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हो गगन के चन्द्रमा तुम क्यों अगन बरसा रहे
देख कर बिरही अकेला क्यों मगन मुस्का रहे
मेरी धरती ने तुम्हे आकाश पर पहुंचा दिया
तुम भटकते ही रहे अब तक न तुमने कुछ किया
आज कर लो व्यंग्य कल तुम देख कर जल जाओगे
आज हूँ परदेश में कल पार्श्व में होगी प्रिया
इसलिए आगे बढ़ो जाओ जहाँ तुम जा रहे हो
हो गगन के चन्द्रमा ...........................
विरह में कितनी व्यथा है ये वियोगी जानते हैं
कोई क्या जानेगा केवल भुक्त भोगी…
Posted on September 11, 2011 at 4:05pm — 4 Comments
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सादर
एडमिन
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प्रिय सदस्य / सदस्या
आदरणीय आलोक जी,
जन्मदिवस के उपलक्ष्य में समस्त ओ बी ओ परिवार की ओर से बधाई स्वीकार करें !
सादर !
abhinandan alok tumhara sarswati ka vandan lgta,
sajg sarokaron ko jaise matthey pr hai chandan lgta.
bahut bahut badhai.
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…