For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

---------------------------------

आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥

चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥

 

तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,

मिरॆ मिज़ाज़ नॆ मुझकॊ भी झुकनॆ नहीं दिया ॥

 

कुछ तर्कॆ-तआल्लुकात की दुश्वारियां तॊ थीं,

कुछ गर्दिशॊं नॆं भी मुझकॊ सम्हलनॆ नहीं दिया ॥

 

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

 

मॆरॆ सफ़ीनॆ का मॆरा अपना नाखुदा था वॊ,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ उतरनॆ नहीं दिया ॥

 

कॊशिशॆं तॊ बॆहिसाब की अपनॊं नॆ मगर,

गैरॊं की दुआवॊं नॆं मुझकॊ मरनॆ नहीं दिया ॥

 

बॆखबर है वॊ  ज़िन्दा हूं मैं जिसकॆ वास्तॆ,

उसकी खामॊशी नॆ इज़हार करनॆ नहीं दिया ॥

 

उसकॆ दामन पॆ तहरीर लिखता तॊ कैसॆ,

अश्कॊं की मानिंद मुझकॊ गिरनॆ नहीं दिया ॥

 

छॊड़ दॆता दर,गली,शहर,महफ़िल मगर,

उसकॆ एक वादॆ नॆ मुझकॊ मुकरनॆ नहीं दिया ॥

 

रॆत पर खड़ा था मॆरी मॊहब्बत का मकां,

बुनियाद  पॆ पत्थर तॊ उसनॆ धरनॆ नहीं दिया ॥

 

बड़ा कठिन है ज़मानॆ सॆ लड़ना "राज",

बुलंद हौसलॊं नॆ मुझकॊ बिखरनॆ नहीं दिया ॥

 

       कवि-राज बुन्दॆली

      ११/०३/२०१२

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 6:37pm

आनंद प्रवीण जी,,,,,,,,,बहुत-बहुत आभारी हूं आपका,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 1:05pm

मैं ओ.बी.ओ. परिवार का तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 12:13pm

बहुत-बहुत आभारी हूं बृजभूषण जी,,,,,आपकॊ,,,,,,,,,,,नमन

Comment by Brij bhushan choubey on March 12, 2012 at 11:55am

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

क्या  गंभीर बात कही है राज बुन्देली साहब बहुत खूब लाजवाब गजल |

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 11:40am

आप सभी को राज बुन्देली का प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 10:54pm

प्रदीप जी,,,,,,तहे-दिल से शुक्रिया आपका इस नाचीज को आपकी दाद मिली,

मैं धन्य हो गया एवं मेरा प्रयास सार्थक लगा मुझे,,,,,,,,,आदरणीय को प्रणाम,,,,,,,,,,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2012 at 9:02pm

संपूर्ण ग़ज़ल लाजवाब. बधाई. 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 4:31pm

अरुण जी ,,,,,तहे-दिल से शुक्रिया आपका इस नाचीज को दाद मिली आपकी मैं धन्य हो गया एवं मेरा प्रयास सार्थक लगा मुझे,,,,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 3:42pm

कवी जी हर शेर आपके बुलंद हौसले का परिचायक है | आपके इस जज्बे को सलाम है -

बड़ा कठिन है ज़मानॆ सॆ लड़ना "राज",

बुलंद हौसलॊं नॆ मुझकॊ बिखरनॆ नहीं दिया ॥

बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिए  !!

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 3:12pm

राजॆश कुमारी जी ,,,,,,

नारी-शक्ति को राज बुन्देली का प्रणाम,,,,,,

एवं,,,,,,,,,, हौसला आफ़जाई के वास्ते बहुत-बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service