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ज़िंदगी के सफ़हात...

ज़िंदगी के सफ़हात ...

हैरां हूँ
बाद मेरे फना होने के
किसी ने मेरी लहद को
गुलों से नवाज़ा है
एक एक गुल में
गुल की एक एक पत्ती में
उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है
नाज़ुक हाथो की नरमी है
कुछ सुलगते जज़्बात हैं
कुछ गर्म लम्हों की सौगात है
काश
तुम मेरे शिकवों को समझ पाते
जलते चिराग का दर्द समझ पाते
मेरी पलकों को
इंतज़ार की चौखट में
कैद करने वाले
कितना अच्छा होता
साथ इन गुलों के
तुम भी आ जाते
बीते लम्हों की दौलत से
एक लम्हा
अपने वस्ल का
मेरी लहद के चिराग पे
सजा जाते
मेरी रूह को
सकूं मिल जाता
मेरी ज़िंदगी के सफ़हात को
हँसी मज़मून
मिल जाता


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 27, 2017 at 9:11pm

आदरणीय बृजेश जी सृजन के भावों को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2017 at 9:10pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सर्व प्रथम तो ईद मुबारक। सृजन के भावों को मान देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। सर आपने जो जो संशोधन बताये हैं वो मुझे दिल से स्वीकार हैं। सफ़ह और सफ़हात मेरे शब्दकोष का अनुपम संग्रह है। इस मार्दर्शन और सुझाव का हार्दिक आभार। आप जैसी कार्यशाला कहाँ मिलती है। शुक्रिया। मैं इसे अभी संशोधित कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। सृजन आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा करेगा ।

Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 12:23pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,नर्म गर्म अहसासात को अच्छे शब्दों में पुरोया है, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
'सफ़े'ग़लत शब्द है सही शब्द है "सफ़ह"जिसका बहुवचन है "सफ़हात"इसलिये आपकी कविता का शीर्षक होगा "ज़िन्दगी के सफ़हात" ।
आठवीं पंक्ति 'जमाल हाथों की नरमी है' को "नाज़ुक हाथों की नरमी है" करना उचित होगा ।
20वीं पंक्ति 'बीते की दौलत से'को "बीते लम्हों की दौलत से"करना उचित होगा ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:48am
वाह क्या कहने आदरणीय..बेहद ह्रदयस्पर्शी अहसास..सादर

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