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ग़ज़ल - जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी

2122 2122 212 

जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,

तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,

रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,

तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,

कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!

मौलिक और अप्रकाशित...

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Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 7:57am

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2016 at 10:48am

आदरणीया अनिता जी , ग़ज़ल अच्छी कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ,
मतले की काफिया बन्दी देखियेगा  --  ज़िन्दगी और हसीं और ज़मीं हम काफिया नही हो सकते , इस लिये आ. मिथिलेश भाई की सलाह पर गौर करियेगा

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 7:06pm

मुहतरमा अनीता साहिबा , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
आपकी ग़ज़ल में " हसीं " और " ज़मीं " के क़ाफिये सही नहीं हैं
अगर मुनासिब समझें तो " हसीं " की जगह " भली " कर लें
शेर 2 का सानी मिसरा बहर में नहीं है , उसे चाहें तो इस तरह कर लें
" फिर ज़मीं दिल की हरी लगने लगी "


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2016 at 6:51pm

आदरणीया अनीता जी, बढ़िया ग़ज़ल का प्रयास हुआ है, हार्दिक बधाई. 

जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,

तुम मिले दुनिया नई लगने लगी,

तुमने सींचा जब वफ़ा औ' प्यार से,

दिल की धरती फिर हरी लगने लगी,

भाव आपके ही हैं बस काफियाबंदी के लिए.....सादर 

Comment by Anita Maurya on November 23, 2016 at 5:14pm

समर सर हार्दिक आभार आपका, ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहियेगा, सुरेन्द्र जी, सुशील जी और सुरेश जी, बहुत बहुत आभार....

Comment by Samar kabeer on November 23, 2016 at 3:16pm
मोहतरमा अनीता मौर्या जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले में 'हंसी'को "हसीं"करलें,शायद टाइपिंग मिस्टेक है ।
आख़री शैर में 'सहर'स्त्रीलिंग है, इसलिये 'देखा'को "देखी" कर लें।
यहां इस मंच पर ग़ज़ल के साथ अरकान लिखने का नियम है,जो आपने नहीं लिखे,कृपया आगे से ध्यान रखें ।
Comment by नाथ सोनांचली on November 23, 2016 at 2:31pm
आदरणीया अनीता मौर्या जी सादर अभिवादन। आप्जी गजल उम्दा है। मेरी कोटिश बधाई निवेदित है। यहाँ उरूज के साथ गजल लिखने का विधान है।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 23, 2016 at 1:41pm
आदरणीया अनीता जी बहुत ही सुन्दर रचना।
तुम मिले दुनिया हंसी लगने लगी।
में हंसी के स्थान पर हसीं होना चाहिए।
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:55pm

तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,
कबसे आँखों ने सहर देखा नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी.....

वाह आदरणीया बहुत ही दिलकश अशआर हुए हैं आपकी ग़ज़ल के। हार्दिक मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

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