For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुफा
से निकले हुए लोगों ने
'कुर्सी' बनाई,
अपने राजा के लिए
ज़मीन पर बैठे - बैठे

राजा कुर्सी पर बैठा है शान से
कुर्सी बनाने वाले ज़मीन पर

सबसे पहली कुर्सी 'पत्थर' की थी
फिर इंसान ने लकड़ी की कुर्सी बनाई
बाद में सोने ,चाँदी ,हीरे, जवाहरात की भी....

इतिहास में तो कई बार नरमुंडों की भी कुर्सियां बनाई गयी
और फिर उस पर बैठ के 'राजा' बहुत खुश हुआ...

कुर्सी बनाई गयी थी
इस उम्मीद में कि इस पर बैठा हुआ
राजा राज्य में
सुख शांति समृद्धि लाएगा.....

कई बार ऐसा भी हुआ
कुर्सी की वजह से ही
सुख शांति और समृद्धि राज्य से विदा हो गईं....

सबसे पहली कुर्सी पत्थर की थी
पर अब तो राजा भी पत्थर का हो गया है ..
भले ही कुर्सी किसी भी धातु की हो

मुकेश इलाहाबादी --------------------

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 7:31pm

बहुत ख़ूब. आ. मुकेश जी. इस बढ़िया कविता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on September 25, 2017 at 3:27pm
जनाब मुकेश जी आदाब,वाह मज़ा आ गया,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2017 at 4:45am
मुकेश जी कुर्सी के माध्यम से बढ़िया ताना बाना बुना आपने, बधाई आपको।
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 24, 2017 at 9:40am

rachna pasandgee ke liye aap ka bahut bahut abhar mitra Mohammed Arif bhaee

Comment by Mohammed Arif on September 24, 2017 at 7:40am
आदरणीय मुकेश जी आदाब, आज की कुर्सी का अच्छा चरित्रांकन किया आपने । कुर्सी के माध्यम से सबकुछ बयाँ कर दिया । अदनी सी कुर्सी ने सबका चरित्र गिरा दिया है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service