For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी के सम्मान में//दोहे//कल्पना रामानी

देवों से हमको मिला, संस्कृत का उपहार।

देवनागरी तब बनी, संस्कृति का आधार।

 

युग पुरुषों ने तो रचे, हिन्दी में बहु छंद।

पर नवयुग की पौध ने, किए कोश सब बंद।

 

वेद ऋचाओं का नहीं, हुआ उचित सम्मान।

हिन्द पुत्र भूले सभी, हिन्दी का रसपान।

 

जो हिन्दी के पक्षधर, किसे सुनाएँ पीर।

अपनों के ही हाथ से, टूटा है प्राचीर।

 

हिन्दी का कर थामकर, ‘कल ने जीती  जंग।

मगर आज पर छा गया, गुलामियों का रंग।

 

पहन विदेशी बेड़ियाँ, नौनिहाल खुश आज।

भाव विदेशी चूमते, खोकर अपना ताज।

यही समय है हम करें, ऐसे ठोस प्रयास।

बीते युग की दासता, पुनः न आए पास।  

 

त्यागें मन से आज ही, अंग्रेज़ी का दंभ।

अडिग रहे हर हाल में, अब हिन्दी का स्तम्भ।

 

अंग्रेज़ी के नामपट, मेटें कालिख पोत।

द्वार द्वार जगमग जले, हिन्दी की ही ज्योत।

 

हिन्दी की हों लोरियाँ, हिन्दी के ही गीत,

भागी हो वो दंड का, जो ना माने रीत।

 

हट जाए बाजार से आयातित साहित्य,

कोने कोने में दिखे, हिन्दी का अधिपत्य।

 

प्रथम फर्ज़ है बंधुओं, हिन्दी का उत्थान।

क्यों भूली इस बात को, भारत की संतान।

 

हिन्दी के सम्मान में, लिखें अनगिने गीत।

जागे ज्यों जन चेतना, वरण करें वो रीत।

 

मना रहे हिन्दी दिवस, अब तक हम हर साल।

कट जाए  इस साल में, अंग्रेजी का जाल। 

मौलिक व अप्रकाशित  

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on September 8, 2014 at 9:23pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी, आदरणीय विजय शंकरजी,  आदरणीय गोपाल कृष्ण जी, आदरणीय गोपाल नारायण जी, आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, आदरणीय राम शिरोमणि जी, प्रिय अन्नपूर्णा, आप सबकी सराहना भरी आत्मीय टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार।  

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:39am
वाह आदरणीया कल्पना जी बहुत ही प्यारे दोहे रचे है आपने।। बहुत बहुत बधाई आपको।। सादर
Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 5:14pm

वाह !! कल्पना दीदी बेहद अर्थपूर्ण  दोहे , बधाई आपको । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:00pm

युग पुरुषों ने तो रचे, हिन्दी में बहु छंद।

पर नवयुग की पौध ने, किए कोश सब बंद।.............आदरणीया कल्पना जी ..सच में आपका जवाब नहीं ..इस मंच पर आपकी रचनाओं का एक अपना बेहतरीन बिशिस्त अंदाज है ..आपको हार्दिक बधाई के साथ सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 7, 2014 at 12:10pm

महनीया

बहुत सुन्दर , अर्थ भरे,  प्रेरक दोहे i

 

हिन्दी का कर थामकर, ‘कल ने जीती  जंग।

मगर आज पर छा गया, गुलामियों का रंग।

 

पहन विदेशी बेड़ियाँ, नौनिहाल खुश आज।

भाव विदेशी चूमते, खोकर अपना ताज।

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 5, 2014 at 11:08pm

बहुत सुंदर दोहे रामानीजी। साधुवाद।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2014 at 9:13pm

बहुत प्रभावित करने वाले सारगर्भित दोहे , बहुत बहुत बधाई आदरणीय कल्पना रामानी जी।

Comment by harivallabh sharma on September 5, 2014 at 8:49pm

बहुत सुन्दर दोहे...हिंदी सप्ताह पर उल्लेखनीय भेंट आदरणीया...

पहन विदेशी बेड़ियाँ, नौनिहाल खुश आज।

भाव विदेशी चूमते, खोकर अपना ताज।...सही आंकलन आपका..बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी.मैं आपकी टिप्पणी को समझ पाने में असमर्थ हूँ.मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में…"
11 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
yesterday
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service