For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२ २


हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से


है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से


जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से


ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से


है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से


हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 1:28am

आदरणीय गुमनाम सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे. इन दो अशआर के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाए -

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से

है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म 
ये नहीं मिटते मै पीने से

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 5, 2015 at 9:37pm

अजय जी खुर्शीद जी हरी प्रकाश जी राजेश जी आप सभी का शुक्रिया राजेश कुमारी जी आपकी सलाह का शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:33pm

हो गयी है कोफ़्त जीने से 
जा निकल भी ऐ जां सीने से----जाँ निकल भी  जा ए सीने से----इसे इस तरह कर लें 

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से-----दिल तक पंहुचता शेर वाह्ह्ह्ह 

मक्ता भी बहुत खूब 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने दिली दाद कबूलिये 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 4:04pm

 गुमनाम भाई, बस अब तो  गुमनाम ना रहिये 

असल नाम ,क्या है भाई , जनाब कुछ तो कहिये !

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 11:25am

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से

है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म 
ये नहीं मिटते मै पीने से

आदरणीय गुमनाम साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:07pm

हो गयी है कोफ़्त जीने से 
जा निकल भी ऐ जां सीने से..............wah sher hua hai ,......aah nikal gayi ...

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 4, 2015 at 5:56pm

धन्यवाद गिरिराज जी बागी जी विजय जी बहुत धन्यवाद

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 4, 2015 at 5:55pm
धन्यवाद गिरिराज जी बागी जी विजय जी बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 3:23pm

है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से         --- बढ़िया शे र , वाह ! बहुत बहुत बधाइयाँ , गज़ल के लिये , आ. गुमनाम भाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2015 at 10:56am

"वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने … हार्दिक बधाई।"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
23 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service