For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल --बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम ( राज )

221   2121  1221   212/2121 

पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम

चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम

 

बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र  से

इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम

 

बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया

किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम

 

ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई    

सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम 

 

परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी

भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन तमाम

 

ईलाज  में दवाएँ भी नाकाम हो रही

ईमान की खुराक से सुधरे वतन तमाम

 

जादू न जाने क्या था मदारी के खेल में

बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम

----मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 994

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:53pm

आद० समर भाई जी ,ग़ज़ल पर आपकी दाद व् इस्स्लाह दोनों का तहे दिल से स्वागत है मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ | भाई जी इस बार मुशायरे के ठीक पहले एक नजदीकी रिश्तेदार की मृत्यु की दुखद सूचना मिली तो तुरत फुरत में भागना पड़ा आज  ही वापस लौटी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:50pm

ब्रिजेश कुमार बृज जी ,आपका बहुत- बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:49pm

आद० बृज नाथ शर्मा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:48pm

आद० शेख़ उस्मानी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखनकर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 28, 2016 at 1:46pm

मोहतरम  तस्दीक साहब ,ग़ज़ल पर आपकी दाद मिली तहे दिल से आभार आपका |आपकी इस्स्लाह का स्वागत है |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2016 at 11:24am

ऑ० राजेश दी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें l

Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 8:07am

गज़ल अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2016 at 5:10pm

आ० दीदी मुशायरे से अलग यहाँ ? बहुत उम्दा गजल है . मुबारकबाद .

Comment by नाथ सोनांचली on November 26, 2016 at 11:37am
दीदी आद0 राजेश कुमारी जी बढ़िया गजल के लिए मेरी मुबारकबाद। वर्तमान परिपेक्ष्य में इस गजल की उपादेयता और बढ़ गयी है। पुनश्च नमन संग बधाई
Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:24am
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा तरही ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
बहना ये क्या,आपने तरही मुशायरे में सहभागिता नहीं की कोई ख़ास वजह है क्या ?
इस ग़ज़ल में 'दफ़अतन'क़ाफ़िया। सही क़ाफ़िया न होते हुए सौती क़ाफ़िया है, देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service