)

"समय और भाग्य"

"समय और भाग्य"

सब कुछ भले न सही, पर 

कुछ कुछ सबको मिला है ,

और यही कुछ कुछ एहसास कराता है की …

Continue

Added by Monika Jain on March 13, 2012 at 9:20pm — 7 Comments

तेरी याद



ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई

मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई

 

 

कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन

मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन

 

लाल पहनू , नीली पहनू,  हरी हो  या वसंती

पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे  चुभती

 …

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 13, 2012 at 9:03pm — 20 Comments

दिल कितनॆ करीनॆ सॆ रखतॆ हैं,,,,,,,,

दिल कितनॆ करीनॆ सॆ रखतॆ हैं,,,

----------------------------------------------------------

 …

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 13, 2012 at 6:30pm — 16 Comments

खुशबू के घर

दुआ जिनको सच्चे दिलों से मिले.

ऐसे बन्दे बड़ी मुश्किलों से मिले!
*
रहगुज़र जिनकी बस खार ही खार थी,
उनकी खुशबू के घर मंजिलों पर मिले.
*
क़त्ल करके खुले आम जो छिप गए,
सरे - शाम वो  महफ़िलों  में  मिले.
*
जिनकी बैठक शहर के अखाड़ों में थी, 
वक़्त आया तो  वे  बुजदिलो में मिले.
*
चार पैसे जो मुट्ठी में क्या आ गए,
यार बिछड़े हुये तंगदिलों में…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on March 13, 2012 at 11:04am — 6 Comments

कविता : - स्नेह अटल है !

कविता : - स्नेह अटल है !
 …

Continue

Added by Abhinav Arun on March 13, 2012 at 9:58am — 23 Comments

प्यार का आल्हा

चढ़ल जवानी कै उदल जब,देहिया गढ़ के ऊपर नाय।

नैना यकटक देखन लागे,पुरवा चले देह घहराय॥

चन्द्रमुखी जब तिरछा ताकै,तन के आरपार होइ जाय।

मारै मुस्की जब धीरे से,दिल कै टूक-टूक उड़ि जाय॥

उड़ै दुप्ट्टा जब कान्हे से,मानौ दुइ गिरिवर बिलगाय।

देख के गोरिक भरी जवानी,लरिके मंद-मंद मुस्काय॥

आओ पंचो प्यार कै आल्हा,सुनि लौ आपन कान लगाय।

अइसन मौका फिर जिन्गी में,शायद मिलै न कब्भो आय॥

जेका यह जिन्गी में कब्भो,प्यार के रोग लगा है नाय।

मानों वै मानो कै जोनी,आपन विरथा दिहिन… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 7:01am — 25 Comments

आगाज़...

मैनें कहा

कुछ और नहीं

सिर्फ वो ही

जो युगों से

सहा था...

सहा था फूलों नें

ख्वाबों में लहराते

सावन के झूलों नें

उन शब्दों नें

जो आ न पाए

लबों पर तुम्हारे ही

ज़ुल्मों से ...

सहा था उस प्यासे नें...

जो दम तोड़ गया

समंदर में रह कर

पर छू न पाया

पानी को जुबान से कभी.

सहा था उन पलकों नें...

जो युगों से भरी हैं

अनमोल मोतियों से

आतुर हैं

छलकने को

पर…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 12, 2012 at 11:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल



आँखों में भरे खूँ लिए तलवार खड़ा है 

करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है

.

दे दे तु मुझे अपनी दुआओँ का सहारा

चोखट पे तेरी आज ये बीमार खडा है

.

जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम

क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है

.

मरकर ही सही  आज ये एजाज मिला तो 

करने को मेरा आज वो दीदार खडा है

.

गर मुझको मिटाने का वो रखते हें इरादा

हसरत भी फना होने को तय्यार खडा…

Continue

Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 12, 2012 at 11:30pm — 18 Comments

चेहरे.....

चेहरे के पीछे

चेहरे है

उन पे कसे नकाब

बड़े तगड़े है..

मीठे बोलो के भीतर

तीखेपन का खंजर है..

घावों पे मरहम तो है

पर दाग बने गहरे है

लोग बने मदारी है.. और

समझे हमे जमूरा

मतलब की यारी है और

जमकर सीनाजोरी है

संभल संभल के हँसना है और

नाप तोल के कहना

मन के दुखड़े खोले तो

कहते है रोना धोना

खुल के जीने का

दम भर लो कितना भी

पर बच बच के है रहना

दुनिया गर…

Continue

Added by MAHIMA SHREE on March 12, 2012 at 5:30pm — 16 Comments

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

 

सफ़र कटने में अंदेशा नहीं है

मगर सोचा हुआ होता नहीं है

कई लोगों को छूकर जी चुका हूँ

नहीं…

Continue

Added by Abhinav Arun on March 12, 2012 at 4:39pm — 14 Comments

मैंने जीना चाहा था

सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था,

चाक कलेजे के ज़ख्मों को मैंने सीना चाहा था;

