For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,939)

" जालिम दुनिया"

साथ रहकर भी दूर हैं हम,
उनकी मजबूरियों के कारण मजबूर हैं हम;
उनकी चाहतो  को पूरा करूँ मैं हरदम,
पर बताते भी तो हैं वो मुझको कम;
कारण ये नहीं की जुदा हैं हम उनसे,
कारण तो ये है कि डरते है हम जगसे;
जग में कहीं उनकी जग हंसाई न हो जाये,…
Continue

Added by Smrit Mishra on September 11, 2011 at 10:28pm — No Comments

कोई आया है

 



रमिया बड़ी खुश थी । शहर जो जा रही थी - अपने पोते को देखने जाने का आखिर उसे मौका मिल ही गया था । यह अवसर बनने में समय लग गया और देखते देखते उसका पोता सात साल का हो गया था । महानगर की भागम-भाग भरी जिन्दगी में से न तो उसका बेटा ही समय निकाल पा रहा था और ना ही रमिया गाँव की अपनी खेती गृहस्थी में से समय निकाल पा रही थी । या यूँ कहें कि कुछ अधिक ही व्यस्त थे दोनों ही माँ-बेटे । और रमिया का पोता…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on September 11, 2011 at 8:30pm — 13 Comments

विरह गीत भाग (१)

हो गगन के चन्द्रमा तुम क्यों अगन बरसा रहे

देख कर बिरही अकेला क्यों मगन मुस्का रहे



मेरी धरती ने तुम्हे आकाश पर पहुंचा दिया

तुम भटकते ही रहे अब तक न तुमने कुछ किया

आज कर लो व्यंग्य कल तुम देख कर जल जाओगे

आज हूँ परदेश में कल पार्श्व में होगी प्रिया

इसलिए आगे बढ़ो जाओ जहाँ तुम जा रहे हो

हो गगन के चन्द्रमा ...........................



विरह में कितनी व्यथा है ये वियोगी जानते हैं

कोई क्या जानेगा केवल भुक्त भोगी…

Continue

Added by Yogendra B. Singh Alok Sitapuri on September 11, 2011 at 4:05pm — 4 Comments

सृजनहार ,तुम्हारी नगरी कितनी सुन्दर

आज

मुर्गे की बांग के साथ ही

प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .

रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,

गले लग रही थी

लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,

कलियाँ चटक रही थीं,

फूलों का लिबास…

Continue

Added by mohinichordia on September 11, 2011 at 2:00pm — 10 Comments

हाइकू

 

1. छब अपनी

   भूली मैं सांवरिया 
   तोसे मिल के 
2. बावरा मन
   पुकारे तेरा नाम 
   सुबह शाम 
3. उड़ा के खाक 
   अपने बदन की 
   पाया ये इश्क 
4. दर्द की पाती
   तुम बिन जीवन 
   रोए ये मन
5. क्या जीत हार 
   तुम बिन सनम 
   सब बेकार 
6. किसी बहाने 
   करूँ तेरी ही बात 
   दोस्तों के…
Continue

Added by Veerendra Jain on September 11, 2011 at 12:30am — 2 Comments

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

 

मैं कैसे कहूँ की मैं क्या चाहता हूँ |
सिर्फ आदमी मैं बना चाहता हूँ ||
ज़माने को देना बता चाहता हूँ |  
ज़मीं को मैं ज़न्नत-नुमाँ चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
तवक्को  से बहतर ज़हाँ चाहता हूँ |…
Continue

Added by Shashi Mehra on September 9, 2011 at 9:14pm — 1 Comment

मुक्तक

 हमने कुछ किया तो उसे फ़र्ज  बताया गया 

 उन्होंनें कुछ किया तो उसे क़र्ज/अहसान बताया गया 
आओ ! विसंगतियां  देखें जीवन की 
अपनी सुविधानुसार हमें शब्दों का अर्थ समझाया गया |


पाकर खुशी मेरे आँसू निकल पड़े ,
उन्होंनें समझा मै दु:खी हूँ 
मै…
Continue

Added by mohinichordia on September 9, 2011 at 9:00pm — 1 Comment

आकांक्षा

अन्तर्मन में तू रम जाये,

सांस सांस तेरा गुण गाये।

कण कण में तुझको मैं देखूँ,

नज़र पराया कोई न आये।

 

द्वेष न हो कोई भी मन…

Continue

Added by Kailash C Sharma on September 8, 2011 at 2:32pm — 3 Comments

दिल्ली में गहराता ही जा रहा है मुसीबतों का सम्राज

दिल्ली जो कि दिलवालों कि नगरी कहलाती है उसपर एक के बाद एक मुसीबते टूटती जा रही है.

यहाँ पर गोलीबारी, लूटपाट, चोरी, अपहरण, हत्या जैसी समस्या आम हो  गयी है, जहाँ पर दिल्ली दिलवालों का शहर  हुआ करता था वही आज कल यह गुनाहों का शहर बन गया है.

जहाँ पर लोगो को घर से निकलते भी यह सोचना पड़ता  है कि वो सही सलामत घर आ भी पाएंगे कि नहीं. अगर हम किसी  भी तरह इस मानव निर्मित आपदाओ से  बच भी जाये तो प्राकृतिक आपदा भी हमारा पीछा नहीं छोडती है.

