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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" स्वर्ण जयंती अंक-50

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-50 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, यह हमारे परिवार के लिए एक एतिहासिक क्षण ही कि यह गोष्टी अपनी स्वर्ण जयंती मानाने जा रही हैI अत: यह अंक विषयमुक्त रखा गया है अर्थात हमारे रचनाकार अपने मनपसंद विषयों पर अपनी दो (एक दिन में केवल एक) मौलिक और अप्रकाशित लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैंI तो प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" स्वर्ण जयंती अंक-50
विषय : इस बार विषयमुक्त अर्थात आप किसी भी विषय पर अपनी लघुकथा प्रस्तुत कर सकते हैं .
अवधि : 30-05-2019  से 31-05-2019 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं। (एक दिन में केवल एक)
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बहुत बहुत आभार आदरणीय, आपकी टिप्पणी मेरे जैसे नौसिखिये के लिए बहुत ही उत्साहवर्द्धक है| 

आप कहानी में इतने सरे पहलू देख पाए ये आपकी महानता है | प्रथम प्रयास था गलतियों के लिए क्षमा चाहता हूँ |  

रचना के कथ्य की बात की जाए तो बहुत सुंदर है भाई केशव जी, लेकिन प्रस्तुति पर अभी और मेहनत की जरूरत लग रही है, रचना की अंतिम पंक्ति सहज ही  // एक हीं लड़की के साथ बारी बारी से घूमने वाले कई लड़के भी तो

कैरेक्टर लेस हो सकते हैं?"// प्रभावित करने में सक्षम है.  मेरी ओर से रचना के लिए बधाई स्वीकारें..... 

बढ़िया लघुकथा है आदरणीय केशव जी. कृपया आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी की बातों का संज्ञान लें और आयोजन में सक्रियता दिखाते हुए अन्य लघुकथाओं पर भी अपनी टिप्पणियाँ दें. सादर.

जनाब केशव जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें,और आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।

दोहरे मापदंडों को केन्द्र मे रखकर लिखि गई अच्छी कथा। हार्दिक बधाई आदरणीय केशव जी

कालेज के वर्तमान हालात पर तीक्ष्ण प्रहार करती है कथा ।पर कपड़ों से चरित्रहीनता का प्रमाण पत्र देना गलत है।फ़िलहाल कथा केलिये बधाई आद० 

केशव जी 

हकीकत को बयान करती सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

जनाब केशव साहिब, सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

सभी बातों को परे कर हमें इस बात पर अवश्य ध्यान देना जरूरी हैं कि आज की युवा पीढ़ी किस ओर जा रही हैं और लोग अनायास ही उनका फायदा उठा रहे हैं।पंच पंक्ति वाकई में जबरदस्त पंच लगा रही हैं।हार्दिक बधाई केशव जी आपको

अच्छी लघुकथा के लिए बधाई केशव जी 

विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय केशव सरजी ।

लघुकथा _इंसानियत का रिश्ता

रमजान के मुबारक महीने में सहरी से फारिग होकर खान साहब बैठे ही थे कि
पड़ोसी शर्मा जी के घर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी, उन्होंने बीवी से
कहा, "जरा देखो पड़ोस से आवाजें आ रही हैं ?"


बीवी ने जवाब में कहा,"हमें पड़ोस से क्या लेना देना, वह लोग मुसलमानों से त अललुक
नहीँ रखना चाहते "

खान साहब बीवी की बात अनसुनी करके फ़ौरन शर्मा जी घर पहुँच कर उनकी पत्नी
से बोले,"क्या बात है भाभी जी, क्यू रो रहे हैं?"

शर्मा जी की पत्नी ने रोते हुए कहा, "इनके सीने में दर्द हो रहा है, होश में नहीँ हैं "
खान साहब ने सोचा अस्पताल ले जाने में देर हो सकती है, उन्होंने फ़ोन करके अपने करीबी ह्रदय
के डाक्टर सिददीकी को गुजारिश करके बुलवा लिया ।

डाक्टर ने आते ही इनजकशन लगाया और कुछ दवाएं लिखने के बाद कहा ,"अगर कुछ देर
हो जाती तो इन्हे बचाना मुश्किल हो जाता "

कुछ समय बाद शर्मा जी को होश आ गया, सामने खान साहब को देख कर रोते हुए कहने लगे, "माफ
करना खान साहब, इस मुश्किल वक्त में बिरादरी का कोई आदमी नहीं आया, आपको ख़ुदा ने मदद के लिए फरिश्ता बना कर भेज दिया "

खान साहब शर्मा जी को तसल्ली देते हुए कहने लगे, "हिन्दू, मुसलमान तो हमने बनाए हैं, ख़ुदा ने तो
इन्सान बनाकर भेजा है, असली रिश्ता तो इंसानियत का है "

उसी वक्त फजर की अज़ान सुन कर शर्मा जी मुसकराते हुए बोले,"अल्लाह सबसे बड़ा है "

(मौलिक व अप्रकाशित)

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