For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैनें कहा

कुछ और नहीं

सिर्फ वो ही

जो युगों से

सहा था...

सहा था फूलों नें

ख्वाबों में लहराते

सावन के झूलों नें

उन शब्दों नें

जो आ न पाए

लबों पर तुम्हारे ही

ज़ुल्मों से ...

सहा था उस प्यासे नें...

जो दम तोड़ गया

समंदर में रह कर

पर छू न पाया

पानी को जुबान से कभी.

सहा था उन पलकों नें...

जो युगों से भरी हैं

अनमोल मोतियों से

आतुर हैं

छलकने को

पर रुके हैं

किसी के नाम की

रुसवाई रोकने को .

पता है मुझे

तुम्हारे कमज़ोर

पहरे की ताकत !

जो लग नहीं सकता

उन धडकनों पर

जो धड़कती है

एक दूसरे से ही

साथ साथ !

साथ साथ ! !

दे कर

शाह और मात

तुम्हारे पहरे को.

देखो तो दर्पण में

अपने चेहरे को

जो हो चुका है विकृत

विरोध करके

अपने अंतर्मन

की आवाज़ का

सत्य व प्रेम

की आगाज़ का...

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Views: 405

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 14, 2012 at 11:21am

आदरणीय सर्व श्री सौरभ पाण्डेय जी , संदीप दिवेदी जी , प्रदीप कुशवाहा जी तथा  आदरणीया श्रीमती राजेश कुमारी जी ...हृदय से आभार ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 13, 2012 at 7:55pm

डाक्टर साहब !! इस अभिव्यक्ति पर मेरा सादर वन्दन लें.  प्रवाह के विरुद्ध कुछ भी एक जकड़न है. हर बिम्ब सामान्य वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, लेकिन प्रयुक्त हुए तो क्या ज़ादुई अनुभूति होती है.  वैसे तो हर इंगित आलोड़न-सा मचा देता है, लेकिन स्व-अंकुश की परिणति  -

देखो तो दर्पण में
अपने चेहरे को
जो हो चुका है विकृत
विरोध करके
अपने अंतर्मन
की आवाज़ का
सत्य व प्रेम
की आगाज़ का...  

वाह ! वाह !! वाह !!!

हार्दिक बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 1:55pm

मनोहारी कविता डॉ. साहब| भावपूर्ण अभिव्यक्ति|

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 13, 2012 at 11:07am

धन्यवाद .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 13, 2012 at 10:15am

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2012 at 8:00am

shaandar bhaavabhivyakti Ajay ji.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service