कर कुछ नया रे मनवा ,
जा मति जा मति जा ,
छोड़ के सभको यु ही अकेले ,
उसपे दुनिया के लाख झमेले ,
द्वन्द को और ना बढ़ा ,
कर कुछ नया रे मनवा ,
जा मति जा मति जा ,
जब आया तू था सब सुन्दर ,
फिर माया मोह में लपटाया ,
जीवन को तू जीना चाहा ,
खुद को इसमें फसाया ,
अब क्यों कर तू सोचे हैं ,
फस गया मैं ये कहा ,
कर कुछ नया रे मनवा ,
जा मति जा मति जा ,
कर कुछ यैसा रह के जहाँ में ,
और ये सब को बता ,
नही हैं तेरे वास्ते कुछ भी…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 20, 2010 at 5:43pm —
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तुम्हारे देश के उम्र की है
अपने चेहरे की सलवटों को तह करके
इत्मीनान से बैठी है
पश्मीना बालों में उलझी
समय की गर्मी
तभी सूरज गोलियां दागता है
और पहाड़ आतंक बन जाते हैं
तुम्हारी नींद बारूद पर सुलग रही है
पर तुम घर में
कितनी मासूमियत से ढूंढ़ रही हो
कांगड़ी और कुछ कोयले जीवन के
तुम्हारी आँखों की सुइयां
बुन रही हैं रेशमी शालू
कसीदे
फुलकारियाँ
दरियां ..
और तुम्हारी रोयें वाली भेड़
अभी-अभी देख आई है
कि चीड और…
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Added by Aparna Bhatnagar on September 20, 2010 at 4:00pm —
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खु़दा मेरी दीवानगी का राज फा़श हो जाये
वो हैं मेरी ज़िन्दगी उन्हें एहसास हो जाये
सांसे उधर चलती है धड़कता है दिल मेरा
एक ऐसा दिल उनके भी पास हो जाये
हर मुलाकात के बाद रहे हसरत दीदार की
ऐसे मिले हम दूर वस्ल की प्यास हो जाये
तड़पता है दिल उनके लिये तन्हाई में कितना
बेताबी भरा जज़्बात उधर भी काश हो जाये
तश्नाकामी इस कदर रहे नामौजुदगी में उनकी
जैसे सूखी जमीं को सबनमी तलाश हो जाये
करे तफ़सीर कैसे दिल उल्फत का ब्यां…
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Added by Subodh kumar on September 19, 2010 at 9:44pm —
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वह सामने खड़ी थी . मैं उसकी कौन थी ? क्यों आई थी वह मेरे पास ? बिना कुछ लिए चली क्यों गयी थी? न मैंने रोका, न वह रुकी. एक बिजली बनकर कौंधी थी, घटा बनकर बरसी थी और बिना किनारे गीले किये चली भी गयी . कुछ छींटे मेरे दामन पर भी गिरे थे. मैंने अपना आँचल निचोड़ लिया था. लेकिन न जाने उस छींट में ऐसा क्या था कि आज भी मैं उसकी नमी महसूस करती हूँ - रिसती रहती है- टप-टप और अचानक ऐसी बिजली कौंधती है कि मेरा खून जम जाता है -हर बूंद आकार लेती है ; तस्वीर बनती है -धुंधली -धुंधली ,सिमटी-सिमटी फिर कोई गर्म…
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Added by Aparna Bhatnagar on September 19, 2010 at 5:00pm —
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माँ के आँचल से छीन जहाँ
नवजात मृत्यु ले जाती हो..
सत्ता पैशाची हर्षित हो
इस पर कहकहा लगाती हो...
आतंकी अत्याचारी ही,
जिस कालखंड के शासक हों ,
जब स्वार्थ नीति से प्रेरित हो
शासन समाज का त्रासक हो...
जहाँ बचपन ढोर चराने में
उलझे, शिक्षा से दूर रहे...
जहाँ समझदार भी सत्यवचन
न कहने को मजबूर रहें....
जहाँ विषधर नदियों के जल में
कुंडली मार कर बैठे हों ,
जो मानदंड हों श्रद्धा के,
श्रद्धालुजनों से ऐंठे…
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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on September 19, 2010 at 4:00pm —
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इस बार वो ये बात अजब पूछते रहे
मेरी उदासियो का सबब पूछते रहे
अब ये मलाल है कि बता देते राज़-ऐ-दिल
तब कह सके न कुछ भी वो जब पूछते रहे
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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छोड़ कर वो साथ मेरा जब जुदा हो जायेगा ,
ज़ात पैर इंसान की कुछ तब्सिराह हो जायेगा .
हद से ज्यादा कर रहा था मै वफाएं उसके साथ ,
मुझको क्या मालूम था वो बेवफा हो जायेगा .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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जब तलक मंसूब दिल से दिल न हो ,
दिल को तब तक हिचकियाँ मिलती नहीं .
इश्क करने से मिलेंगी शोहरतें ,
मुफ्त में बदनामियाँ मिलती नहीं .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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उससे बिछड़ के ऐसे मेरा दिल उदास है ,
जैसे बिछड़ के मौज से साहिल उदास है .
मै कर रहा हु इसलिए हसने की कोशिशे ,
मुझको उदास देख के महफ़िल उदास है .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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रब्त -ऐ - नाज़ुक की शुरुआत भी हो सकती है ,
लब हिलेंगे नहीं और बात भी हो सकती है .
हमसे मिलने का कभी दिल में न तुम ग़म करना ,
बंद आँखों में मुलाक़ात भी हो सकती है .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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परदेस में रहने की ख़ुशी और अलम और ,
याद आये अगर घर की तो होता है सितम और .