जो भी आया उसने ही कुछ दुखते छाले फोड़ दिए,

वहशत की आग बुझाने को मेरे सब सपने तोड़ दिए;

तेरे आँचल के धागों से रिसना ढकना चाहा था,

सुर्ख इबारत बयाँ करेगी- मैंने जीना चाहा था |

अपनी ही रुसवाई…

Continue

Added by Chaatak on March 12, 2012 at 11:31am — 22 Comments

तेरी याद

सोचा था

तेरी याद के सहारे

जिंदगी बीता लूंगा

अब न तेरी याद आती है

न ही जिंदगी के दिन ही बचे

जो बचे भी उनमें क्या तेरे मेरे

क्या सुबह, क्या शाम

बस एक ही तमन्ना है

जहां भी रहो मुझे याद करना

क्योंकि तुम याद करोगे तो

दुनिया से जाते वक्त गम न होगा

क्योंकि तुम, तुम हो और हम, हम

राहें जुदा हो गई तो क्या

कभी मिलकर चले थे मंजिल की ओर

अब तो सोच कर भी सोचता हूं

क्यों मिले थे हम और क्यों बिछड़े

सोचता हूं

तेरी याद को ही…

Continue

Added by Harish Bhatt on March 12, 2012 at 2:49am — 6 Comments

"कशमकश"

"कशमकश"

क्यों वक़्त से पहले ये वक़्त भागता सा लगे है मुझे. 

फिर भी क्यों ये ज़िन्दगी थमी सी लगे है मुझे ?

एक अजीब सी कशमकश है! क्या? मालूम नहीं.

पर कभी सब पास तो कभी सब दूर सा लगे है मुझे.…

Continue

Added by Monika Jain on March 12, 2012 at 2:18am — 4 Comments

बहुत जरूरी है|

पिछली बातों को दुहराना बहुत जरूरी है|

कल को सब बातें बतलाना बहुत जरूरी है|

बहुत जरूरी है अपनी सब भूलों को लिखते जाना,

आशाओं के दीप जलाना बहुत जरूरी है|…

Continue

Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 11, 2012 at 6:33pm — 11 Comments

सनम मैं क्या लिखूं.....

सनम मैं क्या लिखूँ .............

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते तीर को.

दिखे चेहरा तेरा जिसमे, उस दर्पण को,

या, प्यार में सब कुछ समर्पण को .

या फिर लिखें अपनी फूटी तकदीर को.

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते हुए तीर को.

सनम मैं क्या लिखूँ .............



लिखूँ तुम्हारे रेशमी बालों को,

या उनमे उलझे सारे सवालों को.

लिखूँ अपने दिल की पुकार को,

या तुम जैसे संगदिल यार को.

बंध गई जिसमे मुहब्बत, लिखूँ उस…

Continue

Added by praveen singh "sagar" on March 11, 2012 at 4:00pm — 10 Comments

"पहाड़ी नदी"

मैं पहाड़ी नदी हूँ…

उसी स्वामी के अस्तित्व से उद्भूत होती

उसी का सीना चीरती, काटती

अपने गंतव्य का पथ बनाती

विच्छिन्न करती प्रस्तरों-शिलाओं को

विखंडनों को भी चाक करती…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 2:32pm — 17 Comments

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

---------------------------------

आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥

चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥

 

तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 1:42am — 15 Comments

भरोसा

दिल की धडकनों को महसूस करके देखो.

कुछ देर मेरे साथ चल के देखो.

तुम्हारे सारे ग़म में अपने सीने में छुपा लुंगी.…

Continue

Added by Monika Jain on March 11, 2012 at 12:30am — 6 Comments

हम बेघर भले

कौन कहता है जन्नत इसे,

हम से पूछो जो घर में फंसे।

न हिफाजत, न इज्जत मिली,

कर- कर कुर्बानी हम मर गए।

दुश्मनों की जरूरत किसे,

जुल्म अपनों ने ही हम पे किए।

हमने हर शै संवारी मगर,

खुद हम बदरंग होते गए।

अपने हाथों बनाया जिन्हें,

हाथ उनके ही हम पर उठे।

घर के अंदर भी गर मिटना है,

तो संभालों ये घर, हम…

Continue

Added by Harish Bhatt on March 10, 2012 at 1:44pm — 5 Comments

मांग मत अधिकार अपना

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,
ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए, बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है.
 
सैर को आये कभी जब, मान उपवन गाँव को,
खेत सूखे देख कर, गर्दन झुकी है, शर्म है.
 
कह दिया गर, 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
ज्ञान मिलता, सब्र और विश्वास रखना धर्म…
Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:00am — 25 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service