For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"कहूँ कुछ और कुछ निकले जुबां से “ एक तरही ग़ज़ल ( गिरिराज भंडारी )

१२२२        १२२२      १२२ 

शिकायत हो न जाये आसमाँ से

अँधेरा अब उठा ले इस जहाँ से   

 

अगर चुप आग है, तो कह धुआँ तू  

शनासाई ये कैसी इस मकां से 

 

तेरे कूचे के पत्थर से हसद है

शिकायत क्यूँ रहे तब कहकशाँ से

 

सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ  

बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से

 

कभी थे फूल से रिश्ते मगर अब   

तगाफ़ुल से हुये हैं वे गिराँ से

 

परिंदों के परों ने की बग़ावत

सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से 

 

सभी बातिल इकठ्ठे हो रहे हैं

लिये सच हम खड़े हैं नातुवाँ से

 

सियासत की बहुत मोटी है चमड़ी

रही है बेअसर आह-ओ- फुगाँ से

 

ख़ुदा के नूर से बेखुद हुआ यूँ

‘ कहूँ कुछ और निकले कुछ ज़ुबाँ से

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकशित

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:54am

आदरणीया निध जी , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥

Comment by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 10:42am

तेरे कूचे के पत्थर से हसद है

शिकायत क्यूँ रहे तब कहकशाँ से  - उफ़ बहुत ही सुन्दर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:24am

आदरणीय उमेश कटारा भाई आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:24am

आदरनीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया । आपके द्वारा इंगित कमियाँ शीघ्र दूर कर लूंगा । आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:22am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:21am

आदरनीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 9:20pm

सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ  

बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से

 वाहहहहहहहहहहहहह सर वाहहहह उम्दा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 9:12pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज जी सभी शेर शानदार हैं ,इन की मगर बात ही कुछ और है 

सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ  

बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से

 

कभी थे फूल से रिश्ते हमारे  

तगाफ़ुल से हुये हैं वे गिराँ से

 

परिंदों से परों ने की बग़ावत

सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से 

 अब दो बातों पर ध्यान दिलाना चाहूंगी ---

अगर चुप आग है , पूछो धुवाँ से------धुंए  से  सही  होता है  धुवाँ  से गलत है और धुंए से काफिया नहीं बनता तो या तो शेर ख़ारिज करना पड़ेगा या कुछ और सोचना पड़ेगा 

शनासाई ये कैसी इस मकां से 

पांचवे शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष बन रहा है 

बाकी ग़ज़ल बहुत सुन्दर है दिली बधाई लीजिये 

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:19pm

ख़ुदा के नूर से बेखुद हुआ यूँ

‘ कहूँ कुछ और निकले कुछ ज़ुबाँ से------------------वाह वाह , क्या बात है  . बहुत बढ़िया गजल  . अनुज बधाई स्वीकार करे .

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:42pm

Aadarniya Giriraj Bhandari Ji,

परिंदों से परों ने की बग़ावत

सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से ---- Bahut Khub.... dheron...dheron badhai bahut hi sundar rachna.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service