For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम गली अति सांकरी

प्रेम गली अति सांकरी
------------------------

सुमी,

सुना है, किसी सयाने ने कहा है। ' प्रेम गली अति सांकरी, जा में दुई न समाय'
जब कभी सोचता हूँ इन पंक्तियों के बारे में तो लगता है, ऐसा कहने वाला, सयाना
रहा हो या न रहा हो, पर प्रेमी ज़रूर रहा होगा,जिसने प्रेम की पराकष्ठा को जाना होगा
महसूस होगा रोम - रोम से , रग - रेशे से, उसके लिए प्रेम कोई शब्दों का छलावा न
रहा होगा, किसी कविता का या ग़ज़ल का छंद और बंद न रहा होगा, किसी हसीन
शाम की यादें भर न रही होगा, प्रेम -
उसके लिए तो प्रेम अपने और अपने प्रेमी के अस्तित्व का अनुभव भर नहीं पूरी समष्टि
और सृष्टि का अनुभव रहा होगा- प्रेम।
तभी तो उसने
ये बात कही होगी - 'प्रेम गली अति सांकरी'।
हाँ !! वो बात दीगर उसकी महबूबा कोई,
हाड- मॉस की औरत रही हो या फिर ईश्वर रहा हो या की 'सत्य' रहा हो.
पर इतना सच है,
उसने प्रेम की पराकाष्टा को छुआ होगा।
शायद तभी ये कह भी पाया होगा।
एक बात जान लो सुमी, ये तो सच है 'प्रेम' कोई राजपथ नहीं है जिसपे शान से चला जा
सके। प्रेम की गली में तो राजा रानी को भी सट सट के चलना होता है, खाई खंदक से
बच - बच के निकलना होता है , वरना तो , ज़रा सा चूके और गए, तभी तो आज तक जिसने
भी प्रेम किया उसने ही 'प्रेम' को 'गली' कहा या 'डगर' कहा। राजपथ तो किसी ने नहीं कहा।
और इन सयाने ने तो इस गली को यहाँ तक संकरी कह दिया कि इस गली में तो दो
हो कर जा ही नहीं सकते। क्यूँ की जब तक दो है तब तक प्रेम का दिखावा हो सकता
है। नाटक हो सकता है। पर प्रेम तो कतई नहीं हो सकता।
क्यों कि प्रेम की गली में आते ही 'द्वैत' तो अद्वैत हो जाता है। 'अद्वैत' समझती हो न ?
अद्वैत - का अर्थ होता है। जो दो न हो। अद्भुत शब्द है जो भारतीय मनीषा ने दुनिया को दिया है।
अद्वैत - जो दो न हो - क्यूँ की एक कहने से लगता है दो होगा कहीं न कहीं।
क्यों कि दो के बिना एक भी नहीं हो सकता। और जब एक होगा तो दो भी होगा , तीन भी होगा
और अनंत भी हो सकते हैं। इसी लिए सत्य को , परम सत्य को 'अद्वैत' कहा जाता है।
जो दो न हो। जो दो जैसा भाषता तो हो। पर दो न हो।
तो मेरे देखे प्रेम की गली से गुज़ारना 'अद्वैत' की गली से गुज़ारना है। जहाँ दो जिस्म हो सकते हैं.
दो रूह हो सकती है। दो साँसे आती जाती लग सकती हैं। पर वे सतह की बातें हैं।
तल पे एक ही हैं। सतह पे दो लहरें हो सकती हैं। पर सागर में दोनों लहरें एक ही हैं।
तभी तो दो प्रेम करने वालों के लिए कहा जाता है। ये 'दो जिस्म एक जान हैं'
प्रेम की भावदशा में।
एक साँस लेता है तो दुसरे का दिल धड़कता है।
एक का दिल धड़कता है तो दुसरे के जिस्म में हरक़त होती है।
और यही अवस्था जब और और और गहराती जाती है।
तो वह अवस्था 'अद्वैत' की अवस्था होती है।
उसी अनुभव को कोई सायना ' अनलहक' कहता है। कोई 'अहम ब्रम्हास्मि' कहता है।
पर ये सभी हैं उसी 'प्रेम' के परम अनुभव। अद्वैत के अनुभव।
एक बात और जान लो। प्रेम की अवस्था में -
न 'मै' रहता है
न 'तुम' रहता है
न 'हम ' रहता है
वहां तो सिर्फ और सिर्फ वही रहता है - ब्रम्हा - परम सत्य - जो सिर्फ और सिर्फ ' प्रेम' है। जहाँ
दो नहीं है - सब कुछ एक है एक है एक है।
आओ हम भी प्रेम में उतरें और उस परम सत्य को अनुभव करें।
जहाँ पे -- सीता और राम ----- सीताराम हो जाता है
जहाँ पे --- राधा और कृष्ण ---- राधेकृष्ण हो जाता है
जहां पे 'अद्वैत' घट जाता है।

जहाँ पे 'जिस्म नहीं, रूह ही नहीं। सिर्फ और सिर्फ ' प्रेम' रहता है।
विशुद्ध 'प्रेम'
बस इनता ही।

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 17, 2020 at 5:42pm

Bhaee Musafir ji,

Post Pasandgee aur comment ke liye bahut bahut aabhar

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:31am

आ. भाई मुकेश जी, सुंदर कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 12, 2020 at 5:05pm

Aadarneeya  Samar Kabeer jee- 

Rachna pasandgee ke liye bahut bahut aabhar

Comment by Samar kabeer on February 12, 2020 at 3:24pm

जनाब मुकेश इलाहाबादी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service