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क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो
----------वाह साहब
क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो------------बेहतरीन गजल i
ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो-----बहुत खूब
लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो----उम्दा शेर
अच्छी ग़ज़ल लिखी है गुमनाम जी ,हार्दिक बधाई
ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो
लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो
आदरणीय गुमनाम सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार लासानी है |ढेरों ...ढेरों दाद |सादर अभिनन्दन |
बात करते हो वफ़ा की सोच लो
इश्क होता है सजा भी सोच लो........ बेहतरीन मतला
ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो............. वाह वाह
लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो...... क्या खूब कहा है!
जाति मजहब रंग के ही नाम पर
बाँट दी जनता बिचारी सोच लो..... वाह
फिर मसीहा आयें तो मंजिल मिले
झूठ है हर सम्त पापी सोच लो...........अच्छा शेर
ख्वाब में जब यम मिले बोले यही
रह गए दिन चार बाकि सोच लो.............. बहुत उम्दा शेर
क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो......... वाह वाह .... बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गुमनाम सर
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक बधाई आपको !
बहुत उम्दा गजल आ. गुमनाम जी ....हार्दिक बधाई आपको |
आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत प्यारी गज़ल हुई है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥ बाकि को बाक़ी कर लीजियेगा ।
आदरणीय गुमनाम जी इस सुंदर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
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