For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल....अब कहाँ गुम हुये आसरे भीड़ में

212 212 212 212
अब कहाँ गुम हुये आसरे भीड़ में
चलते चलते कदम रुक गये भीड़ में

मुख़्तलिफ़ दर्द में हम पुकारा किये
घुट गयी आह थे कहकहे भीड़ में

बाँह को थामकर हमने रोका बहुत
तुम गये भीड़ में खो गये भीड़ में

है सभी का मुकददर परेशानियाँ
दे किसे कौन अब मशविरे भीड़ में

मुंतज़िर हैं बड़े दिल ए नाशाद के
अनकहे प्यार के फलसफे भीड़ में

दिल के ज़ज्बात 'ब्रज' रायगाँ मत करो
फिर रहे हैं कई मसखरे भीड़ में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 23, 2017 at 5:11pm
उचित है अदरणीय गिरिराज जी..आपकी सलाह सर्वथा उचित है..अदरणीय शुक्ला जी की सलाह के बाद मैं कुछ बदलाव सोच ही रहा था.. आपका सुझाव बेहद खूबसूरत है..सादर प्रणाम

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 9:25am

आदरनीय बृजेश भाई , अच्छी गज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । मेरा सोचना है कि .. अगर हम सहीं भी हों और कोई बेहतर सलाह आये तो भी स्वीकार कर लेना चाहिये .... चाहें तो उस मिसरे को ऐसे कह सकते हैं

दे किसे कौन अब मशविरे भीड़ में

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 22, 2017 at 8:46am
आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की सार्थक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार..जहाँ तक मेरी जानकारी है मशविरा मतलब सलाह है जो आपस में भी की जाती है और दूसरों को भी दी जाती है..इसलिए कौन किसको कहे मश्विरे भीड़ में.. मैं गलत भी हो सकता हूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 22, 2017 at 8:14am
आदरणीय आरिफ जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..उर्दू शब्दों में थोड़ी समस्या है अभी..अशुद्धियों को दूर करने का प्रयास किया है..सादर
Comment by Ravi Shukla on March 21, 2017 at 12:06pm

आदरणीय ब्रजेश कुमार जी अच्‍छी गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करें

चौथे शेर में मशविरे के साथ आपने कहे लफ्ज का प्रयोग किया है । मश्‍विरा किया जाता है आपस मे शायद । अगर ये सही है तो शेर मे थोड़ी सी तराश की जरूरत हो सकती है । सादर

Comment by Mohammed Arif on March 20, 2017 at 1:44pm
आदरणीय बृजेन्द्र कुमार जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service