For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं (तरही ग़ज़ल )

2122   2122   2122   212

बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं

जिंदगानी  से   कजा की दूरियाँ कुछ भी नही

 

बागबाँ की है कमी या पस्त है आबो हवा

पाक  नकहत फूल के अब दरमियाँ कुछ भी नही

 

मोल उसका गर न समझे तो बशर की भूल है

हम को कुदरत दे रही जो  रायगाँ कुछ भी नही

 

आशिकों की मौत पे  जो शम्मअ के दिल से उठे

नफरतों से जो निकलता वो धुआँ कुछ भी नही

 

फिक्र-ए-शाइर नापती कब  से अज़ल की दूरियाँ

उसके आगे ये जमीन-ओ-आसमाँ कुछ भी नही

 

हिम्मते  परवाज़ से जो आसमां को जीतता  

उसको मुश्किल कायनात-ए- बेकराँ कुछ भी नही     

 

जिसका गुलशन ढक गया हो तीरगी की यास में

फिर उसे  शादाब मंजर या खिजाँ कुछ भी नही

 

जुल्म करना हो जिन्हें क्या फ़र्क पड़ता है उन्हें  

उनकी खातिर बाजुबाँ या बेजुबाँ कुछ भी नही  

फेर में सूद-ओ-ज़ियाँ के जिस खुदा को भूलते   

हो न उसका इज़्न तो मिलता यहाँ कुछ भी नहीं

----------------राजेश कुमारी “राज ‘

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 24, 2016 at 7:41pm

आद० रामबली गुप्ता जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |

Comment by रामबली गुप्ता on November 24, 2016 at 7:32pm
वाह वाह आदरणीया बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल हुई है। दिल से बधाई लीजिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 23, 2016 at 8:36pm

आद० डॉ० गोपाल भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका थे दिल से आभार | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 7:40pm

दीदी  बाकमाल गजल हुयी है . बहुत बहुत बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 23, 2016 at 10:33am

मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर शिरकत और होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया आपकी इस्स्लाह का दिल से स्वागत है आपने जिंदगानी शब्द बहुत बढिया सुझाया बहुत बहुत आभारी हूँ इस ग़ज़ल को कुछ संशोधनों के साथ पुनः पोस्ट करती  हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 23, 2016 at 10:31am

आद० समर भाई जी,ग़ज़ल पर आपकी दाद मेरे लिए बहुत मायने रखती है आपकी इस्स्लाह काबिले गौर हैं तथा उनपर अमल भी करुँगी मेरी ग़ज़ल के निखार में और इजाफ़ा होगा आपका तहे दिल से शुक्रिया  

फिक्र-ए-शाइर नापती अब से अज़ल की दूरियाँ--इसमें अब का अर्थ वर्तमान से लिया था अर्थात इस वक़्त से आदिकाल तक .किन्तु यदि आप सब को कब शब्द ज्यादा ठीक लग रहा है तो मैं बदल दूँगी .आपके मार्ग दर्शन का बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 23, 2016 at 10:25am

आद० गिरिराज जी,ग़ज़ल पर शिर्कत और सराहना के लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ\ आपकी इस्स्लाह का स्वागत है बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 6:21pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद हाज़िर है-

बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं

जिन्दगी से उस  कजा की दूरियाँ कुछ भी नही............. बढ़िया मतला.... एक विचार आया अगर 'जिंदगानी से कज़ा की' किया जाए तो?

 

बागबाँ की है कमी या पस्त है आबो हवा

पाक़ नकहत फूल के अब दरमियाँ कुछ भी नही.............. बढ़िया 

 

मोल उसका गर न समझे तो बशर की भूल है

हम को कुदरत दे रही जो  रायगाँ कुछ भी नही............ वाह वाह 

 

आशिकों की मौत से जो शम्मअ के दिल से उठे.............. "आशिकों की मौत पे" 

नफरतों से जो निकलता वो धुआँ कुछ भी नही

 

फिक्र-ए-शाइर नापती अब से अज़ल की दूरियाँ

उसके आगे ये जमीं या आसमाँ कुछ भी नही............. बहुत खूब ... इस पर आदरणीय समर कबीर जी कह चुके है.

 

हिम्मते  परवाज़ से जो आसमां को जीतता  

उसको मुश्किल कायनातें बेकराँ कुछ भी नही............... वाह वाह 

 

जिसका गुलशन ढक गया हो तीरगी की यास में

फिर कहाँ शादाब मंजर या खिजाँ कुछ भी नही................... बढ़िया ... इस पर भी गुनीजनों की बढ़िया इस्लाह 

 

जुल्म करना हो जिन्हें क्या फ़र्क पड़ता है उन्हें  

उनकी खातिर बाजुबाँ या बेजुबाँ कुछ भी नही  ..................... वाह वाह वाह...हासिल-ए-ग़ज़ल

फेर में सूदों जिया के जिस खुदा को भूलते   

हो न उसका इज़्न तो मिलता यहाँ कुछ भी नहीं............ बहुत खूब..... गुनीजन सूद-ओ-ज़ियाँ की टंकण त्रुटी की ओर संकेत कर चुके हैं.

इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर नमन 

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 5:30pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले के सानी मिसरे में 'उस'की जगह "तो"करना उचित होगा क्या,'उस'शब्द यहाँ भर्ती का है ।
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'पाक़' को "पाक"कर लें ।
पांचवें शैर के ऊला मिसरे में'अब' की जगह "कब"करना उचित होगा ?और सानी मिसरे में 'ज़मीं या आसमाँ' की जगह "समीन-ओ-आसमाँ" करना उचित होगा ?
छटे शैर में 'कायनातें'की जगह "काइनात-ए-"कर लें ।
सातवें शैर पर में जनाब गिरिराज भाई से सहमत हूँ ।
आख़री शैर में 'सूदों जिया'को "सूद-ओ-ज़ियाँ" कर लें । बाक़ी शुभ शुभ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 12:55pm

आदरनीया राजेश जी , बेहतरीन गज़ल हुई है . सभी अशआर मानी खेज़ हुये हैं , मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।

जिसका गुलशन ढक गया हो तीरगी की यास में

फिर कहाँ शादाब मंजर या खिजाँ कुछ भी नही    ---  इस मिसरे मे  - कहाँ की जगह  ' उसे ' कर के पढ़ के देखियेगा ... शायद सार्थक लगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . उल्फत
"आदरणीय निलेश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, दोहों पर आपके प्रयास सधे हुए हैं. किन्तु, कतिपय दोहे मूलभूत नियमों के…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों की सराहना के लिए हार्दिक आभार।"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 176 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |इस बार का…See More
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service