For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

saalim sheikh
Share on Facebook MySpace

Saalim sheikh's Friends

  • Ravi Prabhakar
 

saalim sheikh's Page

Latest Activity

saalim sheikh updated their profile
Nov 12, 2019

Profile Information

Gender
Male
City State
Allahabad U.P
Native Place
Allahabad
Profession
student
About me
i am a student of urdu

Saalim sheikh's Blog

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ज़िन्दगी खत्म तो नहीं होगी

रूह भी जिस्म में कहीं होगी 

धड़कनें दिल मे ही बसी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे

चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे

धूप होगी और चांदनी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

वक़्त मुझे भूलना सिखा देगा

फिर कोई आएगा, हंसा देगा 

बाद तेरे भी हर ख़ुशी होगी 

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

याद धुँधली तो हो ही जाएगी

वो…

Continue

Posted on October 31, 2018 at 10:51pm — 3 Comments

जानाँ

बिना तेरे हर एक लम्हा मुझे दुशवार है जानाँ 

अगर ये प्यार है जानाँ, तो मुझको प्यार है जानाँ

हसीं चेहरे बहुत देखे फ़िदा होना भी मुमकिन था 

फ़िदा हो कर फ़ना होना ये पहली बार है जानाँ

हमें कहना नहीं आया ,और समझा भी नहीं तुमने 

मेरा हर लफ़्ज़ तुमसे प्यार का इज़हार है …

Continue

Posted on September 7, 2016 at 5:30am — 3 Comments

बोझ : नज़्म

थाम लो इन आंसुओं को

बह गए तो ज़ाया हो जाएंगे

इन्हें खंजर बना कर पेवस्त कर लो

अपने दिल के उस हिस्से में 

जहाँ संवेदनाएं जन्म लेती हैं

उसके काँधे पर रखी लाश से कहीं ज्यादा वज़न है

तुम्हारी उन संवेदनाओं की लाशों का 

जिन्हें अपने चार आंसुओं के कांधों पर 

ढोते आए हो तुम 

अब और हत्या मत करो इनकी

संवेदनाओं का कब्रस्तान बनते जा रहे तुम

हर ह्त्या, आत्महत्या, बलात्कार पर 

एक शवयात्रा निकलती है तुम्हारी आँखों…

Continue

Posted on August 26, 2016 at 1:00am — 4 Comments

मंज़र ( नज़्म )

अम्बर के दरीचों से फ़रिश्ते अब नहीं आते

न परियाँ आबशारों में नहाने को उतरती हैं

न बच्चों की हथेली पर कोई तितली ठहरती है

न बारिश की फुआरों में वो खुशियाँ अब बरसती हैं

सभी लम्हे सभी मंज़र बड़े बेनूर से हैं सब

मगर हाँ एक मंज़र है

जहां फूलों के हंसने की अदा महफूज़ है अब भी

जहाँ कलियों ने खिलने का सलीक़ा याद रखा है

जहां मासूमियत के रंग अभी मौजूद हैं सारे

वो मंज़र है मेरे हमदम

तुम्हारे मुस्कुराने का

- शेख…

Continue

Posted on July 5, 2016 at 4:21pm — 4 Comments

Comment Wall (3 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 12:26am on October 25, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 9:29am on September 23, 2015, Sheikh Shahzad Usmani said…
आदाब अर्ज़ जनाब,
ख़ुशनसीब हूँ कि आज आपकी पुरस्कृत लघु कथा " क़ातिल का मज़हब" पढ़कर लघु कथा विधा का अहम सबक़ सीखने को मिला।उम्दा, उत्कृष्ट लघु कथा सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको....आपसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
At 11:32am on August 17, 2015,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय सालिम शेख जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी रचना "क़ातिल का मज़हब" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service