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सामाजिक विद्रूपताओं पर गीत

बात लिखूँ मैं नई पुरानी, थोड़ी कड़वी यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।

झेल रहा है बचपन देखो,
बस्तों का अभिशाप
सदा प्रथम की हसरत पाले,
दिखते हैं माँ बाप।।
पढ़ो रात दिन नम्बर पाओ, कहना छोड़ो यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।

गुंडे और मवाली के सिर,
सजे आजकल ताज
पढ़े लिखे हैं झोला ढोते,
पर है मौन समाज।।
सबको चिंता एक यहाँ बस, हो स्वजाति सरकार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।

धर्म कर्म की आड़ लगाए,
हुए कई बदनाम
चाहे राम रहीम रहा हो,
या हो आशाराम।।
कुछ बाबा तो योग तले ही, करते अब व्यापार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।

रोज सवेरे मंदिर जाएं,
और रखें उपवास
माथ भरे का तिलक लगाएँ,
यह इनका विश्वास।।
पढ़े लिखें ना कर्म करें ये, हो कैसे उद्धार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2018 at 5:52am

आद0 रामबली जी सादर अभिवादन। रचना को अपनी प्रतिक्रिया से पुरस्कृत करने के लिए आभार

Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2018 at 5:51am

आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए कोटिश आभार

Comment by रामबली गुप्ता on October 1, 2018 at 10:58pm

सरसी छंद आधारित बढियाँ गीत लिखा है आपने आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर

Comment by Ajay Tiwari on October 1, 2018 at 8:54pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, एक और सोद्देश्य काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. 

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:30am

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:30am

आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। आपके प्रतिक्रिया के लिए आभार

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:29am

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बहुत बहुत आभार आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 29, 2018 at 10:41pm

आ. भाई सुरेंद्र जी, बहुत खूबसूरत गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 29, 2018 at 7:11pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर और सार्थक गीत...बधाई

Comment by Sushil Sarna on September 27, 2018 at 7:11pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी वर्तमान को जीती इस;सुंदर रचना के लिए दिल से बधाई।

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