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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-94

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-94 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'आपदा', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-94
"विषय: "आपदा''
अवधि : 30-01-2023 से 31-01-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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आद0 नयना जी सादर अभिवादन। आभार

पहचान के संकट का भाव लिये ये रचना विषय को नहीं छू पाई आदरणीय नाथ सोनांचली जी।

आपदा में अवसर

घमासान बरसात ने सड़कों की चिकनाई धो दी।उत्थानपरक भराव उखड़कर बहते नाले के हवाले हो गया।अंधाधुंध बरसात से जगह-जगह पानी भर गया।कुछ दिनों के बाद सूरज दादा की धूप से सड़क किनारे गड्डे में दफन जड़ों से पौध अंकुरित होकर लहलहाने लगें। 

अपनी शाखाओं को लहलहाते हुये पौध ने जगह-जगह उखड़ी जर्जर सड़क से कहा, ' सड़क भाई, आप बड़े दिल वाले हो।आपने मेरी आत्मा को मिट्टी में नही मिलने दिया।बहुत-बहुत धन्यवाद भाई।'

हरे-भरे पौध की आत्मीय बातों में सड़क को अपने आप पर आत्मग्लानि हुई।अतीत के गलियारें में खो गया।उस दिन कितना खुश हुआ था जब चुनावी नजदीकी सरगर्मियों के चलते सत्तासीन ने शहर सौन्दर्यीकरण की दीर्घकालीन योजनाओं को सख्ती से लागू करने का फरमान जारी कर दिया था।सिर के ऊपर लटकती तलवार से प्रशासनिक अमला ने आनन-फानन में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर समिति गठित कर तत्काल प्रभाव को लागू करने का आदेश पारित किए गये । 

चौड़ीकरण योजना के तहत् सड़क किनारे लगे पौधों को उखाड़ा गया जिससे जगह-जगह बने गड्ढों, बरसाती पानी से धंसी सड़कों और उनमें आई दरारों को भरने का काम युद्धस्तर पर चलाया गया।

चिकनी हुई सड़कों पर सरपट दौड़ते वाहनों को देख इतराते हुये सड़क ने इधर-उधर झांका।दूर किनारे पड़े उखड़े पेड़ों को देख इठलाते हुये सड़क ने कहा।

'हो गई हेकड़ी ठंडी… इतराते थे अपनी लंबी-पतली शाखाओं पर… मेरी ही जमीन पर कब्जा किए बैठे थे … क्या हुआ ?दूध की मख्खी की तरह फेंक दिए गये।'

'किस बात पर गुमान करते हो.. तपती दोपहरी में तुम्हें लोग गाली देते थे तब मेरी ही छांव में पलभर को सुकून मिलता था।मेरी वजह से ही तुम्हारी सुन्दरता हैं,समझे!'

'क्या समझे…वो सब तुम्हारी वजह से… कितना कचड़े का जमावड़ा होता था.. मवेशियों ने शरणास्थली बना ली थी।उफ… नालियाँ भर जाती थी कितनी सड़ांध आती थी और तो और तुम्हारी जड़ों ने मुझमें कितनी दरारें  कर दी… देखी नहीं कितनी जीर्ण हालत कर दी थी… वो तो भला हो सरकार का।'

'ठीक हैं भई…आज मुझ पर आपदा आई… कल पता नहीं ….!'

पत्तों की सरसराहट से अपने ऊपर गिरे पत्तों से सड़क चेती।जलकटाव से हुये पत्तों को अपने में समेटते हुये दुःखित स्वर में सड़क ने कहा, 'सच कहा था भाई तुमने…गाज किसी पर भी गिर सकती हैं... और फिर आपदा में अभिमान नही एक-दूसरे को आत्मसात करना ही समझदारी होती हैं। 

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

बबीता गुप्ता 

सादर नमस्कार। इस बार आपकी लेखनी भी भिन्न तरह से चली है विषयांतर्गत। सत्तासीन, सड़क और पौधे/वृक्ष रूपी पात्रों की आपबीती और मानवीकरण तहत वार्तालाप के ताने-बाने में सकारात्मक समापन का प्रयास करती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। रचना पर अभी और काम होना बाक़ी है। सम्पादन व कसावट की आवश्यकता लगती है। कुछ बातें अनकहे में भी छोड़ी जा सकती हैं। सबकुछ कह दिया गया लगता है। /घमासान बरसात/या मूसलाधार बरसात/? 

