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परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है-गजल

1222 1222 122
न जाने क्या हुई हमसे ख़ता है
हमारा यार जो हमसे खफ़ा है।

यूँ ही बदनाम हाकिम को हैं करते
यहाँ प्यादा भी जब जालिम बड़ा है।

जरा सींचो भरोसा तुम जड़ों में
शज़र रिश्तों का इन पर ही खड़ा है।

उसी ने छू लिया है आसमाँ को
परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है।

नहीं हमदर्द होता आदमी जो
सहारा गलतियों में दे रहा है।

अमा की रात में महताब आया
तुम आये तो हमे ऐसा लगा है।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 2, 2018 at 2:06pm

आदरणीय समर कबीर सर सादर नमन! उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 2, 2018 at 2:05pm

आदरणीय राज नवादवी जी नमन सादर, ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 2, 2018 at 2:03pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी सादर नमन सह हार्दिक आभार

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 2, 2018 at 2:02pm

आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी सादर नमन सह हार्दिक आभार। सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 2, 2018 at 2:00pm

आदरणीय श्याम नारायण ।वर्मा जी, सादर नमन सह हार्दिक आभार, अनुमोदन एवं  उत्साहवर्धन के लिए

Comment by Samar kabeer on December 1, 2018 at 2:56pm

जनाब सतविन्द्र कुमार 'राणा' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:03am

आदरणीय  सतविंद्र कुमार,जी  आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Mohammed Arif on November 30, 2018 at 1:25pm

आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब,

                          अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2018 at 8:36pm

बेहतरीन सांकेतिक विचारोत्तेजक रचना हेतु सादर हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार राणा  साहिब।

Comment by Shyam Narain Verma on November 29, 2018 at 10:39am

आदरणीय , सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई आप को | सादर

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