परदेस से खींचे है कशिश घर की कुछ ऐसे ,
जाना हो अगर घर पे तो बढ़ते है क़दम और .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm —
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फ़क़त मै क्यों रहू रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ,
सितमगर तेरी महफिल में शब् -ऐ -तन्हाई भी तो हो .
तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ,
ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो .
मै तुमको बेवफा कहता हु तो इसमें बुरा क्या है ,
ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो .
वफ़ा के खुश्क दरिया में मै कैसे डूब सकता हो ,
तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहराई भी तो हो .
शब् -ऐ -फुरक़त क हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ,
बिछड़ के…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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शब् भर हमारी याद में ऐसे जगे हो तुम ,
आराम तर्क कर के टहलते रहे हो तुम ..
बिस्तर की सिलवटो से महसूस हो गया
कुछ देर पहले उठ के यहाँ से गए हो तुम
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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ये बोला आँख से आंसू के माँ ये क्या किया तुने
हमारी कौन सी ग़लती का ये बदला लिया तुने
कभी औलाद को अपनी जुदा माँ तो नहीं करती
फिर अपने लाल को क्यों घर से बेघर कर दिया तुने
ये बोली आँख आंसू से जुदा बस यु किया तुझको
बुलंदी पर पहुचने का दिया है रास्ता तुझको
अगर तू साथ रहता तो तेरी क्या अहमियत होती
ज़मी पे गिर के ही तो मर्तबा आला मिला…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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तुम्ही मेरी ज़रूरत हो तुम्ही पहली मुहब्बत हो
क़सम कोई भी ले लो तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो
तुम्हारे ध्यान से क़ल्ब -ओ -जिगर में रौशनी आये
तुम्हारी मुस्कराहट ही मेरे लब पर हंसी लाये
जो तुम मेरी तरफ देखो मेरे दिल को सुकू आये
ज़रा हंसकर कभी बोलो मेरे दिल पर ख़ुशी छाए
न हो तुम ग़मज़दा की मेरा दिल मचलता है
तुम्हारे एक इक आंसू से मेरा दिल पिघलता है
मुहब्बत का वाफाओ का मेरी कुछ तो सिला दे…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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तू समझता है बदौलत तेरी है
मेरे दम से ही ये इज्ज़त तेरी है
यु उजड़ता कब है कोई गुलसितां
लगता है इसमें शरारत तेरी है
तू अमीर -ऐ -शहर था मग़रूर था
हाथ फैला अब ज़रूरत तेरी है
चाहतें किस किस की है दिल में तेरे
मेरे दिल में सिर्फ चाहत तेरी है
इसलिए महफूज़ रखता हु इसे
ज़िन्दगी मेरी अमानत तेरी है
शेर महफ़िल में सुनाता है 'हिलाल '
या खुदा इस पे ये रहमत तेरी है
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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बात उनसे कभी हो गयी
ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी
दिल्लगी आशिकी हो गयी
आशिकी बंदगी हो गयी
वो तसव्वुर में क्या आ गए
क़ल्ब में रौशनी हो गयी
जब कभी उनसे नज़रें मिली
अपनी तो मैकशी हो गयी
बात फिर से जो होनी न थी
बात फिर से वो ही हो गयी
जब कभी वो खफा हो गए
ख़त्म सारी ख़ुशी हो गयी
बादलो क जब आंसू गिरे
कुल जहाँ में नमी हो गयी
सैकड़ो घोंसले गिर गए
क्यों हवा सरफिरी हो गयी
ध्यान उनका…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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बिस्मिल्लाह हिर्रहिमा निर्रहीम
हिलाल वजीरगंजवी (बदायूं )
हिलाल अहमद 'हिलाल ' मेरे सभी शागिर्दों में एक मुनफ़रिद मकाम के हामिल है . हिलाल , आले अहमद 'ज़ौक मुहम्मदी के फरजंद और हाफिज़ अबरार अहमद 'जाहिद मुहम्मदी के भतीजे है उन के दादा मरहूम मौलवी मुहम्मद बक्श साहब बस्ती के मशहूर पाकबाज़ शक्सीयत थे .
ज़ौक मुहम्मदी , जाहिद मुहम्मदी ने भी मुझसे शरफ तलाम्मुज़ हासिल किया और फख्र की बात ये है के मेरा और हिलाल का घराना एक…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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तेरे हुस्न -ओ -नजाकत का बदल मै लिख नहीं सकता - कि तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता
तबस्सुम और तेरे गुफ्तार के बारे में क्या लिक्खूं
तेरे सुर्खी भरे रुखसार के बारे मै क्या लिक्खू
तेरी सीरत तेरे किरदार के बारे मै क्या लिक्खू
तेरी पाजेब क़ी झंकार के बारे में क्या लिक्खू - के तेरी शान मै कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता
तेरे लहराते आँचल को मै अब तशबीह किस से दूँ
तेरी आँखों के काजल को मै अब तशबीह किस…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
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आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब
कौन दिल बहलाए फिर जाकर बहारों के करीब
कल मेरी कश्ती डुबोने में उन्ही का हाथ था
आज जो अफ़सोस करते है किनारों के करीब
ज़लज़ले में कितने बच्चे हो गए है कल यतीम
देख लो जाकर ज़रा उन बेसहारों के करीब
मेरे घर की मुफलिसी ज़ाहिर न हो दीवार से
इश्तहारों को लगाया है दरारों के करीब
क़त्ल केर दो मुझको लेकिन एक ख्वाहिश है मेरी
दफन करना मुझको मेरे…
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Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm —
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