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हिन्दी गीतिका...​साँसों का तरपन कर दूँ

22 22 22 22 22 22 22
रम जाओ अंतस में जीवन मधुरम चन्दन कर दूँ
जो तुम झाँको आँखों में आँखों को दरपन कर दूँ

तुम बिन जीवन मिथ्या है साँसों का आना जाना
बस जाओ मम साँसों में साँसों को अरपन कर दूँ

कल देखा था ख्वाबों में दुल्हन सी तुम मुस्काईं
पलकों में आ बस जाओ सपनों का तरपन कर दूँ

प्यासी धरती प्यासा अम्बर प्यासा है उर आँगन
छा जाओ बन के बदली मरुथल को मधुबन कर दूँ

​​पलकों में आकुल आँसू बहने को व्याकुल आँसू
बन साथी झरते आँसू पतझर को सावन कर दूँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2017 at 10:08pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2017 at 10:07pm
आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक अभिनन्दन वंदन..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2017 at 10:05pm
आदरणीय नीलेश जी देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ..हिन्दी शब्दों को लेकर लिखी गई ग़ज़ल को ही गीतिका कहते हैं..आजकल कई लोग इस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं..हिन्दी के हिसाब से जो शब्द लिखे वो अशुद्ध हैं..इस ओर ध्यानाकर्षित करने के लिए आपका हार्दिक आभार हालाँकि उच्चारण देखा जाये तो शब्द उचित ही है..जहाँ तक मेरी जानकारी है दर्पण को दर्पन लिखा जा सकता है..सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:26am

भाई जी!!
ये हिंदी गीतिका कौन सी विधा है विस्तार पूर्वक समझाने का कष्ट करें... मुझे तो ये ग़ज़ल ही नज़र आ रही है ..बहुत से बहुत हिंदी ग़ज़ल कह सकते हैं इसे ...
अब चूँकि हिंदी में है तो अर्पण को अरपन, तर्पण को तरपन और दर्पण को दरपन लिखना अमान्य है साथ ही चन्दन का ण वर्ण से काफिया भी ठीक नहीं है ...
विचार कीजियेगा ..
सादर 

Comment by Mahendra Kumar on March 7, 2017 at 10:14pm
बढ़िया ग़ज़ल कही आ. बृजेश भाई। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Mohammed Arif on March 6, 2017 at 10:48pm
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, उमदा ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 6, 2017 at 9:54pm
हृदयतल से आभार आदरणीय डा. साहब
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 6, 2017 at 10:47am

आदरणीय ब्रिजेश जी रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

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