आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय कनक हरलालका जी सुन्दर तथा संजीदा लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें सादर
हार्दिक आभार आसिफ जैदी जी .।
आ० कनक हरलालका जी,
1. आपने इस लघुकथा के माध्यम से कहना क्या चाहा है?
2. यह लघुकथा प्रदत्त विषय को कैसे संतुष्ट करती है?
3. मिर्गी क दौरा जानलेवा नही होता, इसका इलाज हर जगह उपलब्ध है.
4. इस बीमारी का इलाज हरगिज़ इतना महंगा नही जितना आपकी लघुकथा बता रही है.
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।कथा पर आपकी टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार । दरअसल मैंने कथा के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि एक माँ के लिए परिवार और बेटी के मोह दोनो के बीच समझौते के तहद आखिरकार कहीँ मनोवैज्ञानिक रूप से बेटी की मुक्ति की मुक्ति की आकांक्षा को प्रश्रय देने को विवश होना पड़ता है। यही कथा के विषय सम्बंधित प्रस्तुति का कथन है । रही दौरे से सम्बंधित जटिलता का प्रश्न तो निश्चित रूप से उसमें कुछ जटिलताऐं रही होंंगी तभी डॉक्टर ने उसे लाइलाज़ बताया होगा एंव इलाज स्वतः ही खर्चीला हो जाता है ।
मुह तरमा कनक साहिबा , अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार तस्दीक़ खान साहब.।
आद0 Kanak Harlalka जी सादर अभिवादन। लघुकथा का अच्छा प्रयास पर मेरी समझ से विषय को यह संतुष्ट करती नजर् नहीं आ रही है। बहरहाल प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय सुरेंद्र जी कथा पर आपकी अनु
आदरणीया कनक हरलालका जी, प्रदत्त विषय पर लघुकथा का अच्छा प्रयास है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. यदि आप मिर्गी की जगह कोई अन्य गम्भीर बीमारी रखतीं (या रख दें) तो बेहतर होता (अथवा होगा). उसकी वजह से किसी खाते-पीते घर का दाल-रोटी पर सिमटना समझ में आता है.
2. बिन्दु संख्या (1) को आप मोह (//एक माँ के लिए परिवार और बेटी के मोह//) कह रही हैं पर यह जिम्मेदारी भी हो सकती है. दोनों में बारीक अन्तर है.
3. बिन्दु संख्या (2) की वजह से आपकी लघुकथा प्रदत्त विषय से न्याय नहीं कर रही है. मोह का पक्ष लघुकथा में नहीं उभर सका. बाकी रही सही कसर यह वाक्य पूरी कर देता है : //पिछले कई दौरों से रमा को अब यही आस हो गई थी शायद यह दौरा वही आखिरी दौरा हो ....!!!!// जो आस या उम्मीद (नाउम्मीदी) पर ज़ोर देता है, मोह पर नहीं.
सादर.
धन्यवाद आदरणीय आपने कथा पर ध्यान दिया ।आपकी अनुसोचना पर अवश्य विचार करूँगी ।
'बेटियां बोझ होती हैं,सिद्ध करती रचना।एक सोचने वाली बात हैं,अगर बेटा रोगग्रस्त होता ,तो क्या यही सोचते ?शायद नहीं,बल्कि उसका घर बसाकर वंशक की आस लगाते।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीया कनक दी
रचना का अंत बहुत प्रभावशाली है लेकिन शुरुआत में कमजोर रह गयी है. आ योगराज सर की बातों को ध्यान में लीजिये, शुभकामनायें
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