जी बहुत-बहुत धन्यवाद, सर

आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। मुझे लघुकथा के बारे में उतना तो नहीं मालूम परन्तु मुझे आपकी लघुकथा सोचने पर विवश करती हुई विषय आधारित नजर आयी। बधाई स्वीकार कीजिए।

आ.बबिता जी,प्रयास सराहनीय है।आपदा कब किसे प्रभावित करेगी,कहा नहीं जा सकता। संक्षिप्तता और कसावट रचना परम आवश्यकता होती है। हां,शीर्षक कुछ दूसरा हो,तो बेहतर हो।
सहभागिता हेतु आपको बधाइयां।

बहुत सुन्दर शब्द संयोजन और एक स्पष्ट सन्देश देती लघुकथा। आप यूँ ही बेहतरीन रचनाएँ लिखती रहें बबिता जी।

आपदा मे एकजुट रहने की नीति को प्रतीकों के माध्यम से बहुत अच्छी तरह शाब्दिक किया है आपने।हार्दिक बधाई आपको

बहुत उम्दा लघुकथा बबिता जी

धर्म संकट - लघुकथा - 

रामसिंह जी घर की देहरी पर से ही दहाड़ते हुए घुसे, "कहाँ है तुम्हारा लाड़ला? जब देखो तब हमारी पगड़ी उछालता रहता है।।

"क्या हुआ, क्यों इतना तमतमा रहे हो? लो थोड़ा ठंडा पानी पी लो।" 

रामसिंह  ने गुस्से में पानी का लोटा फेंक दिया,"आज तो इसने भरे समाज में हमारी नाक कटवा दी।

"अरे हुआ क्या कुछ बताइये भी?”

"चौधरी आज अपने साथ चार लठैत लेकर बैठक में आया था और सबके सामने चौबीस घंटे में पूरी रकम ब्याज सहित लौटाने का तक़ाज़ा कर गया है।

"लेकिन आपने चौधरी से कब पैसे लिये थे?”

"लिये थे भाग्यवान जब पिछले साल बाढ़ आई थी| फसल ख़राब हो गयी थी।मुन्ना की फ़ीस भरनी थी। तब इसी शर्त पर लिये थे कि वह इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेगा।

"लेकिन अब इस मामले से मुन्ना का क्या लेना देना?”

"वही तो हमको भी जानना है। क्योंकि चौधरी गुस्से में बार बार यही बोल रहा था कि बाप कर्ज नहीं चुका पा रहा है और बेटा  नवाब बना फिरता है।माँ बाप ने बड़े बूढ़ों की इज्जत करना भी नहीं सिखाया है। 

यह शोर गुल सुनकर मुन्ना भी अपने कमरे बाहर आ गया।

क्या किया आज चौधरी के साथ? वह पूरे खानदान को गरिया कर गया है।

"ऐसी कोई विशेष बात तो नहीं हुई थी।

कुछ तो हुआ होगा।पर जो भी हुआ था, वही बता दो।" 

"हम सुबह नाई की दुकान पर गये थे। अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। चौधरी चचा आये और नाई को बोले,"पहले हमारी दाढ़ी बना दो। हमें कचहरी जाना है।

"हमने कहा कि चचा हमको भी जल्दी है।आज हमारा इंटरव्यू है। वे बोले कि रविवार को कैसा इंटरव्यू। ये सब बहाने हमें मत सिखाओ। 

हमने भी बोल दिया कि बहाने तो आप भी बना रहे हो। रविवार को तो कचहरी भी बंद रहती है।" 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आपदा का प्रभाव तात्कालिक ही नहीं दीर्धकालिक भी होता है और कभी कभी दशकों और कभी-कभी जन्मपर्यंत किसी को दासत्व का एहसास करवा सकता है। बहुत गूढ़ कथानक। साधुवाद तेजवीर जी।

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