212 212 212 22
इक वहम सी लगे वो भरी सी जेब
साथ रहती मेरे अब फटी सी जेब
ख्वाब देखे सदा सुनहरे दिन के
आँख खुलते मिली बस कटी सी जेब
चैन आराम सब खो दिया तुमने
पास…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 4, 2022 at 9:30am — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२
जिस्म चाँदी का हुआ अब क्या करें
उम्र निकली बेवफा अब क्या करें
इश्क़ पहला जो हुआ वो इश्क़ था
इश्क़ तो है गुमशुदा अब क्या करें
याद की अल्बम पलटकर देख ली
दिन हुए वो लापता अब क्या करें
किस तरह बच पाएगी अस्मत यहाँ
हर तरफ है खौफ सा अब क्या करें
उम्र की सारी तहें भी खोल दीं
खत मिले कुछ बेपता अब क्या करें
गुमनाम पिथौरगढ़ी
स्वरचित व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on February 19, 2021 at 6:36pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़ख्म मेरे जब कभी तुम पर बयाँ हो जाएंगे
सामने के सब नज़ारे बेजुबाँ हो जाएंगे
हाथ में पत्थर नहीं कुछ ख्वाब दो कुछ काम दो
हाथ ये नापाक के कठपुतलियाँ हो जाएंगे
खेलने दो आज इनको फ़िक्र सारी छोड़कर
ज़िन्दगी उलझा ही देगी जब जवाँ हो जायेंगे
जब कभी अफवाह उठ्ठे तुम यकीं करना नहीं
झूठ की इस आग में ही घर धुवां हो जायेंगे
ये सफर तन्हा नहीं है साथ गम यादें तेरी
गम…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2018 at 5:00pm — 7 Comments
22 22 22 22
गाता जाए एक दिवाना
दुनिया यारो पागलखाना
परदेश बनाया घर लेकिन
घर मे कम है एक सयाना
इससे आगे सोच ना पाऊं
बीबी बच्चे और ठिकाना
केक खिलाया साल बढ़ाए
भूल गया पर उम्र घटाना
एक शिगूफा छोड़ेगा फिर
अबके राजा भौत सयाना
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2018 at 5:52pm — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बेवफा ने जब जफ़ा के दस बहाने रख दिए
हमने भी तब जख्म अपने सब छुपा के रख दिए
भूख भी ये हार बैठी हौसले को देख कर
मुफलिसों ने आज फिर से देख रोजे रख दिए
फोन ने तो चीन डाला बचपना अब बच्चों का
टाक पर दादी के किस्से हमने सारे रख दिए
अब बुजुर्गों की कोई कीमत नहीं संसार में
आश्रमों के द्वार पर बूढ़े बिचारे रख दिए
जालिमों का जोर क्यों बढ़ने लगा है आज कल
यूँ भला सच की जुबां पर…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on February 25, 2016 at 10:02pm — 3 Comments
२१२२
ज़िन्दगी भर
मौत का डर
प्यार तो है
ढाई आँखर
तोड़ पिंजरा
आजमा पर
ये सियासत
एक अजगर
होश जख्मी
हुस्न खंजर
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on January 4, 2016 at 7:30pm — 7 Comments
२१२ २१२
आपका नाम था
मेरा तो जाम था
हर किसी धर्म में
प्यार पैगाम था
रब मिला ही नहीं
उससे कुछ काम था
वो ख़ुदा था कहीं
पर कहीं राम था
थी ख़ुशी ख़ास में
गम मगर आम था
प्रेम इंसानियत
अब भी गुमनाम था
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 30, 2015 at 7:28pm — No Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
इक सवाल आँखों में ही बसा रह गया
यूँ लगे जैसे इक ख़त खुला रह गया
रेल से वो चली शहर ये छोड़कर
और टेशन पे मैं बस खड़ा रह गया
दाग गिनवा रहा था जमाने के मैं
सामने मेरे बस आइना रह गया
वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज
देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया
शख्स हर जानता जिंदगी है सफ़र
मंजिलें हर कोई ढूंढता रहा गया
दम निकलते समय भूला मैं रब को भी
इन लबों पर तेरा नाम सा…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2015 at 8:27pm — 10 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on November 24, 2015 at 7:37pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए
इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए
जब कभी परदेश में मुझको सताया यादों ने
साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए
बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता
जेब में बच्चों के जब भी चार आने आ गए
पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे
बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए
कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ
हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2015 at 9:17am — 5 Comments
१२१२ १२१२ १२१२ १२१२
हरेक संत देखिये कतार ही कतार है
ये ज़िन्दगी बिमार है ये ज़िन्दगी बिमार है
अभी जो लूट है मची कहो ये कौन रोके अब
यहाँ पे भ्रष्ट आदमी लगे कि बेशुमार है
सवाल आँख ने किया जवाब आँख ने दिया
बे - लफ्ज़ बात हो गयी अजब यही तो प्यार है
जो कर्ज की मियाद थी वो ख़त्म ही नहीं हुई
लगे कि मेरे भाग में उधार ही उधार है
मुहासे जिनको कह रहे शबाब की हैं चिठ्ठियाँ
कि जान लो वो…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 1, 2015 at 7:30pm — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
भेड़िये यूँ घूमते हैं झोपड़ी के सामने
डालते वहशी नज़र सब छोकरी के सामने
जेब खाली देखकर ये रेजगारी कह उठी
जेब खाली मत दिखाना तुम किसी के सामने
पेट बच्चा भर ना पाता बूढ़े से माँ बाप का
रोज मजमा जो लगाता घर गली के सामने
इस नशे में देखिये तो घर उजाड़े हैं बहुत
ये नशा दीवार है घर की ख़ुशी के सामने
शाम से ही सज रही मजबूर सी ये लडकियाँ
ज़ख्म ढक के आ गयीं हैं अब सभी के…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on August 30, 2015 at 8:37am — 7 Comments
२२ २२ २२ २
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यार कभी तू ऐसा कर
रस्ता मेरा देखा कर
याद किया बरसों तुझको
इक पल तू भी सोचा कर
अपने दाम लगा फिर तू
हाट लगा कर बेचा कर
सूरज चाँद पकड़ने में
जुगनू को मत छोड़ा कर
फोन खरीदा महँगा तो
इक दो कॉल मिलाया कर
बन झूठा बीमार कभी
रस्ता सबका ताका कर
तेरा भी है नाम…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2015 at 11:17am — 3 Comments
२१२२ २१२२ २१२
दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी
आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी
मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी
ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी
बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on March 16, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 15, 2015 at 8:51am — 8 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 4, 2015 at 6:18pm — 6 Comments
२१२२ २१२२
नीम सी कोई दवा हूँ
आदमी मैं काम का हूँ
भाग से मैं हूँ बुरा पर
शख्स लेकिन मैं भला हूँ
दो घडी रूकता ना कोई
मैं सड़क का हादसा हूँ
स्वार्थ भर को ही जरूरत
क्या मैं कोई देवता हूँ
ढूँढता हूँ अपनी मंजिल
ख़त कोई पर बेपता हूँ
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on February 26, 2015 at 6:16pm — 13 Comments
2122 2122 212
पढ़ चुके जब से किताबें चार हम
भूल बैठे आपसी सब प्यार हम
बादलों ने ढक लिया सूरज अगर
मान लें सूरज की कैसे हार हम
उम्र भर कागज़ किये काले मगर
कह न पाए शेर भी दो चार हम
है भरोसा तेरे झूठे वादे पे
यार दिल के हाथ हैं लाचार हम
जीतना तो चाहते हैं दिल मगर
फिर जमा क्यों कर रहे हथियार हम
बस डकैती लूट हत्या अपहरण
देखते डरने लगे अखबार हम
मौलिक व…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on February 22, 2015 at 5:53pm — 5 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on February 10, 2015 at 6:05pm — 11 Comments
२१२२ २१२२ २
हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से
है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से
जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से
ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से
है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से
हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on February 3, 2015 at 8:30pm — 11 Comments
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