212 1222 212 1222
क्या हुआ यहाँ पर कल , क्यूँ उदास मौसम है
तितलियाँ परीशाँ हैं , क्यूँ गुलों में भी ग़म है
कितनी प्यारी लगतीं हैं , ये गुलाब की कलियाँ
और बर्गे गुल में वो , सो रहा जो शबनम है
अपनी क़िस्मतों मे तो , सिर्फ ये सराब आये
क़िस्मतों में कुछ के ही, सिर्फ़ आबे जम जम है
जगमगाती खुशियों की , नीव कह रही है ये
कुछ घरों में तारीक़ी , कुछ घरों में मातम है
आइने के गावों में ,पत्थरों का मजमा क्यूँ
बेसदा सवाल ऐसा , फिर से दिल में कायम है
कोई रो गया है क्या , आज शब-ए- सह्रा में
बेकली है क्यूँ तारी , क्यूँ ज़मीन नम नम है
यादों के सहारे यूँ , ज़िन्दगी नहीं कटती
फिर भी याद आई तो , दर्दे दिल ज़रा कम है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर , सुन्दर ग़ज़ल है ,
कोई रो गया है क्या , आज शब-ए- सह्रा में
बेकली है क्यूँ तारी , क्यूँ ज़मीन नम नम है ...बहुत बढ़िया , बधाई आपको ! सादर
आ० अनुज
बहुत सुन्दर गजल . दिल से बधायी . सादर .
bahut khooob bahut khooob
waaah waaah waaah
daad hazir hai
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
सुपर्ब ग़ज़ल हुइ सर .. दाद कबूल कीजिये .. नमन
क्या हुआ यहाँ पर कल , क्यूँ उदास मौसम है
तितलियाँ परीशाँ हैं , क्यूँ गुलों में भी ग़म है
जगमगाती खुशियों की , नीव कह रही है ये
कुछ घरों में तारीक़ी , कुछ घरों में मातम है
Dil ke taron ko jhankrit kar gaee ... aapki rachna .... Dhanyabad ke liye shabad nahi mil rahe. Samast subhkamanaon wa badhai sahit.....
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