ठीक इसी प्रकार कि घटना ०७/०९/२०११ को घटी पहले तो…

Continue

Added by Smrit Mishra on September 8, 2011 at 12:36am — No Comments

"ख्वाहिसे"

दीवानगी क्या चीज़ है, मालूम न था;

इश्कियां क्या चीज़, मालूम न था;

 क्यों लोग खो जाते है ख्यालो में, मालूम न था;

क्यों हो जाते है लोग स्थिल, मालूम न था;

आज मेरे हर सवालों का जवाब मुझे मिला;

जिन्दगी का एक नया सबक मैंने सिख लिया;

 सिख लिए मैंने प्यार करने के तरीके,

 और सिख ली मैंने इश्क को जताने के सलीके;

 आज एक हौसला दिल में नया जगा;

जिसने जिन्दगी जीने का हौसला दिला दिया;

आज नयी उमंगो ने दी है दिल में दस्तक;

 जिनके…

Continue

Added by Smrit Mishra on September 7, 2011 at 10:25pm — 1 Comment

वर्तमान

 कहते हैं

बस दो दिन और 
लेकिन दो दिन  और मिल जाते 
तब भी उतना ही कर पाते 
जितना अब तक किया है 
ययाति की तरह 
हम सब मौत से मोहलत 
मांगते रहते…
Continue

Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 9:42pm — 1 Comment

मुक्तक

 

कुछ दूर तक हम साथ चले 
ख्वाबों के साए साथ लिए 
हकीकत न बन सके ख्वाब 
लेकिन सोचती हूँ ,
उन चंद हसीन लम्हों की रोशनी काफी होगी 
बची हुई जिन्दगी का सफ़र 
तय करने के लिए |…
Continue

Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 8:48pm — 2 Comments

मुक्तक

  

तुम करीब आये हो प्रियतम

मन बन गया मधुबन मेरा

 तुमने प्रीत का रस उंडेला 

खिल गया मन कमल मेरा |…
Continue

Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 5:10pm — No Comments

"मेरे स्कूटर की पिछली सीट"

मेरे स्कूटर…
Continue

Added by Ambrish Singh Baghel on September 7, 2011 at 12:25pm — No Comments

ग़ज़ल - हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं - वीनस केशरी

हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं

वही नसीहतें देते मिले गरीबों को
जो मुल्क बेच के खाए - पिए अघाए हैं

भला- बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ
सही, सही है गलत को गलत बताए हैं

यही किया है हमेशा कि अपने दिल की सुनी
यही हुआ है हमेशा कि चोट खाए हैं

- वीनस केशरी

Added by वीनस केसरी on September 7, 2011 at 2:00am — 4 Comments

"प्यार"

दुनिया क इस मेले में ,
हम सभी बंधे है विश्वासों में .
रिश्तो की बुनियाद टिकी है विश्वासों में,
कमी  न हो कभी रिश्तों के विश्वासों में.
रिश्तो का नीव होती है भरोसे में ,
रिश्तो का प्यार छिपा है अपनों में.…
Continue

Added by Smrit Mishra on September 6, 2011 at 3:00pm — No Comments

परमसत्ता

 

मौन निःशब्द  रात्रि 

चारों ओर सन्नाटा 

नंगे पेड़ों पर गिरती बर्फ 

रुई के फाहे सी

रात को और भी गंभीर बनाती

शायद तुम्हारे ही आदेश से |

गरजते समुद्र की उफनती लहरें …

Continue

Added by mohinichordia on September 6, 2011 at 2:07pm — No Comments

सृजनहार

 

हवा के पंखो पर चढ़कर 

आती है तेरी खुशबू 

नदियों के जल के साथ बहकर 

कभी प्रपात बनकर, निनाद करती 

अमृत सी झरती

आती है तेरी मिठास |

सूरज बनकर आता है कभी 

सात घोड़ो के रथ पर सवार…

Continue

Added by mohinichordia on September 6, 2011 at 11:30am — 1 Comment

मैं शिक्षक हूँ.......... (शिक्षक -दिवस पर विशेष )

शिक्षा ही सबसे उत्तम धन,और ना धन कोई दूजा है.
शिक्षक होते वन्दनीय, और गुरु -श्रद्धा ही पूजा है.
जिस समाज में शिक्षक का,सम्मान नहीं होता है.
उस समाज में उन्नति और, उत्थान नहीं होता…
Continue

Added by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 12:30am — 5 Comments

"हसरत"

तेरे मुस्कुराहटों पर कुर्बान सारा जीवन,
तेरी चाहतो पर निसार सारा जीवन;
कभी न छोड़ना तू मेरा साथ,
वरना कुछ ना बचेगा मेरे हाथ;
तू कहे तो ला दे दूँ मैं सारी खुशियाँ,
तू कहे तो मिटा दूँ मैं अपनी जिंदगियां;
मेरा दामन थोड़ा तंग है,…
Continue

Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:53pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निशा स्वस्ति "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"उस्ताद-ए-मुहतरम आदरणीय समर कबीर साहिब की आज्ञानुसार :- "ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" अंक 168…"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रिय:।"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल पर आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय फिर अन्य भाषाओं ग़ज़ल कहने वाले छोड़ दें क्या? "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"गुरु जी जी आप हमेशा स्वस्थ्य रहें और सीखने वालों के लिए एक आदर्श के रूप में यूँ ही मार्गदर्शक …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//मेरा दिल जानता है मैंने कितनी मुश्किलों से इस आयोजन में सक्रियता बनाई है।// आदरणीय गुरुदेव आप…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें आ अमीर जी की इस्लाह भी ख़ूब हुई"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सभी गुणीजनों की बेहतरीन इस्लाह के बाद अंतिम सुधार के साथ पेश ए ख़िदमत है ग़ज़ल- वाक़िफ़ हुए हैं जब…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//उर्दू ज़बान सीख न पाए अगर जनाब वाक़िफ़ कभी न होंगे ग़ज़ल के हुनर से हम'// सत्यवचन गुरुदेव। सादर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service