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हर खुशी तुमसे पिता //गजल// कल्पना रामानी

घर-चमन में झिलमिलाती, रोशनी तुमसे पिता

ज़िंदगी में हमने पाई, हर खुशी तुमसे पिता

 

छत्र-छाया में तुम्हारी, हम पले, खेले, बढ़े

इस अँगन में प्रेम की, गंगा बही तुमसे पिता

 

गर्व से चलना सिखाया, तुमने उँगली थामकर 

ज़िंदगी पल-पल पुलक से, है भरी तुमसे पिता

 

 याद हैं बचपन की बातें, जागती रातें मृदुल

ज्ञान की हर बात जब, हमने सुनी तुमसे पिता

 

प्रेरणा भयमुक्त जीवन की, सदा हमको मिली

नित नया उत्साह भरती, हर घड़ी तुमसे पिता

 

हाथ माथे है तुम्हारा, हम बड़े हैं खुशनसीब

घर-गृहस्थी में घुली है, माधुरी तुमसे पिता  

 

हर बला से दूर रखता, बल तुम्हारा ही हमें     

‘कल्पना’ जग में सुरक्षा, है मिली तुमसे पिता

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on September 26, 2014 at 6:52pm

आ॰ श्याम नरेन जी, आ॰ गोपाल नारायणजी,  आ॰सलीम  शेखजी,आ॰सुलभ जी, आ॰हरिवल्लभ जी,आ॰जितेंद्र जी, आ॰खुर्शीद जी, आ॰लक्षमण धामी जी, आ॰नीरज जी, आप सबका रचना की सराहना द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Neeraj Neer on September 17, 2014 at 8:49pm

गर्व से चलना सिखाया, तुमने उँगली थामकर
ज़िंदगी पल-पल पुलक से, है भरी तुमसे पिता

हाथ माथे है तुम्हारा, हम बड़े हैं खुशनसीब

घर-गृहस्थी में घुली है, माधुरी तुमसे पिता  ... हर शेर लाजवाब ॥ बहुत भावपूर्ण ॥ बहुत बधाई । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 11:13am

आदरणीय कल्पना दीदी , पिता को समर्पित इस बेहतरीन  ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 9:30am

याद हैं बचपन की बातें, जागती रातें मृदुल

ज्ञान की हर बात जब, हमने सुनी तुमसे पिता

आदरणीय कल्पना जी हार्दिक बधाई ,पिता रदीफ़ के साथ मैं यह पहली ग़ज़ल सुन रहा हूं |मेरी इच्छा है कि मैं ऐसी ही कुछ भावनाएं अपने श्रद्धय को अर्पित कर पाऊं |सादर अभिनन्दन 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2014 at 9:00pm

माता-पिता का स्थान तो सबसे सर्वोपरि होता है,बहुत सुंदर गजल कही है आपने आदरणीया कल्पना जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 5:05pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..पिता का महत्व पूर्ण स्थान मिला तो है ..पर आपने पित्र पक्ष में साहित्यक श्रद्धांजलि से नवाजा ..बधाई आदरणीया. 

Comment by Sulabh Agnihotri on September 16, 2014 at 3:41pm

सुन्दर-सार्थक अभिव्यक्ति

Comment by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:48pm

एक उपेक्षित विषय पर सुन्दर अभिव्यक्ति  ढेरों बधाई स्वीकारें 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2014 at 12:36pm

महनीया

माँ की महिमा तो लोग प्रायः गाते हैं i पर पिता प्रायः उपेक्षित रह जाते है i जबकि मानव जीवन में उनकी भूमिका कमतर नहीं होती i आप की रचना से मुझे बड़ी आश्वस्ति  मिली क्योंकि मेरा पालन -पोषण मेरे तपोमूर्त्ति  पिता ने ही किया है i सादर i

Comment by Shyam Narain Verma on September 16, 2014 at 9:50am
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको .................

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