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तीन क्षणिकाएं :

तीन क्षणिकाएं :

बन जाती हैं
बूँदें
घास पर
ओस की
जब कभी
रोता है मयंक
कौमुदी के वियोग में

.............................

एक भारहीन अतीत
हृदय कलश में
पिउनी पुष्प सा
सुवासित होता रहा
मैं
देर तक
समर्पित रही
अधर तटों के
क्षितिज पर

.........................

जीत दम्भ की
प्राचीर को तोड़ते
जब
दोनों हार गए
तो
प्रचीर भी
हार गई
जीत की
स्वीकार पलों में.

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 31, 2019 at 4:21pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 31, 2019 at 4:21pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:07am

अच्छी क्षणिकाएँ हैं आदरणीय सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on January 22, 2019 at 10:43pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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